पानी में डूबा 75 फीसदी पटना, मुख्यमंत्री शिफ्ट हुए फर्स्ट फ्लोर पर तो उपमुख्यमंत्री का बंग्ला भी डूबा
इसे कुशासन, सरकारी अधिकारियों की अनदेखी या योजनाकारों की गफलत कुछ भी कहें, मगर यह बात और डरा देती है कि तीन तरफ नदियों से घिरे पटना शहर में पानी की निकासी का कोई पुख्ता इंतजाम ही नहीं है, जबकि शहर 75 फीसदी पानी में डूबा है...
पढ़िए पटना से सौमित्र रॉय की ग्राउंड रिपोर्ट, यह भी कि वे क्यों कह रहे हैं, पटना को याद आनी चाहिए बुद्ध की वह भविष्यवाणी
जनज्वार। जीवन के आखिरी दिनों में भगवान बुद्ध मगध काल की महान राजधानी पाटलिपुत्र से होकर गुजरे। यह ईसा पूर्व 427 सदी की बात है। उन्होंने उस समय के पाटलिपुत्र के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए समय के साथ इस शहर को बाढ़, आग और आपसी लड़ाई-झगड़े से काफी नुकसान होने की आशंका भी जताई थी। आज का पटना वही पाटलिपुत्र है और फिलहाल कहीं कमर तो कहीं गले तक पानी में डूब इस शहर को देखकर बुद्ध की भविष्यवाणी सहज याद आ जाती है।
भविष्यवाणी को हजारों साल बीत गए। इस बीच पटना शहर बाढ़ में कई बार डूबा, तैरा और आखिर में सूख भी गया। लेकिन किसी ने भी इन घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया। 26 सितंबर से शुरू हुई मूसलाधार बारिश शनिवार दोपहर तक जारी रही और शहर के 75 फीसदी इलाके पानी में डूब गए। सड़कों पर एनडीआरएफ की नावें चल गईं, 32 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना पड़ा।
दुकानों, शॉपिंग मॉल और यहां तक कि अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर तक में पानी घुस गया। लोग इसे कुशासन, सरकारी अधिकारियों की अनदेखी या योजनाकारों की गफलत कुछ भी कहें, मगर यह बात और डरा देती है कि तीन तरफ नदियों से घिरे इस शहर में पानी की निकासी का कोई पुख्ता इंतजाम ही नहीं है।
जिस समय मैं यह रिपोर्ट लिख रहा हूं, जलभराव और बाढ़ की विभिन्न घटनाओं ने दो दर्जन जिंदगियां निगल ली हैं। पटना ही नहीं, भागलपुर और दरभंगा समेत बिहार के आधा दर्जन जिलों में बाढ़ बेकाबू हो रही है। पटना के 75 फीसदी हिस्से में सड़कें पानी में डूबी हुई हैं। घरों में पानी घुसने के बाद कई जगहों पर लोगों ने अपने मकान को भगवान भरोसे छोड़ होटलों की शरण लेना ठीक समझा।
राहत और बचाव के लिए उतरी एनडीआरएफ की नावों से 32 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। यह एक बड़ी संख्या है। इससे पता चलता है कि हालात किस कदर बिगड़े हुए हैं। मौसम विभाग ने 30 सितंबर और एक अक्टूबर को पटना समेत 14 जिलों में भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी किया है।
बहरहाल, सूबे के सीएम और सुशासन बाबू के नाम से मशहूर नीतीश कुमार ने पटना में बाढ़ को ईश्वरीय आपदा बताते हुए जिम्मेदारी लेने से पल्ला झाड़ते हुए उसे मौसम विभाग के मत्थे मढ़ दिया। नीतीश से हालांकि, यह उम्मीद नहीं थी, क्योंकि खुद उनके सरकारी बंगले में भी पानी घुस आया और उन्हें मजबूरन पहली मंजिल पर शरण लेनी पड़ी।
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पटना में लोकसभा की दोनों सीटें और विधानसभा की 14 सीटों में से आधी बीजेपी के पास हैं। हालांकि, जब पटना शहर डूब रहा था तो एक सांसद अपना सम्मान करवा रहे थे। मौसम विभाग ने 72 घंटे पहले ही मूसलधार बारिश की चेतावनी जारी कर दी थी। फिर भी 23 संप हाउस के न तो मोटर दुरुस्त करवाए गए और न ही वहां की टंकियों में भरी गाद निकाली जा सकी। नालों की सफाई बरसात से पहले नहीं की गई।
पटना शहर में ड्रेनेज का कोई नेटवर्क नहीं है। फिर भी इस शहर में मेट्रो ट्रेन चलाने की तैयारी हो रही है। नालियों का जाल नहीं बिछा होने से बारिश का पानी सड़कों से बहकर कहां जाएगा, यह भी तय नहीं है। शहर को स्मार्ट बनाने के काम की शुरुआत आगामी दिसंबर से होनी है। हालांकि, इसी साल जून में ड्रेनेज सिस्टम पर चर्चा हुई थी, लेकिन बेहद अनियंत्रित बसाहट वाले इस शहर में जबकि सियासत कब्जे करवाने और मुआवजा दिलाने से लेकर दोबरा बसाने तक को वोट बैंक की नजर से देखती हो, पानी की निकासी के लिए सभी इलाकों को नालों से जोड़ना आसान नहीं है।
खासतौर पर राजेंद्र नगर और कंकर बाग जैसे निचले इलाकों में, जहां थोड़ी सी बारिश में जल भराव की समस्या विकराल हो जाती है। राज्य के डिप्टी सीएम सुशील मोदी का राजेंद्र नगर स्थित बंगला भी करीब साढ़े 5 फीट के जल जमाव से ग्रस्त रहा।
जैसा की देश के ज्यादातर बड़े शहरों का स्मार्ट आलम है, बारिश से जमा हुए पानी की निकासी उन कुछ सदियों पुराने नालों पर निर्भर है, जिनमें आंख मूंदकर सीवेज का निस्तार भी कर दिया जाता है। अंग्रेजों के जमाने से भी पहले ये नाले एक सीमित क्षेत्र और आबादी को ध्यान में रखते हुए बनाए गए थे।
फिलहाल पटना की करीब 27 लाख से ज्यादा की आबादी को देखते हुए ये बेकार हो चुके हैं। बरसाती पानी की ही तरह सीवेज की भी मुकम्मल निकासी का इंतजाम नहीं होने से शहर में बरसात के दौरान दोनों का मेल खतरनाक बीमारियों के रूप में सामने आता है। इस बार भी यही हुआ।
गुरुवार 26 सितंबर से बारिश शुरू होने के बाद अगले ही दिन शहर के व्यापक हिस्से में पीने के पानी की सप्लाई रुक गई। जहां पानी आ रहा है, वहां लोग गंदा, बदबूदार पानी मिलने की शिकायत कर रहे हैं। बरसाती पानी और सीवेज का यह मेल किसी भी शहर को बीमारियों से सुरक्षित नहीं कर सकता। पटना ही नहीं, बिहार के बाकी दो स्मार्ट सिटीज में भी यही होने वाला है।
साफ है, रविवार 29 सितंबर को पटना शहर में जल प्रलय सी स्थिति बाढ़ नहीं, बल्कि मानव जनित त्रासदी है जो कि तकनीकी रूप से जल भराव और पानी की निकासी का इंतजाम न होने की वजह से हुई। अभी भी वक्त है। जलवायु परिवर्तन से जूझ रहे भारत के बाकी शहरों की ही तरह पटना में बरसाती पानी की निकासी के लिए एक पुख्ता ड्रेनेज सिस्टम की बेहद जरूरत है। इसके लिए सियासत और वोट बैंक को दरकिनार कर प्रशासन को सख्त कदम उठाने होंगे।
पटना नगर निगम में कमिश्नर के पद पर सही तरीके से काम करने के लिए किसी भी अधिकारी को कम से कम 3 साल तो चाहिए ही। ऐसे अहम पद पर काबिज अफसर का बार-बार तबादला करना हतोत्साहित करता है। इसके पीछे जो भी सियासी मंसूबे हों, लेकिन शहर की योजना खासकर पटना मास्टर प्लान 2031 को ध्यान में रखते हुए अब तक की गलतियों के सुधार और भावी योजनाओं की रूपरेखा को जमीन पर उतारने के लिए सबसे पहला कदम होना चाहिए।