मोदी ने नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी को बधाई तो दी, लेकिन क्या वे गरीबी उन्मूलन में उनकी मदद लेंगे?

Update: 2019-10-15 04:20 GMT

मोदी सरकार द्वारा की गयी नोटबंदी को बहुत बड़ा संकट बता चुके अभिजीत बनर्जी के ही एक अध्ययन पर भारत में विकलांग बच्चों की स्कूली शिक्षा की व्यवस्था को बेहतर बनाया गया, जिसमें क़रीब 50 लाख बच्चों को पहुंचा फ़ायदा...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

स वर्ष अर्थशास्त्र का तथाकथित नोबेल पुरस्कार भारतीय मूल के लेकिन अब अमेरिकी नागरिक अभिजीत बनर्जी, उनकी फ्रेंच-अमेरिकी पत्नी एस्थर डूफलो और अमेरिकी अर्थशास्त्री माइकल क्रेमर को सम्मिलित तौर पर दिए जाने की घोषणा की गयी है। तीनों को यह पुरस्कार वैश्विक गरीबी कम करने के प्रायोगिक उपायों के अध्ययन के लिए दिया गया है।

स्थर डूफलो इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली सबसे कम उम्र की अर्थशास्त्री हैं और केवल दूसरी महिला हैं जिन्हें यह पुरस्कार दिया गया है। नोबेल प्राइज की कमेटी इस पुरस्कार की घोषणा जरूर करती है, पर यह वास्तविक नोबेल पुरस्कार नहीं है। स्वीडन के स्वेरिगेस रिक्सबैंक द्वारा प्रायोजित इस पुरस्कार का नाम स्वेरिगेस रिक्सबैंक प्राइज इन इकोनॉमिक्स साइंसेज इन मेमोरी ऑफ़ अल्फ्रेड नोबेल है और इसकी शुरुआत वर्ष 1968 में की गयी थी।

भिजीत बनर्जी और एस्थर डूफलो अमेरिका के मेस्सेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं जबकि माइकल क्रेमर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं। अभिजीत बनर्जी का जन्म कोलकाता में हुआ था और उनकी शिक्षा जेएनयू और कलकत्ता यूनिवर्सिटी में हुई।

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रॉयल स्वीडिश अकादमी ने पुरस्कारों की घोषणा करते हुए कहा, तीनों अर्थशास्त्रियों ने अपने प्रयोगों से डेवलपमेंटल इकोनॉमिक्स को पूरा बदल डाला है और इसे एक प्रायोगिक क्षेत्र बना दिया है। अभिजीत बनर्जी के ही एक अध्ययन पर भारत में विकलांग बच्चों की स्कूली शिक्षा की व्यवस्था को बेहतर बनाया गया, जिसमें क़रीब 50 लाख बच्चों को फ़ायदा पहुंचा है।

पुरस्कार की घोषणा होने के बाद एस्थर डूफलो ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा है, "महिलाएं भी कामयाब हो सकती हैं ये देखकर कई महिलाओं को प्रेरणा मिलेगी और कई पुरुष औरतों को उनका सम्मान दे पाएंगे।" पुरस्कारों की घोषणा के बाद रामचंद्र गुहा ने ट्वीट किया है, "अभिजीत बनर्जी और इश्तर डूफेलो को नोबेल मिलने की ख़बर से खुश हूं। वे इसके योग्य हैं। अभिजीत बहुत बदनाम किए जा रहे यूनिवर्सिटी के गर्व भरे ग्रेजुएट हैं। उनका काम कई युवा भारतीय विद्वानों को प्रभावित करेगा।"

फ़रवरी, 2016 में जब जेएनयू को लेकर हंगामा शुरू हुआ तब अभिजीत बनर्जी ने एक लेख में लिखा था - हमें जेएनयू जैसे सोचने-विचारने वाली जगह की जरूरत है और सरकार को निश्चित तौर पर वहां से दूर रहना चाहिए। इसी लेख में उन्होंने ये भी बताया था कि उन्हें किस तरह से 1983 में अपने दोस्तों के साथ तिहाड़ जेल में रहना पड़ा था, तब जेएनयू के वाइस चांसलर को इन छात्रों से अपनी जान को ख़तरा हुआ था।

पने आलेख में उन्होंने लिखा था, "ये 1983 की गर्मियों की बात है। हम लोग जेएनयू के छात्रों ने वाइस चांसलर का घेराव किया था। वे उस वक्त हमारे स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष को कैंपस से निष्कासित करना चाहते थे। घेराव प्रदर्शन के दौरान देश में कांग्रेस की सरकार थी पुलिस आकर सैकड़ों छात्रों को उठाकर ले गई। हमें दस दिन तक तिहाड़ जेल में रहना पड़ा था, पिटाई भी हुई थी। लेकिन तब राजद्रोह जैसा मुकदमा नहीं होता था। हत्या की कोशिश के आरोप लगे थे। दस दिन जेल में रहना पड़ा था।"

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वे समय-समय पर मोदी सरकार की नीतियों की ख़ूब आलोचना कर चुके हैं। इसके साथ ही वे विपक्षी कांग्रेस पार्टी की मुख्य चुनावी अभियान न्याय योजना का खाका भी तैयार कर चुके हैं। मोदी सरकार के सबसे बड़े आर्थिक फैसले नोटबंदी के ठीक पचास दिन बाद फोर्ड फाउंडेशन-एमआईटी में इंटरनेशनल प्रोफेसर ऑफ़ इकॉनामिक्स बनर्जी ने एक इंटरव्यू में कहा था, "मैं इस फ़ैसले के पीछे के लॉजिक को नहीं समझ पाया हूं। जैसे कि 2000 रुपये के नोट क्यों जारी किए गए हैं। मेरे ख्याल से इस फ़ैसले के चलते जितना संकट बताया जा रहा है, उससे यह संकट कहीं ज्यादा बड़ा है।"

तना ही नहीं वे उन 108 अर्थशास्त्रियों के पैनल में शामिल रहे जिन्होंने मोदी सरकार पर देश के जीडीपी के वास्तविक आंकडों में हेरफेर करने का आरोप लगाया था। इसमें ज्यां द्रेज, जायति घोष, रीतिका खेरा जैसे अर्थशास्त्री शामिल थे।

प्रधानमंत्री मोदी ने अभिजीत बनर्जी को पुरस्कार की बधाई तो दी, पर क्या वे गरीबी उन्मूलन में उनकी मदद लेंगें?

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