चुनाव होते रहे, मीडिया मोदी जी की तस्वीरें दिखाने में व्यस्त रहा और चुनाव आयोग तमाम शिकायतों के बाद भी आँखें बंद कर बैठा रहा...
महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक
देश का चुनाव आयोग मर चुका है क्योंकि यह एक सवैधानिक सत्ता जैसा नहीं बल्कि एक मंत्रालय जैसा काम कर रहा है। प्रधानमंत्री, बीजेपी और सभी सरकारी झूठों, उन्मादी भाषणों और देश को बांटने वाले बयानों पर इसने लगातार चुप्पी साधी, इनके रैलियों पर कोई रोक नहीं लगाई और लगातार विपक्ष को रोकने का काम करता रहा।
जरा सोचिये, यदि यह आयोग नहीं होता और एक चुनाव मंत्रालय होता तब भी क्या फर्क पड़ना था। उस हालत को आप क्या कहेंगे जब एक चुनाव आयुक्त को अपनी बात कहने मीडिया के सामने आना पड़ता है। चुनाव के अंतिम चरण के दिन मोदी जी को केदारनाथ भेजकर चुनाव आयोग ने अपना सरकारी पिट्ठू होने का खिताब बचाए रखा है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी और चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए कहा कि, 'इलेक्टोरल बॉन्ड, ईवीएम से चुनाव के शेड्यूल तक नमो टीवी, मोदी की आर्मी और अब केदारनाथ का ड्रामा, चुनाव आयोग मोदी के सामने नतमस्तक। चुनाव आयोग खुद डरा हुआ है, अब और नहीं।' टीएमसी के बाद टीडीपी ने भी पीएम मोदी की चुनाव आयोग से शिकायत की है।
टीडीपी ने पीएम मोदी पर केदारनाथ और बदरीनाथ में आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाया है। टीडीपी ने आयोग के लिखे पत्र में कहा है कि पीएम मोदी केदारनाथ और बदरीनाथ में आधिकारिक यात्रा पर गए हैं। इस दौरान उन्हें मीडिया ने कवरेज दी, जिसका प्रसारण किया गया।
टीएमसी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर पीएम मोदी पर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन का आरोप लगाया है। पत्र में लिखा है, “लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण का चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद आश्चर्यजनक रूप से नरेंद्र मोदी की केदारनाथ यात्रा के दौरान पिछले 2 दिनों से मीडिया द्वारा व्यापक रूप से कवरेज दी जा रही है। यह आदर्श आचार संहिता का घोर उल्लंघन है।”
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल के नतीजों को ‘गप’ करार देते हुए रविवार 19 मई को कहा कि यह ‘हजारों ईवीएम को बदलने और उनसे छेड़छाड़ करने का गेमप्लान’ है। उन्होंने विपक्षी नेताओं से मजबूती के साथ एकजुट रहने को कहा।
दूसरी तरफ मीडिया की हालत देखिये, जिसके चलते हम दिनभर टीवी पर गुफा में ध्यान लगाते मोदी जी की तस्वीर देखते रहे। अब तक ध्यान लगाना एक बहुत ही एकाकी समय होता था, पर मोदी जी तो ध्यान भी कैमरे के सामने ही लगा पाते हैं। गुफा में गद्दे पर बैठकर ध्यान लगाकर मोदी जी ने साबित कर दिया कि चुनाव आयोग उनके एक इशारे पर कुछ भी कर सकता है।
चुनाव होते रहे, मीडिया मोदी जी की तस्वीरें दिखाता रहा और चुनाव आयोग तमाम शिकायतों के बाद भी आँखें बंद कर बैठा रहा। खबर आई है कि मोदी जी ने चुनाव आयोग को केदारनाथ की अनुमति के लिए धन्यवाद दिया है। मुझे तो लगता है, चुनाव आयोग ने ही मोदी जी को धन्यवाद दिया होगा क्योंकि आका ने कुछ माँगा तो सही।
चुनाव आयोग ने शुरू से ही अपनी मंशा साफ़ कर दी थी। जिस दिन सरकार ने चाहा उसी दिन तारीखों का ऐलान किया गया, जितने लम्बे चुनाव चाहिए थे, उससे भी अधिक समय दिया गया। मोदी जी और अमित शाह को भीड़ को झूठ बताने का पर्याप्त मौका दिया गया। अब तो ऐसा लगता है कि जनता भी बस तमाशा ही देखना चाहती है। इस सरकार ने जनता को झूठ का ऐसा अफीम खिलाया है कि उसे भी रोजगार की बारिश और किसानों की समृद्धि ही दिखने लगी है।
विपक्ष भी ऐसा लगता है कि नींद से उठ नहीं पा रहा है। न तो मुद्दे और ना ही तेवर विपक्ष में कहीं नजर आता है। चुनाव के समय भी विपक्ष में कहीं कोई गति या फिर जीतने का संकल्प नहीं दिखा। मीडिया तो सरकारी भोंपू ही है।
जनता शायद झूठ की अभ्यस्त हो गयी है, इसलिए सच शायद पचा नहीं पा रही है। ऐसे में चुनाव आयोग की जरूरत ही क्या है? एक चुनाव मंत्रालय ही बहुत होगा।