'पहला गिरमिटिया' के लेखक गिरिराज किशोर का निधन, गांधी जी के अफ्रीका प्रवास पर लिखी थी यह कालजयी कृति

Update: 2020-02-09 06:26 GMT

गिरिराज किशोर हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार होने के साथ एक कथाकार, नाटककार और आलोचक भी थे। उनका समसामयिक विषयों पर किया गया विचारोत्तेजक निबंध विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होता आया है

जनज्वार, कानपुर। इतिहास में दर्ज गांधी जी की जीवनी 'पहला गिरमिटिया' के लेखक गिरिराज किशोर का आज रविवार 9 फरवरी की सुबह कानपुर में निधन हो गया है।

मूल रूप से मुजफ्फरनगर निवासी गिरिराज किशोर कानपुर में बस गए थे और यहां के सूटरगंज में रहते थे। वह 83 वर्ष के थे। उनके निधन से साहित्य जगह का एक मजबूत स्तंभ ढह गया है। पिछले कुछ समय से उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था।

गिरिराज किशोर हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार होने के साथ एक कथाकार, नाटककार और आलोचक भी थे। उनका समसामयिक विषयों पर किया गया विचारोत्तेजक निबंध विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होता रहता है।

गिरिराज किशोर द्वारा लिखा गया 'ढाई घर' भी बहुत लोकप्रिय उपन्यास रहा। वर्ष 1991 में प्रकाशित इस कृति को 1992 में ही साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। गिरिराज किशोर का 'पहला गिरमिटिया' नामक उपन्यास महात्मा गाँधी के अफ्रीका प्रवास पर आधारित था। इस उपन्यास ने उन्हें साहित्य के क्षेत्र में विशेष पहचान दिलाई थी।

ईआईटी कानपुर में कुलसचिव रहे साहित्यकार पद्मश्री गिरिराज किशोर का जन्म 8 जुलाई 1937 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुआ था। जमींदार खानदान में पैदा हुए गिरिराज को जमींदारी कभी रास नहीं आयी। मुजफ्फरनगर के एसडी कॉलेज से स्नातक करने के बाद गिरिराज किशोर घर से सिर्फ 75 रुपये लेकर इलाहाबाद आ गए। इसके बाद उन्होंने फ्रीलांसर के बतौर पत्र—पत्रिकाओं में लिखना शुरू कर दिया और उससे जो पैसे मिलते उससे वह अपना खर्च चलाते थे। इलाहाबाद में 1960 में एमएसडब्ल्यू पूरा करने के बाद उनकी नियुक्ति अस्सिस्टेंट एम्प्लॉयमेंट ऑफिसर के तौर पर हुयी थीं आगरा के समाज विज्ञान संस्थान से उन्होंने 1960 में मास्टर ऑफ सोशल वर्क की डिग्री ली थी।

'पहला गिरमिटिया' को गांधी जी की सबसे विश्वसनीय जीवनी माना जाता है।'पहला गिरमिटिया' काफी प्रसिद्ध हुआ था, जो महात्मा गांधी के अफ्रीका दौरे पर आधारित था। इस उपन्यास ने गिरिराज को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलाई थी। उन्हें 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और 2007 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

हात्मा गांधी के बाद गिरिराज किशोर ने कस्तूरबा गांधी पर आधारित उपन्यास 'बा' लिखा था। इसमें उन्होंने गांधी जैसे व्यक्तित्व की पत्नी के रूप में एक स्त्री का स्वयं और साथ ही देश की आजादी के आंदोलन से जुड़ा दोहरे संघर्ष के बारे में जानकारी दी थी।

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