पत्रकार भाषा सिंह के कविता पाठ में फिलीस्तीन-इजराइल से लेकर न्यूजक्लिक पर कार्रवाई की कड़ी निंदा, गोरखपुर में हुई गिरफ्तारियों का भी विरोध
भाषा ने अपनी कविताओं में पत्रकारिता को हावी नहीं होने दिया है। मैलन दादी कविता का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि दलित और गैर दलित रचनाकारों की कविताओं में फ़र्क़ होता है। पर भाषा की कविता से यह नहीं लगता। मैलन दादी में शब्दों का चयन बहुत अच्छा है। यह कविता बहुत महत्वपूर्ण है....
राज वाल्मीकि की रिपोर्ट
Delhi : पत्रकार भाषा सिंह की 'कविताएं बहुरंगी हैं' किस तरह के समाज की कल्पना हम करते हैं, उसके प्रति चिंता व्यक्त करती हैं। लोकल से ग्लोबल और ग्लोबल से लोकल यानी वैश्विक परिदृश्य से स्थानीयता तक का सफ़र तय करती हैं ये कविताएं। ख़ून से निकलकर फूल तक आना, यह पूरी यात्रा ही भाषा सिंह की कविता यात्रा है।”
उपरोक्त बातें जानी मानी लेखिका कवि और प्रोफेसर हेमलता महिश्वर ने भाषा सिंह के कविता पाठ के दौरान कहीं। उन्होंने कहा कि भाषा ने पुरुष को भी एक नया स्वरूप दिया है। मैलन दादी नया Metaphor (रूपक) है। इसमें भाषा ने पूरा महाकाव्य रच दिया है। कविताएं आशावादी हैं। एक नई निर्मिति हैं। भाषा अपनी कविता में LGBTQ को भी लेकर आती हैं। इससे साफ़ है कि अब हमें स्त्री विमर्श की आधी दुनिया से आगे बढ़कर LGBTQ जैसी दूसरी अस्मिताओं का भी ध्यान रखना होगा।''
गुलमोहर किताब प्रकाशन की ओर से कविता पाठ का आयोजन 20 अक्टूबर, 2023 को ईस्ट पटेल नगर, नई दिल्ली में किया गया। इस मौके पर फ़िलिस्तीन पर इज़राइल के बर्बर हमले और न्यूज़ पोर्टल ‘न्यूज़क्लिक’ समेत स्वतंत्र पत्रकारिता पर किए जा रहे हमले का विरोध करते हुए पांच प्रस्ताव भी पास किए गए।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे मुकुल सरल ने अपनी एक कविता “आज बहुत दुख है/ आसमान से बरस रही है आग/ भड़क रहे हैं ज़ुल्म के शोले/ उसने ख़रीदा है फाउंटेन पेन” से भाषा सिंह का परिचय कराते हुए उन्हें कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया।
भाषा सिंह ने अपनी 12 कविताओं का पाठ किया। इनके शीर्षक इस प्रकार हैं- 'लहू में डुबोई क़लम की निब', 'सदाबहार ही रहना तुम', 'टोकरी उलीचने की शिद्दत', 'शब्द', 'तुम मेरे मरद नहीं', 'ढह जाओगे' 'नफ़रत', 'रिश्ते', 'अधूरापन', 'मौसमी फूल', 'अमलतास' और 'फिनिक्स हूं मैं'।
'प्रेम से उपजा जीवन प्रेम से ही बचेगा'
कार्यक्रम में अपनी बात रखते हुए कवि लेखक और राजनीतिक विश्लेषक अजय सिंह ने कहा कि ''भाषा की कविताएं अलग-अलग रंगों में हैं। 'क़लम की निब को लहू में डुबोने' से लेकर 'फिनिक्स हूं मैं' तक पहुंचती हैं। 'प्रेम से उपजा जीवन प्रेम से ही बचेगा' इन कविताओं में ये बार-बार ध्वनित होता है। ये कविताएं खुली हुई हैं। साहसिक हैं। आत्म सेंसर नहीं करतीं बल्कि वर्जनाओं से मुक्ति की कविताएं हैं। कविताओं में बिंब, प्रतीक erotic (श्रृंगारिक) और repulsive (प्रतिकारक) हैं। भाषा में बैरीकेड तोड़ने का हौसला बचपन से ही रहा है। हमारी इच्छाओं को भाषा की कविताएं पकड़ती हैं। अंतर्मन को समझती हैं।”
अजय सिंह ने कहा- “भाषा की कविताएं बाहर से अंदर और अंदर से बाहर का सफ़र करती हैं। भाषा, बिंब, प्रतीक, रूपक के स्तर को तोड़ती हैं। भाषा ने बारह कविताएं सुनाईं। हर कविता का texure (बनावट) और diction (शब्द-चयन) अलग-अलग है। यह भाषा के poetic (काव्यात्मकता) और artistic concern (कलात्मक चिंता) को भी बताता है। भाषा की 'टोकरी' कविता भावविह्ल कर देती है। यह सिर्फ़ मैला ढोने वालों तक सीमित नहीं है। ये उससे बाहर की संवदेनाओं को भी पकड़ती है।”
'तुम मेरे मरद नहीं हो'' पितृसत्ता यानी ब्राह्मणी पितृसत्ता को चुनौती देती है। 'नफ़रत' बहुत ज़रूरी कविता है। Leftwing Politcs (वामपंथी राजनीति) भाषा की कविता का मजबूत वैचारिक आधार है। कविताओं की विशेषता यह है कि ये Panorma creat (चित्रमाला का सृजन) करती हैं।'
दमन के ख़िलाफ़ कविताएं
कवि-कहानीकार शोभा सिंह ने भाषा सिंह की कविताओं पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा-'आज फ़ासीवाद सबको निगलता जा रहा है ऐसे में इस दमन के ख़िलाफ़ कविता बहुत ज़रूरी है। ऐसे नफ़रती दौर से टकराती कविताएं लिखना साहस का काम है। ये साहस भाषा ने दिखाया है। भाषा की कविता का फलक बहुत बड़ा है। कविताएं तमाम चुनौतियों का निर्भीकता से जबाव देती हैं। प्रेम भी उनकी कविताओं में शामिल है। मानवीयता को बचाने के लिए ऐसी कविताएं बहुत ज़रूरी हैं। युद्ध की विभीषका में लहू में डुबोली क़लम की निब बहुत मौजूं है।'
समय से मुठभेड़ करती कविताएं
नाटक विधा में अपनी विशेष पहचान बनाने वाले नाटक लेखक निर्देशक राजेश कुमार ने कहा कि भाषा की कविताओं में साहस है। दलित विमर्श बहुत अच्छी तरह निखर कर आया है। कविताएं साफ-साफ बात कहती हैं। कविता में वर्तमान सवालों को उठाया गया है। आज जो हालात हैं उस में ऐसी ही कविताओं की ज़रूरत है। समय से मुठभेड़ करती हैं ये कविताएं।
कत्थक नृत्य की गुरु निशा महाजन ने कहा कि भाषा सिंह की कविताएं बहुत सकारात्मक हैं। वरिष्ठ पत्रकार देवशीष ने कहा कि फूल और फिनिक्स कविताएं बहुत अच्छी कविताएं हैं। मनीष ने कहा कि अलग-अलग रेंज में भाषा जी ने बहुत अच्छा लिखा है।
लेखक स्वदेश कुमार सिन्हा ने कहा कविताएं अच्छी हैं। आमतौर पर पत्रकार कवि नहीं होते। पर भाषा में दोनों का बेहतरीन सामंजस्य है। बिंब-प्रतीक बहुत सुंदर हैं।
दीपक ढोलकिया ने कहा कि मुझे 'तुम मेरे मरद नहीं हो सकते', अमलतास, सदाबहार कवितांए बहुत अच्छी लगीं। बहुत दमदार कविताएं हैं ये।
वहीं पत्रकार कृष्ण सिंह ने कहा कि भाषा ने अपनी कविताओं में पत्रकारिता को हावी नहीं होने दिया है। मैलन दादी कविता का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि दलित और गैर दलित रचनाकारों की कविताओं में फ़र्क़ होता है। पर भाषा की कविता से यह नहीं लगता। मैलन दादी में शब्दों का चयन बहुत अच्छा है। यह कविता बहुत महत्वपूर्ण है। नये मिज़ाज की हैं भाषा सिंह की कविताएं।
महिला एक्टिविस्ट रितु कौशिक ने कहा कि जहां शोषण और अत्याचार है वहां महिलाएं किसी न किसी रूप में अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं। भाषा की कविताएं बहुत प्रेरणादायक हैं। ऊषा रमानाथन, डॉ. वाई. मोजेज और दीप्ति सुकुमार ने भाषा सिंह की कविताओं को बहुत महत्वूपर्ण बताया।
सफाई कर्मचारी आंदोलन के नेशनल कन्वीनर बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि स्त्री अनुभव से उपजी हुई हैं भाषा की कविताएं। उनकी कविताओं में विविधता है। स्वतंत्र सोच है। कविताएं विसंगतियों पर हमला करती हैं। कवि, लेखक धम्म दर्शन ने कहा कि बाउन्ड्री को तोड़ती हैं भाषा जी की कविताएं।
समकालीन परिदृश्य पर लिखीं बेबाक कविताएं
सामाजिक कार्यकर्ता सुलेखा सिंह ने कहा कि भाषा जिस बेबाकी और निडरता से पत्रकारिता करती हैं उतनी ही बेबाकी से कविताएं लिखती हैं। उन्होंने तत्कालीन और समकालीन विषयों को अपनी कविताओं में उठाया है। उनकी कविता के फूल जितने कोमल होते हैं उतने ही संवेदनशील होते हैं। उतना ही संघर्ष करते हैं। धूप का, बारिश का, आंधी-तूफान का सामना करते हैं। इन कविताओं का संग्रह प्रकाशित होना चाहिए।
कवि-पत्रकार इंदिरा राठौर ने कहा कि प्रकृति पर लिखी भाषा की कविताएं बहुत अच्छी हैं। ज़िंदादिली, हौसला, जीवट बना रहे। फिनिक्स वाला पहलू सबसे मज़बूत है। उसे सदा बनाए रखें। पत्रकार नाज़मा ख़ान ने कहा कि एक से एक बेहतरीन कविताएं हैं। कुदरत से जुड़ी हैं और समाज में जो अभी चल रहा है उसका बेबाक चित्रण करती हैं।
खिलखिल भाषानंदिनी ने कहा कि ऐसे माहौल में ऐसी कविताओं से हौसला मिलता है। 'नफरत' वाली कविता बहुत अच्छी लगी। छात्र भाषानंदिनी खिलखिल ने कहा कि ऐसे माहौल में ऐसी कविताओं से हौसला मिलता है। 'नफ़रत' वाली कविता बहुत अच्छी लगी।
छात्र एक्टिविस्ट सखी ने कहा कि भाषा सिंह की कविताओं में विविधता है। पत्रकारिता के कारण उनकी कविताएं और निखरी हैं क्योंकि वे पत्रकार होने के कारण जमीनी स्तर से जुड़ी हैं। उनकी कविताएं संघर्षशील हैं और Student life में संघर्ष की प्रेरणा देती हैं।
दीपक ने कहा कि भाषा की कविताओं में हमनें उन आवाजों को सुना जिन्हें दबाया जा रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता के. अनुराधा ने कहा कि कविता में भाषा अपना पक्ष बहुत मज़बूती से रखती हैं। अन्याय के ख़िलाफ़ इस तेवर को जारी रखें।
पत्रकार श्रीराम शिरोमणि ने कहा कि भाषा की कविताएं सोचने-विचारने, जूझने की प्रेरणा देती हैं। वो हमारे दिल से डर को ख़त्म करती हैं। वे यह संदेश देती हैं कि बिना लड़े कुछ पा नहीं सकते। जुझारूपन और संघर्ष उनकी कविताओं में दिखता है।
सफाई कर्मचारी आंदोलन में काम करने वाली मेघा ने कहा कि भाषा की कविताएं बड़े परिप्रेक्ष्य की हैं और हमें बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देती हैं। सामाजिक कार्यकर्ता आकांक्षा गौतम ने कहा कि भाषा स्वयं और उनकी कविताएं हमेशा मुझे प्रेरणा देती हैं।
पत्रकार, यायावर और गुलमोहर किताब (प्रकाशन) को संभाल रहे उपेन्द्र स्वामी ने कहा कि भाषा सिंह जिस ज़मीनी स्तर से जुड़ी हैं उसमें वे कविताएं न लिखतीं तो आश्चर्य होता। भाषा कविता में जीती हैं। कविता में सोचती हैं। उन्होंने भाषा सिंह की कुछ ऐसी कविताएं सुनाईं जिन्हें भाषा जी खुद भी भूल-बिसरा चुकी थीं। पर वे भी बहुत खूबसूरत कविताएं थीं। उदाहरण के लिए - ''बच्चे की हंसी सी अगर हो दुनिया तो दुनिया कितनी हसीन हो।''
कवि और पत्रकार मुकुल सरल ने संचालन से इतर अपनी बात रखते हुए कहा कि भाषा सामूहिक रूप से इतनी जुड़ी हैं कि उनका एकांत भी अपना नहीं है। भाषा की कविता की स्त्रियां 'अमन की बेटियां' हैं और उनको हौसला इन्हीं अमन की बेटियों से मिलता है।
कार्यक्रम के अंत में सभी मेहमानों और कार्यक्रम के लिए जगह उपलब्ध कराने के लिए सफाई कर्मचारी आंदोलन का धन्यवाद किया गया। कार्यक्रम में छात्र, प्रोफ़ेसर, लेखक, पत्रकार, कवि, शिक्षाविद्, सामाजिक कार्यकर्ता, कानूनविद् आदि विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों ने भागीदारी की।
कार्यक्रम में कुल पांच प्रस्ताव रखे गए जिन्हें सभी ने ध्वनिमत से पारित किया। ये प्रस्ताव संक्षेप में इस प्रकार हैं—
1. फ़िलिस्तीन और इज़रायल के बीच संघर्ष में हम फ़िलिस्तीन और फ़िलिस्तीनी जनता के साथ अपनी एकजुटता जताते हैं। गाज़ा में जो कुछ हो रहा है, वह जनसंहार है, जिसे तुरंत रोका जाना चाहिए। हम मांग करते हैं कि फ़िलिस्तीन में इज़रायल अपना सैनिक हमला फ़ौरन रोके और कब्जा किये गये इलाकों को खाली करे।
2. हम समाचार पोर्टल न्यूज़क्लिक और इसके पत्रकारों पर दिल्ली पुलिस की उत्पीड़क, दमनकारी कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हैं। यह प्रेस की आज़ादी पर गंभीर हमला है। हम मांग करते हैं कि गिरफ्तार किये गये न्यूज़क्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और वरिष्ठ अधिकारी अमित चक्रवर्ती को फ़ौरन रिहा किया जाये, उन पर लगाये गये झूठे मामले वापस लिये जायें, अन्य पत्रकारों पर उत्पीड़क कार्रवाइयां बंद की जायें, और उन सभी के जब्त किये गये लैपटाप, टेलीफोन और अन्य सामान उन्हें तुरंत लौटा दिये जायें।
3. वर्ष 2010 में दर्ज की गयी प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) पर अब, अक्तूबर 2023 में, दिल्ली के उपराज्यपाल ने लेखक अरुंधति राय और कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूतपूर्व प्रोफ़ेसर शेख शौकत हुसैन पर मुक़दमा चलाने की मंजूरी दिल्ली पुलिस को दी हैहम इसकी कड़ी भर्त्सना करते हैं और इस मामले को ख़त्म करने की मांग करते हैं।
4. कुछ दिन पहले गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में शांतिपूर्ण जन आंदोलन के सिलसिले में गिरफ़्तार किये गये आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के अध्यक्ष एसआर दारापुरी, पत्रकार रामू सिद्धार्थ, सामाजिक कार्यकर्ता श्रवण कुमार निराला और अन्य कार्यकर्ताओं की रिहाई की हम मांग करते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की पुलिस की ओर से की गयी इस दमनकारी कार्रवाई की हम निंदा करते हैं।
5. कुछ दिन पहले कश्मीरी पत्रकार सफ़ीना नबी को पुणे (महाराष्ट्र) आकर पत्रकारिता के लिए पुरस्कार लेने से रोक दिया गया और पुरस्कार वितरण कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया। हम इस कार्रवाई की निंदा करते हैं।