ये उन दिनों की बात है जब फूलन देवी की मां भूख से मरने की कगार पर थीं
भय, भूख और भीख मांगने की हालत में पहुंच चुकी दस्यु सुंदरी फूलन की मां का साक्षात्कार 5 साल पहले तब लिया गया था, तब तक फूलन की बहन की दवा के अभाव में मौत नहीं हुई थी...
'सब मजाक उड़ाते हैं, कहते हैं डर जाओ...वो देखो फूलन की मां आ रही है'
दस्यु और पूर्व सांसद फूलन देवी की मां मूला देवी का अजय प्रकाश द्वारा किया गया पहला विस्तृत साक्षात्कार
करीब अस्सी वर्ष की हो चुकी पूर्व सांसद फूलन देवी की मां मूला देवी से उनके गांव गढ़ा का पुरवा में बातचीत शुरू हुई तो उनके पास हासिल करने या विजित होने का कोई ऐसा इतिहास नहीं था, जिसे वह बता सकें। उनके पास बेचारगी, मजबूरी, फांकाकसी, दरिद्रता का ऐसा वर्तमान है, जो बताने का मोहताज नहीं, बल्कि खुद ही बहुत-बहुत साफ हर आंख को बयां हो जाता है। बयां होते उन्हीं हालातों पर, फूलन से जुड़ी यादों पर, फूलन की मौत के बाद उनकी ही संपत्ति पर ऐश कर रहे दामाद उम्मेद सिंह पर, दुनिया के बदले व्यवहार पर और बहुत से अनकहे रह गए जवाबों पर अपनी परित्यक्तता बेटी रामकली के साथ रह रहीं फूलन की मां मूला देवी ने पहली बार विस्तार से दिल खोलकर बोला है और भोगे जा रहे सच को हू-ब-हू रख दिया है...
आप एक पूर्व सांसद की मां हैं? आप इस हाल में हैं, जहां घर में एक नल तक नहीं है?
नल? पहले रसोई में जाकर देखो अनाज है। वहीं बगल में सब्जी की टोकरी है उसमें देखना सब्जी है? ऊपर देखना तेल, मसालों, हल्दी के डब्बे में कुछ है। नहीं न। और तुम नल की कहते हो। जहां अनाज नहीं वहां नल कौन लगवाएगा। पैसा नहीं है हमारे पास। एक-दो रुपया तक नहीं है। अरे, पानी तो बगल से भी मांग लेंगे। नदी से कोई ला कर दे देगा। पानी का हो जाएगा। पर अनाज? एक दाना नहीं है घर में। सुबह जुटता है और सुबह ही खा लेते हैं। फिर शाम को जुटा तो ठीक नहीं तो पेट दाबकर सो जाते हैं। हम मां-बेटी का इसी कोशिश में 24 घंटा गुजरता है कि नहीं दोनों समय तो कम से कम एक समय तो पेट में दाना जाने की गारंटी हो जाए।
लेकिन एक समय खाने का इंतजाम कैसे हो रहा है?
मांग कर या कोई कुछ दे जाता है। तुम्हारे आने से पहले तीन-चार लड़के आए थे, बोल गए हैं वह कुछ कल अनाज दे जाएंगे। लड़के अच्छे थे, शायद दे ही जाएं। दो दिन पहले एक भिखमंगा आया था। बड़ी धूप थी। यहीं बैठ गया। पानी मांगने लगा, रामकली ने उसे पानी दिया। उसने हमारी हालत देखी। उसे रहा नहीं गया और वह अपने मांगे में से दो किलो आटा, दो-तीन आलू, थोड़ी दाल दे गया। दो दिन से वही चल रहा है। चीनी-चायपत्ति भी नहीं है जो तुम लोगों को चाय पिलाएं। देख रहे हो कितनी गर्मी है पर यही हाथ का पंखा है बस। हमारे घर में बिजली भी नहीं है, पंखे की कौन कहे।
पर सरकार गरीबों को राशन मुफ्त दे रही है, आपको उसका लाभ क्यों नहीं मिल रहा?
लाभ तो तब मिलेगा जब राशन कार्ड बनेगा। राशन कार्ड बनाने के लिए कोटाधारक घूस मांगता है। पूरे पांच सौ। जिन्होंने दिया है उनका बना है और कुछ का बनने वाला है। सब कहते हैं मेरा नहीं बनेगा, क्योंकि मैंने घूस नहीं दिया है। मैं बुढ़ी हो चुकी हूं। बीमार रहती हूं। मेरे पास ईलाज के पैसे नहीं है। घूस कहां से दुंगी। वह भी पांस सौ। दस-बीस होता तो किसी से मांग कर दे भी देती। पर पांच सौ कहां से होगा। पता नहीं कैसे पेट पलेगा। कोई काम भी नहीं। बेटी रामकली को भी काम नहीं मिलता, नरेगा का काम बंद है।
आपकी बेटी रामकली नरेगा में मजदूरी करती हैं?
तो क्या करेगी। खाए बिना मरें हम। इससे क्या हुआ कि सांसद की बहन है? और हम पूर्व सांसद की मां। कौन कद्र है हमारी। घर में अनाज नहीं तुम पूछते हो नरेगा करती है? जनवरी से काम बंद है। तीन महीने का पैसा भी नहीं मिला इसे नरेगा में मजदूरी का। 10 हजार हमारा सरकार पर बकाया है। पूरे गांव का बकाया है, पता नहीं पूरे जिले का भी हो। सरकार के पास सबको बांटने के लिए पैसा है पर गरीब आदमी की मजदूरी देने की बारी पर खजाना खाली है। अब काम मिले फिर हम भी चले जाएं नरेगा में मजदूरी करने। खाने के लिए किसी से मांगना नहीं पड़ेगा न। पर पैसा नहीं मिलता। इसके बारे में तुम लिखना कि रामकली ने तीन महीना नरेगा किया पर उसके खाते में कोई पैसा नहीं आया। लोग बता रहे थे मोदी सरकार नरेगा में भ्रष्टाचार बताती है, इसलिए काम बंद है, पैसा बंद है। तो तुम बताओ, काहे काम में
भ्रष्टाचार नहीं है। भ्रष्टाचार तो सरकार में भी है फिर मोदी अपना काम काहे नहीं बंद कर देते हैं। अभी बताए तुमको हम राशन कार्ड के बारे में, इसी तरह लेखपाल बहुत भ्रष्ट है। का भ्रष्टाचार के कारण सब काम सरकार बंद कर देगी, फिर देश चलेगा कैसे?
लेखपाल ने आपके साथ क्या किया?
करेगा क्या? उससे पचासों बार कह चुके हैं कि मैयादीन ने हमारी जो चार बीघे जमीन कब्जाई उसकी नापी कर दो और हमारी जमीन दिलवा दो। पर वह सुनता ही नहीं। मैयादीन उसको पैसा खिला देता है और लेखपाल मेरी बात सुनता नहीं। मैयादीन हमारे जेठ का बेटा है। जबतक फूलन थी तबतक हम उस पर खेती करते थे पर उसके मरने के बाद उसने फिर चार बीघा पर कब्जा कर लिया है। कई बार उरई भी गए कलेक्टर के यहां। विधायक से भी एक-दो बार कहे पर कोई सुनता ही नहीं। हां, सब मजाक जरूर बनाते हैं। कहते हैं, हटो भाई हटो, दूर हटो, डर जाओ, पूर्व सांसद और दस्यू फूलन की मां आ रही है। मैं क्या कहूं किसी को। अखिलेश यादव मिलें फिर उन्हीं से यह दुख कहूं।
फूलन समाजवादी पार्टी से ही सांसद थीं, मुलायम सिंह उन्हें पार्टी में लेकर आए थे। फूलन के मरने के बाद कभी कोई आया मिलने?
कौन आएगा मिलने। बेटा, दरिद्रता अपने आप में एक जाति है और अमीरी एक दूसरी जाति। सब फूलन से इसलिए मिलने आते थे कि वह अपनी दरिद्रता वाली जाति बदल रही थीं। पर हम उनकी जाति वाले नहीं हैं न। फूलन की हत्या के बाद हमने तुमसे बड़ा कोई आदमी अपने घर आते नहीं देखा। कभी कोई पत्रकार भी नहीं आया। हां, शुरू में जब फूलन डाकू से सांसद बनी तब जरूर कुछ लोग एकाध-बार आए थे। अच्छा एक बात सुनो। तुम अखिलेश यादव या मुलायम सिंह यादव से जब मिलना, मिलते हो न, फिर पूछना वह भूल गए फूलन की मां को। पैदल चल नहीं सकती, कहीं जाने के लिए किराया है नहीं। अगर होता तो खुद जाती और मुलायम सिंह यादव से पूछती कि फूलन मरी है, हम जिंदा हैं अभी। अपने अधिकारियों से, लेखपाल, कानूनगो से हमें जिंदा क्यों मरवा रहे हो। राशन कार्ड वाले और लेखपाल को डांटो कि हमारा हक हमें वह दिलवाएं, नहीं तो हम तुम्हारे दरवाजे ही मर जाएंगे।
पर फूलन ने जो संपत्ति बनाई, सांसद बनने के बाद जो जमीन और फ्लैट खरीदा या फिर जो उनकी मौत के बाद सरकार ने जो पैसा दिया, वह सब कौन ले गया?
ले गया उम्मेद सिंह। दिल्ली के पास कहीं नोएडा या ककरौला में रहता है। फूलन के पैसे से वह ऐश कर रहा है। नेता बनने के बाद फूलन ने उसी से शादी की थी न। वह कभी हमें गलती से भी पूछने नहीं आया। हमें तो यह भी नहीं पता कि वह कौन है, क्या करता है। वह मर भी गयी पर हमारी जिंदगी नहीं बदली। फूलन ने बाहर वालों के लिए जो किया हो, किया होगा। पर हमें वह जीते जी भी मुश्किल में डाले रही और मरने के बाद हमारी हालत तुम देख ही रहे हो। सांसद बनने के बाद वह मिर्जापुर और दिल्ली में रही, शायद एक बार गांव आई थी।
जीते जी कैसी मुश्किल देती रहीं फूलन?
फूलन के साथ दुष्कर्म होने के बाद जब वह बदला लेने के लिए डाकू बन गयी फिर घर की तीन बार कुर्की हुई। हर दो-चार दिन पर पुलिस रेड मारती थी। सभी भागे-भागे फिरते थे। मेरा बेटा शिवनारायण बहुत छोटा था, उसे भी मेरे जेठ के बेटे ने पुलिस से उठवा दिया। मेरे जेठ के बेटे मैयादीन ने ही फूलन को डाकुओं को खबर कर उठवाया था। फूलन ने जब तक सरेंडर नहीं किया, तब तक वह दुनिया के लिए हीरो बनती रही और हमारी दुर्दशा होती रही। मैं बेटे को लेकर इधर-उधर छुपती फिरती थी, तब भी खाने के लाले पड़ जाते थे। उसके बाद उसने सरेंडर किया, फिर सांसद बनी। उसने सांसद बनने के बाद हम पर आते-जाते नजर भले डाल ली हो पर कभी हमारी हालत पर गौर नहीं किया।
आपकी बेटी फूलन पर सिनेमा बना, दुनिया में बहुत चर्चा हुई, उसे सराहा गया, फिल्म को बहुत सारे पुरस्कार मिले पर आपको क्या मिला?
पूछते हो, मुझको क्या मिला। मेरे बताने के लिए कुछ रह गया है क्या। देख लो यह घर, दीवारें, रसोई पता चल जाएगा कि हमको किसी ने क्या दिया। फिर भी न समझ में आए तो हमारी चादरें, खटिया और तन पर पड़ी साड़ी देखो कि यह चिरकुट है या कपड़ा। सिनेमा बनाने के बाद वह एक बार झांकने आए नहीं, देंगे क्या। मैं तो यह भी नहीं जानती कि क्या सिनेमा बना, कैसा है और किन लोगों ने बनाया। हां, जब फिल्म बन रही थी तो गांव में बड़ी चर्चा थी कि फूलन पर फिल्म बन रही है। फिर लोगों से ही सुना कि फिल्म बन भी गई है। कोई शेखर कपूर है न फिल्म बनाने वाला। उसने तब कहा था आउंगा मिलने पर वह भी नहीं आया। हमारे पास जो आता है, बस बातें बनाकर चला जाता है। हो सकता है, बातें बनाने से उनका कुछ बदल जाता हो पर हमारा कुछ नहीं बदलता। हम जस के तस ही रहे, चाहे फूलन छोटी रही, बड़ी हुई, दस्यू बनी या सांसद होने पर मार दी गयी।
मेरे पास उतना भी नहीं जितना मां के पास है - रामकली
फूलन की मां के साथ उनकी सबसे छोटी बेटी रामकली रहती हैं। उन्हें उनके पति ने छोड़ दिया है और वह मां के साथ परित्यक्तता स्त्री का जीवन बसर कर रही हैं। वह मां के घर में रहती हैं, क्योंकि उनको मां ने रहने के लिए जो झोपड़ी दी है वह रहने लायक ही नहीं है। वह अपनी मां को बनाकर खिलाती हैं और उसके बदले उन्हें जिंदा रहने भर को खाना मिल जाता है। रामकली की हालत मां से भी गई बीती है, क्योंकि उन पर सूदखोर का कर्ज और खुद को जिंदा रखने की चुनौती है।
रामकली बताती हैं, 'मेरा बेटा मोहन मजदूरी करने जा रहा था कि ट्रेन से टकरा उसकी खोपड़ी फट गयी। कई महीने कोमा में रहा। जो कुछ था सब बिक गया, सुदखोर से 50 हजार लेने पड़े। बेटा ठीक हुआ, उसने मजदूरी शुरू की और मैंने भी। कर्ज दिया पर अभी भी 10 हजार बकाया है।' रामकली हर बात में हाथ जोड़ लेती हैं, वह कहती हैं कैसे कटेगी मेरी जिंदगी। मर्द छोड़ गया, बच्चे इस काबिल हैं नहीं और मुझे कोई काम मिलता नहीं। करीब 45-50 की हो चुकी रामकली की बस एक ही तमन्ना है कि फिर से उनका नरेगा कार्ड बन जाए और मजदूरी मिलने लगे तो वह अपनी झोपड़ी रहने लायक बनाएं।
वह कहती हैं, 'कई बार रोने का मन करता है। मां भी झुंझला के कहती है, हम का करें तुम्हारा। आप देख ही रहे हैं उसके पास क्या है। मेरा कोई रास्ता आप बताइए। कुछ पैसा मिलने लगे।' रामकली हमें अपने झोपड़ी में ले जाती हैं। फूस उजड़ चुका है पर वह रोज वहां आकर उसे लीप-पोत जाती हैं। रामकली के शरीर पर एक ब्लाउज और पेटीकोट है। पूछने पर कि आपके पास कितनी साड़ियां हैं? वह हंसती हैं।
फिर आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं। वह कहती हैं, 'है एक साड़ी। वह भी साड़ी क्या है, लेकिन है। कहीं जाने पर उसे ही लपेट लेती हूं। उसे घर पर पहन लिया तो बाहर ऐसे ही जाना पड़ेगा। कई जगह फटी है, उसी को सील के पहनती हूं।' जब हम उनकी झोपड़ी से निकलने को होते हैं तो वह कहती हैं, 'एक बात कहूं।' जी कहिए? वह बताती हैं, 'मैं पानी लेने जाती हूं तो बहुत सांस फूलती है, लगता है गिर जाउंगी। कई दिन से हो रहा है। कई बार सोचा डॉक्टर के पास जाउं। पर पैसा नहीं है। आप कुछ दे सकते हैं। कुछ भी जिससे दो-चार टैबलेट मिल जाए, सांस फूलना बंद हो जाए।'
मैंने उनके सामने हाथ जोड़ा, जो दे सकता था दिया और नजर झुकाए गांव से बाहर निकल गया। आज भी फूलन की मां का एक जवाब बार-बार मन में आइने की तरह चमकता है, 'हमारे पास जो आता है, बस बातें बनाकर चला जाता है। हो सकता है, बातें बनाने से उनका कुछ बदल जाता हो पर हमारा कुछ नहीं बदलता।'
(सबसे पहले फूलन देवी की मां और बहन का यह साक्षात्कार 5 साल पहले दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ था।)