गिरिडीह में नक्सल के नाम पर आदिवासी की हत्या से उबला आक्रोश, 3 जुलाई को गिरिडीह बंद

Update: 2017-06-24 09:47 GMT

विशद कुमार

21 जून को दमन विरोधी मोर्चा भले ही नक्सल मुठभेड़ के नाम पर पुलिस गोली का शिकार मोतीलाल बास्के की मौत के विरोध में गिरिडीह के अंबेडकर चौक पर धरना दिया और डीसी कार्यालय को बास्के की मौत की न्यायायिक जांच, स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने संबंधी मांग सहित दोषी पुलिस कर्मी पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने और मृतक के परिवार को 25 लाख रूपेय का मुआवजा देने की मांग की। मोर्चा ने यह भी संदेश दे दिया कि झारखंड में नक्सल विरोधी अभियान के नाम पर निर्दोष लोगों की पुलिस द्वारा की जा रही हत्याओं पर झारखंडी जनता चुपचाप नहीं बैठ सकती।

नक्सल के नाम पर हुई मोतीलाल की हत्या के प्रतिरोध स्वरूप 14 जून को क्षेत्र के कई राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों द्वारा महापंचायत का आयोजन किया गया जिसमें लगभग 5 हजार लोगों की भागीदारी रही। सभी लोग पारंपरिक हथियारों से लैश थे। पुलिस के खिलाफ नारेबाजी सहित पूरे मधुबन में रैली निकाली गई और मृतक के परिवार को 15 लाख का मुआवजा एंव आश्रित को नौकरी व पुलिस पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग की गयी।

रैली की समाप्ति के बाद मधुबन थाना में पुलिस के खिलाफ मोतीलाल बास्के की पत्नी पार्वती देवी द्वारा अपने पति की हत्या का मामला दर्ज कराया गया। महापंचायत में ही तय कर लिया बया था कि 17 जून को मधुबन बंद रहेगा वहीं 21 जून को गिरिडीह डीसी कार्यालय के सामने धरना देने के साथ ही डीसी को एक मांगपत्र भी दिया जाएगा और 2 जुलाई को मशाल जुलूस सहित 3 जुलाई को पूरा गिरिडीह जिला बंद किया जाएगा। दूसरी ओर प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) का उत्तरी छोटानागपुर जोनल कमिटी ने एक प्रेस बयान जारी कर स्पष्ट किया कि मोतीलाल बास्के का माओवादी से कुछ भी लेना देना नहीं था। वह संगठन का सदस्य नहीं था। वह एक डोली मजदूर था।

मालूम हो कि 9 जून को झारखंड के पारसनाथ पहाड़ी पर 15 लाख का इनामी जिस नक्सली को मारकर पुलिस अपनी पीठ थपथपा रही थी वह आखिरकार एक मजदूर निकला। मामले पर पुलिस की किरकिरी तब शुरू हो गई जब नक्सली बताकर मारा गया मजदूर मोतीलाल बास्के की हत्या के विरोध में क्षेत्र के कई राजनीतिक दलों व सामाजिक संगठनों ने पुलिस के खिलाफ मोर्चा खोला। इन संगठनों द्वारा मधुबन में महापंचायत बुलाया गया जिसमें लगभग पांच हजार की भीड़ उमड़ पड़ी।

10 जून 2017 को हिन्दुस्तान अखबार के प्रथम पृष्ठ पर खबर के साथ एक तस्वीर दिखी और लिखा था ‘पारस नाथ में नक्सली ढेर, एसएलआर और कारतूस बरामद’। मारा गया तथाकथित नक्सली लूंगी और काले रंग का टी-शर्ट पहने हुए था। उसकी लाश के बगल में एक रायफल थी जो पुलिस के मुताबिक एसएलआर थी। जूते बिखरे हुए थे जो देखने में फौज के लग रहे थे। तस्वीर से ही जूते के साइज इस बात की चुगली करे रहे थे कि यह जूता तो कतई कथित मृतक नक्सली का नहीं है। लाश की स्थिति एवं पहने हुए कपड़े भी इस खबर पर अविश्वास ही पैदा कर रहे थे कि मारा गया व्यक्ति नक्सली है और वह भी मारक दस्ते का।

खबर के मुताबिक मृतक का 15 लाख का इनामी नक्सली रघुनाथ महतो होने की संभावना थी। अखबार के मुताबिक एक अन्य नक्सली को भी गोली लगने की संभावना जताई गयी थी जो साथियों के साथ भागने में सफल रहा था। अखबार कई नक्सलियों का इलाके में छुपे रहने की आशंका भी जता रहा था जो जाहिर है पुलिस के बयान पर ही आधारित खबरें थी। गिरिडीह के कई पत्रकारों से बात करने पर पता चला कि मृतक रघुनाथ महतो नहीं है। बल्कि वह एक आदिवासी डोली मजदूर मोतीलाल बास्के है। पुलिस की भूमिका पर पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि राज्य के डीजीपी डीके पाण्डेय मधुबन आए हुए हैं और जिले की पुलिस और सीआरपीएफ कोबरा बटालियन की हौसला आफजाई कर रहे हैं।

डीजीपी ने गिरिडीह के एसपी अखिलेश बी वारियर को 1 लाख रूपये नकद दिया है कि वे जवानों के साथ जश्न मनावें। डीजीपी ने जवानों से कहा है कि नक्सली मारते जाइए और इनाम पाते जाइए। उन्होनें जवानों को यह भी बताया कि गिरिडीह को इनाम की राशि 15 लाख रूपये भी दिये गये हैं। वहीं 11 लाख रूपये की राशि कोबरा जवानों को दिया गया है। 274 लाख रूपये का इनाम राशि आलमारी में बंद है। नक्सली मारिए और इनाम लेते जाइए। ऐसा लगता है कि डीजीपी राज्य के एक आला पुलिस अधिकारी न होकर हत्या की सुपारी देने वाला कोई माफियाई है।

9 जून को ही यह खुलासा हो गया था मारा गया कथित नक्सली मोतीलाल बास्के है। मगर पुलिस 11 जून दिनभर मृतक के नाम का सार्वजनिक खुलासा नहीं कर सकी। 11 जून की रात साढ़े दस बजे पुलिस द्वारा मधुबन थाना में मृतक का नाम मोतीलाल बास्के और भाकपा (माओवादी) के मारक दस्ता का सदस्य बताते हुए प्राथमिकी दर्ज की गयी। प्राथमिकी में दर्ज किया गया कि मुठभेड़ के बाद नक्सली मोतीलाल बास्के के शव के पास एक हथियार, सैकड़ौं जिंदा कारतूस, एक पिट्ठू, एक वर्दी, एक कपड़ा, नक्सली साहित्य, इलेक्ट्रोनिक मल्टीमीटर सहित कई सामान बरामद हुए। 

झारखंड पुलिस अपनी पीठ थपथपा ही रही थी कि क्षेत्र का मजदूर संगठन मजदूर संगठन समिति, आदिवासियों का सामाजिक संगठन मरांड बुरू सांवता सुसार बैसी, झारखंड मुक्ति मोर्चा भाकपा (माले), जेवीएम के प्रतिनिधियों ने कहा है कि नक्सली के नाम पर जिसे मार कर पुलिस वाह-वाही लूट रही है, वह वास्तव में एक आदिवासी डोली मजदूर मोतीलाल बास्के है जो पारसनाथ की शिखर पर एक छोटी दुकान भी चलाता था।

उल्लेखनीय है कि पारसनाथ पहाड़ का जैन धर्मावलंबियों का विश्व स्तरीय धर्म स्थलों में पहला नंबर पर है। यहां विश्व के कई देशों के दर्शानार्थी व जैन धर्मावलंबी आते हैं जिसे पहाड़ी की चोटी तक पहुंचाने का काम क्षेत्र के मजदूर करते हैं। उन्हें कुर्सीनुमा डोली में बिठाकर चार मजदूर कंघों पर उठाकर शिखर तक ले जाते हैं।

 

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