MP में मुस्लिम और आदिवासी इलाकों में रहने वाले ईसाइयों पर बढ़ रहे हमले, CPM राज्य सम्मेलन में असल हालात हुए बयां
पिछड़ी जातियों के कुछ समूहों को दलित-आदिवासियों के उत्पीड़न की लाठी के रूप में इस्तेमाल करने की ‘चतुराई’ के बावजूद सामन्तवादी ताकतें इन ओबीसी समुदायों को भी अपना निशाना बनाने से बाज नहीं आ रहीं...
MP News : डॉ अम्बेडकर नगर (महू)! डॉ अम्बेडकर नगर महू में 15-17 दिसंबर को आयोजित सीपीएम के राज्य सम्मेलन में पहले दिन राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने राजनीतिक सांगठनिक रिपोर्ट का पहला भाग प्रस्तुत किया। इसमें प्रदेश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक स्थिति की विवेचना करती इस रिपोर्ट में कॉरपोरेटी साम्प्रदायिकता की बढ़त के लिए की जा रही साजिशों का ब्यौरा रखा गया है।
दिनभर चली कार्यवाही में माकपा राज्य सम्मेलन ने एक प्रस्ताव पारित कर परम्परागत रूप से सौहार्द्र की पहचान रखने वाले मध्यप्रदेश में बढ़ती साम्प्रदायिक प्रवृत्ति की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है और ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार सत्ता पार्टी भाजपा, उसके नियंत्रणकारी संगठन आरएसएस तथा उसके आनुषांगिक संगठनों और राज्य सरकार के इशारे पर असंवैधानिक काम करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के हिस्से की इनमें संलिप्तता की भर्त्सना की है।
प्रस्ताव में दर्ज किया गया कि लोकसभा चुनावों में देश में भाजपा को लगे धक्के और मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से प्रदेश में साम्प्रदायिकीकरण की मुहिम बहुत तेज की जा रही है, पर्वों, त्यौहारों, उत्सवों को भी इसका जरिया बनाया जा रहा है, कथित पवित्र नगरी के नाम पर विशेषकर मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर पाबन्दियां लगाई जा रही हैं, आदिवासी इलाकों सहित जहां भी थोड़ी बहुत संख्या में ईसाई हैं, वहाँ उन पर हमले और किसी न किसी बहाने उन्हें परेशान करने की घटनाओं में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है।
यह सब ध्यान बंटाने के इसलिए किया जा रहा है, ताकि अडानी—अम्बानी जैसे कार्पोरेट्स के मुनाफों की लूट और बेरोजगारी सहित आमजन की बदहाली से ध्यान बंटाया जा सके। सम्मेलन ने साम्प्रदायिक ताकतों की कारपोरेट पूँजी के साथ घनिष्ठ रिश्ते का पर्दाफ़ाश करते हुए, इससे बढती जनता की मुश्किलों के खिलाफ आन्दोलन विकसित करते हुए धर्म को राजनीति से अलग रखने, धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक लोकतंत्र की हिफाजत करने की मुहिम तेज करने का आव्हान किया है।
माकपा राज्य सम्मेलन ने प्रदेश में सामाजिक रूप से वंचित समुदाय विशेषकर महिलाओं, दलित तथा आदिवासियों की स्थिति के लगातार बदतर होते जाने पर क्षोभ और आक्रोश व्यक्त किया है। मध्यप्रदेश देश का एक ऐसा राज्य है जहां आजादी के बाद से, इधर से हो या उधर से, पूर्व राजा रानियाँ, जमींदार और उनकी पालकी ढोने वाले ही राजनीति पर अपना वर्चस्व जमाये रखे रहे। जिसके चलते आर्थिक रिश्तों, सामाजिक संबंधो तथा सोच के मामले में सामन्ती असर पर निर्णायक प्रहार हुआ ही नहीं। अधिकांश मामलों में भूमि सुधार, छुआछूत निर्मूलन और सबके लिए शिक्षा तथा समानता सुनिश्चित करने के वे कदम भी नहीं उठाये गए, जिनका भारत के संविधान ने साफ साफ़ समय निर्धारित करके स्पष्ट प्रावधान किया था।
माकपा ने कहा है कि अनेक बगावती महिला नेत्रियों की एतिहासिक विरासत वाला यह प्रदेश हर रोज 17 बलात्कार की घटनाओं के दर्ज होने के साथ बलात्कार प्रदेश बन गया है और इस जघन्य अपराध के मामले में देशभर में पहले स्थान पर आ गया है। महिला सशक्तीकरण के जितने गाल बजाये गए उतनी ही तेजी के साथ स्त्रियों–नाबालिग़ बच्चियों और वृद्धाओं की यातनाएं बढ़ीं। आदिवासियों को प्रताड़ित करने वाली घटनाओं में भी मध्य प्रदेश देश में पहले स्थान पर होने का शर्मनाक रिकॉर्ड कायम किये हुए है, किन्तु लगता है हुक्मरान इतने भर से भी संतुष्ट नहीं हैं इसलिए अब यह उत्पीड़न सीधी जैसी घटनाओं के साथ अनुसूचित जनजाति के छात्र छात्राओं के हॉस्टल को भी यातना गृहों में बदलने में लगा हुआ है।
दलित उत्पीड़न के मामले में योगी शासित यूपी और भाजपा शासित राजस्थान में हुई बढ़त के चलते मध्यप्रदेश भले तीसरे स्थान पर दिखता हो, किन्तु वास्तव में इनकी संख्या, विस्तार और तरीकों में बढ़ोत्तरी हुई है और जारी है। पिछड़ी जातियों के कुछ समूहों को दलित-आदिवासियों के उत्पीड़न की लाठी के रूप में इस्तेमाल करने की ‘चतुराई’ के बावजूद सामन्तवादी ताकतें इन ओबीसी समुदायों को भी अपना निशाना बनाने से बाज नहीं आ रहीं। चम्बल से नर्मदा होते हुए बुन्देलखण्ड तक प्रदेश के सभी इलाकों में इनका उत्पीड़न भी बढ़ा है।
सीपीएम ने सामाजिक उत्पीडन के खिलाफ संघर्ष को तेज करने का संकल्प लिया है। इसके लिए भूमि, रोजगार, शिक्षा तथा आर्थिक रूप से विशेष अवसरों के लिए लड़ाई लड़ते हुए जनता के बीच जेंडर और जाति की सही समझ विकसित करने के लिए सतत अभियान चलाने, आदिवासियों की संस्कृति और मान्यताओं को खास तरीके से ढालने की योजनाबद्ध साजिशों के खिलाफ जागरण करने, दलितों के शोषण के विरूद्ध व्यापक लामबंदी करने, महिलाओं को संगठित करने के विशेष प्रयत्नों को प्राथमिकता पर लेने के साथ इस तरह के शोषण की हर घटना में हस्तक्षेपकारी सक्रियता का आह्वान करता है।
सम्मेलन ने खेती किसानी, कृषि संकट के बारे में प्रस्ताव में कहा कि लागत में बेतहाशा वृद्दि होना, सिंचाई की स्थिति भी ठीक न होना, बिजली का संकट हर रूप में दिखना, समय पर खाद बीज और कीटनाशक का न मिलना, मिलना तो अमानक गुणवत्ता और नकली वह भी ब्लैक मार्केट में मिलना, प्राकृतिक आपदाओं के समय सरकार का पूरी निर्दयता के साथ उदासीन रहना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का महाघोटाले में बदल कर रह जाना, मंडी खरीदी का लगभग खत्म या औपचारिक बनकर रह जाना, पहले से ही कम निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य का भी न मिल पाना आदि इत्यादि उल्लेखनीय हैं।
इस सबके चलते खेती छोड़ने वाले किसानों की संख्या बढ़ी है, ग्रामीण बाजार सिकुड़ा है, पलायन बढ़ा है, रोजगारहीनता बढ़ी है, शिक्षा तथा स्वास्थ्य से किसानों की दूरी बढ़ी है। इसी तरह मध्य प्रदेश में भी खाद्यान्न उत्पादन में कमी आई है। खेती के रकबे में भी या तो ठहराव बना हुआ है या वह संकुचित हुआ है; प्रदेश में कुल भौगोलिक क्षेत्र 3 करोड़ 8 लाख 25 हजार हेक्टेयर है। उसमें से कृषि भूमि मात्र 01 करोड 52 लाख 91 हजार हेक्टेयर है। इसके भी लगभग 60% हिस्से पर ही खेती हो रही है। पार्टी ने किसानों की दुर्दशा और खेती की बर्बादी रोकने के लिए आन्दोलन छेड़ने और मिलकर लड़ने का आह्वान किया है।
पूर्व सांसद सुभाषिनी अली तथा डॉ अशोक ढवले भी सम्मेलन में मौजूद रहे। सम्मेलन की अध्यक्षता प्रमोद प्रधान, नीना शर्मा, गयाराम सिंह धाकड़, जहूर खान, मांगीलाल नागावत, लालता प्रसाद कोल के अध्यक्षमंडल द्वारा की गयी।