आधी-अधूरी डिग्रियों और बदइंतज़ामी के साथ गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय का पहला दीक्षांत समारोह संपन्न

Update: 2018-12-21 10:36 GMT

10 साल पहले शुरू हुए विश्वविद्यालय के पास अपना खुद का स्थाई परिसर न होने के कारण पहला दीक्षांत समारोह गांधीनगर में ही स्थापित ‘गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी’ के परिसर में करना पड़ा आयोजित...

गुजरात, जनज्वार। संसद के अधिनियम 25 ‘अ’ के तहत सन 2009 में स्थापित हुई गुजरात की एकमात्र सेंट्रल यूनिवर्सिटी ‘गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय’ में 18 दिसंबर को विश्वविद्यालय का प्रथम दीक्षांत समारोह सम्पन्न हुआ, जिसके मुख्य अतिथि गुजरात के राज्यपाल ओ. पी. कोहली रहे। करीब दस साल पहले शुरू हुए विश्वविद्यालय के पास अपना खुद का स्थाई परिसर न होने के कारण पहला दीक्षांत समारोह गांधीनगर में ही स्थापित ‘गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी’ के परिसर में आयोजित करना पड़ा।

इस दीक्षांत समारोह में यह अब तक का सबसे अलग मामला प्रकाश में आया है, जहां छात्रों को डिग्री के नाम पर सिर्फ खाली लिफाफे बांटे गये। विश्वविद्यालय प्रशासन ने पीएचडी-धारकों की उपाधियों को छोड़कर बाकी कोर्सों में बहुत से छात्रों की डिग्री प्रिंट ही नहीं करवाई गयी थीं। जिन छात्रों को डिग्री नहीं मिली वो विश्वविद्यालय के इस गैर-जिम्मेदाराना रवैये से खासे नाराज़ हैं।

हैदराबाद अमेजॉन में जॉब करने वाले व जर्मन विभाग में स्नातक की डिग्री लेने आए अभिषेक कुमार कहते हैं, “मैंने इस दीक्षांत समारोह में डिग्री लेने के लिये अपनी सगाई की तारीख भी बदल दी थी, पर यहां आकर मुझे डिग्री के नाम पर केवल लिफाफा थमा दिया गया।”

जर्मन विभाग में ही स्नातक की डिग्री लेने आयीं सोनाली बताती हैं, “मुझे इस दीक्षांत समारोह में आने के लिये अपने ऑफिस से बहुत ही मुश्किल से छुट्टी मिल पायी थी, परंतु यहां आकर मेरे 3-4 दिन केवल बर्बाद हुये हैं और अब बगैर डिग्री लिये ही वापस जाना पड़ रहा है।”

अध्ययनरत छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन दीक्षांत समारोह के नाम पर केवल खानापूर्ति कर रहा था। दीक्षांत समारोह का नेट परीक्षाओं और सर्दी की छुट्टियों के बीच आयोजन करना ही इस बात को दर्शाता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन विद्यार्थियों की सीमित संख्या में ही पहले दीक्षांत समारोह को सम्पन्न करा देना चाहता था ।

पीएचडी की उपाधि लेने आये डॉ. प्रदीप प्रसन्न ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर छात्रों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करने का आरोप लगाया है। कहते हैं, “दीक्षांत समारोह उपाधि ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों के लिए होता है, उसका बजट उनके लिए आता है, लेकिन इन विद्यार्थियों के नाम पर आए बजट से मौज स्टाफ या विश्वविद्यालय प्रशासन उड़ाया गया है। जैसे विद्यार्थियों के लिए दीक्षांत समारोह की ड्रेस के नाम पर उतरिया और प्रशासन के लिए वेलबेट के बड़े और महंगे गाउन मंगवाए गए। इसके लिए जब प्रशासन से बात की तो उनका तर्क था की गाउन विदेशी संस्कृति का परिधान है और उतरिया भारतीय संस्कृति का। इसका मतलब सीयूजी प्रशासन ने विद्यार्थियों को उतरिया पहनाकर भारतीय माना और अपने आप को अंग्रेज।

डिग्री लेने आए प्रत्यक्षदर्शी छात्र कहते हैं, विद्यार्थियों को हाई-टी के नाम पर सिर्फ सब्जी-पूरी दी गई और प्रशासन ने देर शाम तक अंग्रेजी स्टाईल के गानों के साथ झरने की रोमांटिक स्वर लहरी में, पनीर, आइसक्रीम, 5-6 तरह की स्वीट डिस, रसमलाई और न जाने क्या क्या उड़ाया। हां, उनके डिनर के अंत में विविध प्रकार का पान भी शाही अंदाज में मौजूद था। इस शाही इंतजाम में छात्रों की एंट्री नहीं थी। वे सिर्फ हजारों किमी से आकर पूरी-सब्जी खाकर वापस लौट गए।

अध्यनरत छात्र हिमांशु यादव के मुताबिक “देश के अलग-अलग हिस्सों से हजारों रुपये खर्च कर अपनी डिग्री लेने आये छात्रों के साथ अपमान व धोखा किया गया है। चूंकि दीक्षांत समारोह को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन के ढुलमुल रवैये से छात्र समुदाय पहले से ही नाराज़ था और इस संदर्भ में समारोह से कुछ दिन पहले ही विद्यार्थियों ने एक पत्र परीक्षा नियंत्रक को लिखा था, जिसमें मांग की गई थी कि समारोह में उपाधि धारण करने जा रहे सभी विद्यार्थियों को मंच पर बुलाकर डिग्री प्रदान की जाये।"

जिसके जवाब में परीक्षा नियंत्रक ने कम समय का हवाला देते हुये कहा था कि पीएचडी के अलावा शेष सभी विद्यार्थियों को उनकी डिग्री वहीं पर एक काउंटर से दे दी जायेगी। लेकिन दीक्षांत समारोह में बहुत से विद्यार्थियों को काउंटर से बिना डिग्री वाले लिफाफे ही पकड़ा दिये गये। बेचारे छात्रों को मंच पर इन खाली लिफ़ाफ़ों के साथ ही तस्वीरें खिचवाकर काम चलाना पड़ा। जिसका विरोध जताते हुए ‘चाइनीज विभाग’ के विद्यार्थी बार-बार बुलाने पर भी मंच पर फोटो सेशन के लिये नहीं गए।

विश्वविद्यालय प्रशासन के अधिकारियों ने दीक्षांत समारोह में सभी छात्रों को डिग्री न मिल पाने की वजह डिग्री छपने में आई ‘तकनीकी खराबी’ बताया। लेकिन अपनी अंग्रेजियत और शाही अंदाज और छात्रों के साथ उपेक्षित व्यहार के लिए उनके पास कोई जवाब नहीं था।

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