कार्बेट टाइगर रिजर्व की सीमा से लगे दो दर्जन से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां पर पूरे साल वन्यजीवों का आतंक बना रहता है। बाघ व गुलदार जैसे हिंसक जानवर मवेशियों को अपना शिकार बनाते हुये इंसान की जान तक के लिये खतरा बनते रहते हैं, जिसके चलते ग्रामीणों का इन रात को घर तो घर से निकलना नामुमकिन होता है...
रामनगर से सलीम मलिक की रिपोर्ट
जनज्वार। कार्बेट टाइगर रिज़र्व की सीमा से लगे लगभग दो दर्जन गाँव वन्यजीवों का आतंक झेलने को अभिशप्त हो चुके हैं। जंगल से निकलकर इन गांवों तक आ धमके वन्यजीवों में एक ओर बाघ व गुलदार जैसे हिंसक वन्यजीवों से ग्रामीणों को अपने मवेशियों व खुद अपनी जान के लाले पड़े हुये हैंं, तो दूसरी ओर हाथी, सुअर, बंदरों आदि का उत्पात इतना ज्यादा है कि खेतों में खड़ी फसल कब बरबाद हो जाये, यह कोई नहीं जानता।
वन्यजीवों के आतंक के चलते ग्रामीणों का जीवन-यापन करना दूभर हो गया है। इस मामले में ग्रामीण कार्बेट प्रशासन की कार्यशैली को लापरवाह बता रहे हैं, जबकि कार्बेट प्रशासन इन क्षेत्रों में किये गये कार्यों के बूते मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने का दावा कर रहा है।
गौरतलब है कि कार्बेट टाइगर रिजर्व की सीमा से लगे दो दर्जन से अधिक गांव ऐसे हैं जहां पर पूरे साल वन्यजीवों का आतंक बना रहता है। आये दिन बाघ व गुलदार जैसे हिंसक जानवर जंगल से निकलकर गांव के निकट आकर ग्रामीणों के मवेशियों को अपना शिकार बनाते हुये ग्रामीणों की जान तक के लिये खतरा बनते रहते हैं, जिसके चलते ग्रामीणों का इन वन्यजीवों के खौफ से रात को घर तो घर से निकलना नामुमकिन होता है।
यदि किसी मजबूरी में ग्रामीणों को बाहर जाना भी पड़ता है तो ग्रामीण अकेले न जाकर समूह बनाकर निकलते हैं, जिससे बाघ व गुलदार के संभावित खतरे से बचा जा सके। दिन के उजाले में घर के आंगन में खेलते बच्चों पर भी वन्यजीवों का खतरा मंडराता रहता है, जिसके चलते शाम होते हुये ग्रामीण अपने बच्चों को घरों में ही बंद करके रखते हैं। खेतों में आने-जाने के दौरान भी ग्रामीणों को खासी सावधानी बरतनी पड़ती है। वन्यजीव कई बार खेत में काम करने व खेत पर आने-जाने के दौरान कई गांव वालों को अपना निवाला बना चुके हैं।
इको सेंसेटिव जोन विरोधी संघर्ष समिति के संयोजक ललित उप्रेती का कहना है कि ‘स्थानीय ग्रामीण इन वन्यजीवों से बहुत तंग आ चुके हैं। घातक वन्यजीवों की वजह से गाँवों में जिन्दगी गुजारना बहुत मुश्किल हो गया है। हमेशा बाघ और गुलदार के डर के साये में जीना पड़ता है। ग्रामीण कई बार इनकी शिकायत कार्बेट प्रशासन से कर चुके हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलता। कोई बड़ी घटना या हादसा होने पर कार्बेट प्रशासन कुछ दिन के लिये सुरक्षा गश्त बढ़ाता भी है तो मामला ठंडा होने पर सुरक्षा में फिर वही लापरवाही शुरू हो जाती है। जंगल से निकलकर गाँवों में हिंसक वन्यजीव प्रवेश ना करे इसके लिए वन-विभाग की ओर से सुरक्षा दीवार बनाई गई थी, लेकिन अब यह सुरक्षा दीवार टूट चुकी है, लेकिन उसकी सुध लेने वाला कार्बेट प्रशासन आँखें मूंदे बैठा है। जिलाधिकारी द्वारा लगाये गये जनता दरबार में भी ग्रामीण इस बाबत शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई।’
इस मामले में कार्बेट प्रशासन का कहना है कि कार्बेट टाइगर रिज़र्व विश्व में वन्यजीवों की सबसे अधिक आबादी वाला क्षेत्र है। कार्बेट की सीमा से लगे गाँवों में सुरक्षा दीवार सोलर फैंसिंग आदि लगायी गयी है, ताकि वन्य जीवो की आवाजाही गाँवों की तरफ ना हो। लेकिन इन तमाम कोशिशों के बाद भी ग्रामीणों पर कभी कभी वन्यजीवों के हमले हो जाते हैं तो इन्हे रोकने के लिए कार्बेट प्रशासन कार्यवाही करता है, जिसमें सुरक्षा गश्त बढ़ाने के साथ-साथ ही आदमखोर हो चुके बाघ अथवा गुलदार को पिंजरे में कैद कर उन्हें पकड़कर गांव से दूर कार्बेट के दूसरे हिस्सों में छोड़ दिया जाता है।
कार्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल का कहना है कि 'कार्बेट की सीमा से लगे गाँवों में बाघ और गुलदार की आवाजाही होती रहती है। कभी कभी इन हमलों में मानव क्षति भी हो जाती है, लेकिन इसके के बाद भी ग्रामीण सूझबूझ से काम लेते हैं तथा आदमखोर हुए वन्यजीवों को अपनी ओर से कोई क्षति नहीं पहुँचाते हैं। ऐसे में कार्बेट प्रशासन का प्रयास होता है कि ग्रामीणों के इस मुश्किल समय में पार्क प्रशासन द्वारा इनकी समस्याओं पर तुरन्त कार्यवाही करके उसका समाधान किया जाना चाहिये। इसके अलावा विभाग समय-समय पर ग्रामीणों के साथ संवाद की पहल करता रहता है, जिससे विभाग और ग्रामीणों का आपसी तालमेल बना रहे तथा कार्बेट के वन्य जीवों के साथ-साथ ही कार्बेट टाइगर रिजर्व से सटी सीमा में बसे गांवों के ग्रामीण भी सुरक्षित ढंग से अपना जीवन-यापन कर सकें।’
स्थानीय विधायक दीवान सिंह बिष्ट स्थिति की भयावहता को स्वीकारते हुए कहते हैं कि ‘जंगल से सटा होने के कारण इस क्षेत्र में वन्यजीवों का खतरा तो बना रहता है, लेकिन सरकार ग्रामीणों व उनकी फसलों की सुरक्षा के लिये पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। सुरक्षा कार्यों के लिये वन-विभाग के पास बजट की कोई कमी नहीं है। इसके अलावा कैम्पा परियोजना के माध्यम से भी ग्रामीणों की सुरक्षा के लिये जो भी जरूरी कदम होंगे, वह उठाये जायेंगे।’