हर देश का मीडिया करता है अपनी अमीरी-गरीबी के आधार पर जलवायु परिवर्तन की रिपोर्टिंग

Update: 2019-08-18 13:13 GMT

अमीर देशों के मीडिया में जलवायु परिवर्तन को एक राजनीतिक समस्या के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है, जबकि गरीब देशों का मीडिया बताता है इसे वैश्विक समस्या...

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

लवायु परिवर्तन एक विश्वव्यापी समस्या है, पर मीडिया में इसकी रिपोर्टिंग एक देश से दूसरे देश में बदल जाती है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ केन्सास के नए अध्ययन के अनुसार किसी देश की मीडिया द्वारा जलवायु परिवर्तन की रिपोर्टिंग कुछ घटकों पर निर्भर करती है, और किसी देश में कैसी रिपोर्टिंग की जायेगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। पर कहीं भी मीडिया जलवायु परिवर्तन को आज और अभी की समस्या के तौर पर प्रस्तुत नहीं करता। यह समस्या वर्तमान की है, और राष्ट्रीय नीतियों में इसे शामिल कर इसके तत्काल निदान की आवश्यकता है।

मीर देशों के मीडिया में जलवायु परिवर्तन को एक राजनीतिक समस्या के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है, जबकि गरीब देशों का मीडिया इसे वैश्विक समस्या बताता है। केन्सास यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता के असिस्टेंट प्रोफेसर होन्ग वू इस अध्ययन के मुख्य लेखक हैं।

होन्ग वू के अनुसार, “मीडिया यह बताता है की आप किस दिशा में सोचें। किसी विषय के प्रस्तुतीकरण के ढंग से लोग उसी तरह सोचने लगते हैं और इनसे राष्ट्रीय नीतियाँ भी प्रभावित होती हैं।' होन्ग वू के दल ने इस अध्ययन के लिए कुल 45 देशों में वर्ष 2011 से 2015 के बीच समाचार पत्रों में प्रकाशित जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित 37000 से अधिक समाचारों/लेखों का विश्लेषण मशीन लर्निंग विधि द्वारा किया। इसमें राष्ट्रीय और स्थानीय दोनों प्रकार के समाचार पत्र शामिल किये गए थे।

सके साथ ही इन देशों की आर्थिक समृद्धि, जलवायु और ऊर्जा की खपत के आंकड़े भी एकत्रित किये गए। देशों के स्वतंत्र आंकड़ों के लिए विश्व बैंक, द सेंटर फॉर रिसर्च ऑन द एपिडेमियोलॉजी ऑफ़ डिज़ास्टर्स, ग्लोबल कार्बन एटलस प्रोजेक्ट, फ्रीडम हाउस, और विकास या फिर जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों से भी आंकड़े जुटाए गए।

स अध्ययन को होन्ग वू के साथ केन्सास यूनिवर्सिटी में क्लाइमेट चेंज के विद्यार्थी युचेन लिऊ और हनोई यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के डुक विंह ट्रान ने लिखा है और यह अध्ययन ग्लोबल क्लाइमेट चेंज (Nationalizing a global phenomena: A study of how the press in 45 countries and territories portrays Climate Change: Global Climate Change, Vol 58, Sept 2019) में प्रकाशित किया गया है।

स अध्ययन के अनुसार किसी देश का मीडिया जलवायु परिवर्तन को किस तरीके से प्रस्तुत करता है इसका सबसे बड़ा सूचक देश का प्रतिव्यक्ति सकल घरेलु उत्पाद है। होन्ग वू के अनुसार अध्ययन से स्पष्ट है की समृद्ध देशों का मीडिया जलवायु परिवर्तन को राजनीतिक समस्या के तौर पर प्रस्तुत करता है, जबकि गरीब देशों में मीडिया इसे अंतरराष्ट्रीय समस्या के तौर पर दिखाता है। इस विरोधाभास को समझा जा सकता है क्योंकि अमीर देशों अपनी समृद्धि के बल पर जलवायु परिवर्तन से लड़ सकते हैं, पर गरीब देशों के पास संसाधन नहीं हैं।

मीर देशों के मीडिया ने इसे ऐसी समस्या के तौर पर प्रस्तुत किया है, जिसे अपने संसाधनों से निपटा जा सकता है फिर भी इसे राजनीतिक रंग दिया जाता है। इसके बाद यह वैश्विक समस्या राजनीतिक बहसों में उलझकर रह जाती है और समस्या के नीतिगत समाधान गौण हो जाते हैं। अमीर देशों के मीडिया की रिपोर्टिंग में जलवायु परिवर्तन के विज्ञान पर भी पैनी नजर रखी जाती है।

न देशों में जहां जलवायु परिवर्तन तेजी से असर दिखा रहा है, प्राकृतिक आपदा के प्रकोप से जान-माल की अधिक हानि हो रही है, उन देशों का मीडिया जलवायु परिवर्तन के आर्थिक सन्दर्भ भी प्रस्तुत करता है। जलवायु परिवर्तन के साथ सामाजिक विकास के नाम पर अमीर देशों का मीडिया पूरी तरह ऊर्जा के उपयोग पर केन्द्रित रहता है।

जिन देशों में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अधिक होता है, वहां भी मीडिया के लिए ऊर्जा का मुद्दा प्रमुख रहता है। दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव झेल रहे गरीब देशों में मीडिया का ध्यान इसके प्राकृतिक प्रभावों पर रहता है।

स अध्ययन के लेखकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए किये गए अंतरराष्ट्रीय समझौते के अनुसार इसके लिए दुनिया के सभी देश जिम्मेदार हैं, सभी देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है और जब भी प्राकृतिक आपदा की बात उठाती है तब इसका आर्थिक पहलू ही सामने आता है।

कुछ समृद्ध देशों में जलवायु परिवर्तन पर विश्वास नहीं करने वालों को मीडिया में अधिक प्रमुखता मिलती है। इस कारण समाज के अनेक वर्ग इस समस्या का राजनीतिक लाभ उठाते हैं और फिर मीडिया और राष्ट्रीय नीतियों को प्रभावित करते हैं।

होन्ग वू के अनुसार इस अध्ययन से जलवायु परिवर्तन की रिपोर्टिंग पर मीडिया के प्रभावों को समझा जा सकता है। वे कहते हैं, 'कम्युनिकेशन शोधार्थियों के तौर पर हम जानना चाहते हैं कि पिछले 30 वर्षों में इस विषय पर जनसंवाद और मीडिया द्वारा इसे लगातार इसे गंभीर वैश्विक समस्या बताने के बाद भी यह समस्या कम क्यों नहीं हो पा रही है। यदि हम चाहते हैं की इस सन्दर्भ में जन जागरूकता और बढ़े तो मीडिया को पहल करना पड़ेगा। यदि मीडिया जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में अपनी भूमिका की समीक्षा करे तो इसे बेहतर आयाम दिया जा सकता है। हमें आशा करनी चाहिए की मीडिया का यह नया कलेवर राष्ट्रीय नीतियों में भी झलकने लगेगा।'

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