मोदी की लोकसभा के आदर्श गांव 'रमना' की हालत पिछड़े गांवों से भी बदतर

Update: 2019-03-09 07:17 GMT

चुनावी चर्चा के लिए जनज्वार से अजय प्रकाश पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी की बनारस लोकसभा के गांव रमना, रमना है वह आदर्श गांव जो बीएचयू से सिर्फ तीन किलोमीटर की दूरी पर है स्थित, जहां खंभे लगे लेकिन बिजली का है टोटा, अस्पताल में है ईलाज का इंतजार

जनज्वार, बनारस। प्रधानमंत्री मोदी कल बनारस में विश्वनाथ मंदिर के पास कॉरिडोर के उद्घाटन लिए पहुंचे थे। बनारस के रमना गांव के लोगों को भी उम्मीद थी कि वे अपनी बात प्रधानमंत्री से कह पाएंगे, वे बता पाएंगे कि आपकी लोकसभा का नागरिक होने के बावजूद हम कैसी मुश्किलों से घिरे पड़े हैं, जहां ईलाज के नाम पर अस्तताल, डॉक्टरों के आवास, नर्सों की रहने की जगहें तो हैं पर यहां सिवाय गोली के कुछ नहीं मिलता।

ग्रामीणों के अनुसार बाबा विश्वनाथ का दर्शन करना आसान है, लेकिन डाक्टर—नर्स का दर्शन ज्यादा मुश्किल, वे आते ही नहीं और शिकायत के बाद सीएमओ साहब सुनते नहीं। दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री योजनाओं के न पहुंचने की शिकायत सिर्फ ग्रामीण नहीं करते, बल्कि प्रधान प​ति अमित पटेल भी कहते हैं और बताते हैं कि प्रधानमंत्री से लेकर सीएमओ तक हर जगह गुहार लगा चुके हैं पर कहीं कोई सुनवाई नहीं है।

गांव के प्रधान पति अमित पटेल बताते हैं कि 30 सालों से बने इस अस्तपाल में सिर्फ गोलियां ​मिलती हैं, जबकि डॉक्टर और नर्स मिलाकर हर महीने सिर्फ सैलरी ही चार लाख जाती है, दवाइयों के घपले अलग हैं।

जनज्वार की चुनावी पड़ताल में बोलते हुए ग्रामीण रामराज पटेल बताते हैं कि एक तो सरकार ने डाई खाद का दाम बढ़ा दिया, उपर से 50 किलो के बोरे को 45 का कर दिया। पूरा गांव स्तब्ध है कि सरकार को किसानों को ठगने का दोतरफा आइडिया कहां से आता है, जबकि नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे लोग हजारों करोड़ लेकर गरीबों का निकल भागते हैं पर उन्हें पकड़ने का कोई आइडिया सरकार को नहीं आता।

Full View के ही लालबहादुर पटेल बार—बार बिजली के खंभों की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश करते हैं। बताते हैं कि बहुत प्रयास के बाद तार और खंभे लगे हैं, लेकिन अभी बिजली नहीं आई है। ऐसे में सवाल है कि देश भर में बिजली भेजने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री मोदी की अपनी लोकसभा के आदर्श गांव रमना की कहानी 'दीप तले अंधेरा' की कहावत को ​चरितार्थ करती है।

गांव में खेती का काम करने वाले घनश्याम की राय है कि मोदी की सरकार बनने के पांच साल बाद अगर जमीन पर काम हुआ होता तो चुनावी साल में उन्हें पुलवामा और अभिनंदन की शौर्यगाथा का सहारा नहीं लेना पड़ता। यह प्रधानमंत्री और भाजपा की चालाकी है कि जनता भावनात्मक मुद्दों में खो जाए और पांच साल के काम हिसाब लिए बिना फिर से मोदी को अपना सांसद और प्रधानमंत्री बना दे।

गांव से नौजवानों से बात करने पर घनश्याम जो संदेह जाहिर करते हैं उसका असर दिखता है। गांव के एक—दो युवा कहते हैं मोदी जी ने गांव के लिए भले कुछ नहीं किया हो, लेकिन देश के लिए बहुत काम किया है। पर पूछने पर एक काम गिना नहीं पाते। इसी बीच ग्रामीण अवारा पशुओं के अत्याचार की मुश्किलें गिनाने लगते हैं और कहते हैं कि योगी ने यह मुश्किल हमें मुफ्त में सौंप दी है।

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