बनारस में उजाड़ दी दलितों की पूरी बस्ती, दलित होने के कारण नहीं दे रहा कोई किराए पर मकान
मोदी और महादेव के चक्र में फंसे बनारस के विश्वनाथ मंदिर के सामने के दलित बस्ती के लोग बुरे हाल में हैं। अब उनके पास न रहने को घर है और न ही उन्हें कोई किराए पर रहने के लिए मकान दे रहा है क्योंकि वे लोग दलित हैं...
वाराणसी से अजय प्रकाश की रिपोर्ट
जनज्वार। विश्वनाथ मंदिर के सामने मैदान बन चुके इस हिस्से में सैकड़ों घर जमींदोज कर दिए गए हैं, सिर्फ इसलिए कि सीधे मंदिर से गंगा नजर आएं। मेरा घर भी टूटने वाला है और वह पूरी तरह से क्रैक हो चुका है। पर सरकार ने हमें एक पैसा अब तक मुआवजा के तौर पर नहीं दिया है। घर छोड़कर जाना चाह रहे हैं तो किराए पर कोई कमान नहीं दे रहा, चमार सुनते ही दरवाजा बंद कर ले रहा है।
बनारस के विश्वनाथ मंदिर से 200 मीटर पर रह रहीं उषा देवी जब अपनी यह पीड़ा बयां कर रही होतीं है तो सैकड़ों लोग उनकी बात का समर्थन का करते हैं। इसी बस्ती के चंद्र प्रकाश बताते हैं, 'इस मोहल्ले को ही मलीन बस्ती कहते हैं। कुछ बड़े लोगों को तो सरकार ने अच्छा मुआवजा दे दिया पर हमें बहुत मामूली मुआवजा में भगाने के लिए तैयार है। हमलोग नहीं जा रहे तो रोज पुलिस और अधिकारी धमकाते हैं और इसी मिट्टी में जमींदोज करने की धमकी देते हैं।'
लखनऊ विश्वविद्यालय से एमबीए कर रहीं प्रीति बुलडोजर द्वारा ढाए जा रहे घरों को लेकर एक घटना का ब्यौरा देती हैं। वह कहती हैं कि तीन—चार दिन पहले जब लोग घरों से बाहर नहीं निकले तो उसी पर बुलडोजर चला दिया गया। अधिकारियों और पुलिस वालों ने लोगों को घसीटकर पीटा और जो लड़के या मर्द विरोध कर रहे थे उन्हें अपने साथ ले गए। और यह सबकुछ हुआ सिर्फ मोदी जी की सनक पूरा करने के लिए कि मंदिर से गंगा सीधी दिखें।'
आरएसएस के पूर्व कार्यकर्ता कृष्ण कुमार शर्मा के मुताबिक, 'अभी जो कॉरिडोर बना है उसमें कुल 200 मंदिर थे, लेकिन प्रशासन ने केवल 43 को ही चिन्हित किया। मौके पर देखें तो प्रशासन ने इससे आधा मंदिरों को ही केवल संरक्षित करता दिख रहा है।'
स्थानीय अधिकारियों द्वारा मीडिया को दी जा रही जानकारी के मुताबिक कुल 300 घर हैं, जिन्हें जमींदोज किया जाना है, जिसमें से एक तिहाई को खरीदने में वे सफल हुए हैं।' पर इस जानकारी को रवि कुमार गलत बताते हैं। उनका कहना है कि 300 नहीं 500 से अधिक घर हैं। जिन घरों में दो—दो भाई रह रहे हैं, उन्हें सरकार नहीं गिन रही। दूसरी बात, एक भाई को किसी तरह धमका के या बहला—फुसला के घर खरीद लिया तो दूसरे के बेचने का इंतजार करने से पहले ही बुलडोजर चलने लग जा रहा है।
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इस बीच एक महिला आतीं हैं और कहने लगती हैं, 'मैं 10 साल से यहीं रह रही हूं। घरों में बर्तन मांजने का काम करती हूं और यहां सस्ते में रह जाती हूं। पर अब कहां जाएंगे। हमारे जैसे पता नहीं कितने लोग हैं जिनको पूछने वाला कोई नहीं है।'
दीपक अग्रवाल की बातों को मौके पर कोई सही साबित करने वाला प्रमाण नहीं मिलता, क्योंकि जनज्वार के कैमरे पर दर्जनों औरतों—मर्दों और बच्चों ने मुआवजा नहीं मिलने और दलित होने की वजह से किसी के द्वारा किराए पर मकान नहीं दिए जाने की बात कही है।
कानून को ताक पर घरों को जमींदोज किए जाने को लेकर लोगों ने विरोध क्यों नहीं किया के बारे में दलित बस्ती में रहने वाले बसपा नेता प्रकाश कुमार के कहते हैं, 'जिस दिन मोदी 8 मार्च को बनारस कॉरिडोर का उदघाटन करने आए थे, तब यहां के वाशिंदों को छत पर जाने या बाथरूम इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं थी, घर से निकलना तो दूर की बात है। इससे पहले हमलोग दर्जनों बार प्रदर्शन किए, अधिकारियों से मिले लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। सबने कहा ये मोदी जी का मामला है।'