जैसे अमेठी, रायबरेली गांधी परिवार की पुश्तैनी सीट मानी जाती हैं, उसी तरह पीलीभीत भी गाँधी परिवार अर्थात मेनका गांधी की पारम्परिक सीट मानी जाती है...
स्वतंत्र कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार। महाभारत में भी धृतराष्ट्र पुत्रमोह में फंस गए थे, ऐसे ही पुत्र मोह में आजकल मोदी सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गाँधी भी फंसी नज़र आ रही हैं।
उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा का गठबंधन होने से कई नेताओं को अपनी जमीन खिसकती दिखाई दे रही है, इसलिए सब सेफ सीट ढूंढ़ रहे हैं। ऐसे ही एक नेता मेनका गांधी के सुपुत्र वरुण गांधी भी हैं। वे वर्तमान में यूपी के सुल्तानपुर से सांसद हैं, लेकिन उन्हें यूपी में हुए गठबंधन के बाद अपनी सीट हारने का डर सता रहा है। इसलिए अब वरुण की माँ मेनका गांधी उनके लिए तारणहार बनकर उतर गई हैं। उन्होंने पार्टी में वरिष्ठ नेताओं से खुद को हरियाणा के करनाल से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर दी है और अपने बेटे को पीलीभीत से टिकट देने की अपील की है।
गौरतलब है कि जैसे अमेठी, रायबरेली गांधी परिवार की पुश्तैनी सीट मानी जाती हैं, उसी तरह पीलीभीत भी गांधी परिवार अर्थात मेनका गांधी की पारम्परिक सीट मानी जाती है। वे लगातार 6 बार से पीलीभीत से चुनाव जीत रही हैं, ऐसे में वे अपने बेटे के राजनीतिक करियर को डांवाडोल नहीं होने देना चाहती हैं, इसलिए अपने बेटे के लिए पीलीभीत से टिकट मांग रही हैं।
इससे पहले जब 2009 के लोकसभा चुनाव में वरुण गांधी ने अपनी राजनीति की शुरुआत की थी, उस समय भी मेनका गाँधी ने अपने बेटे के लिए अपनी सीट पीलीभीत छोड़ दी थी और खुद पीलीभीत के पास आंवला लोकसभा से चुनाव लड़ी थी और दोनों मां व बेटा दोनों चुनाव जीत गए थे।
वहीं दूसरी ओर वरुण गांधी के सम्बंध पिछले पांच सालों से पार्टी और पीएम के साथ बहुत अच्छे नहीं रहे। हाल में वरुण गाँधी ने रूरल मैनिफेस्टो के नाम से एक किताब भी लिखी है, जिसे पीएम की किसान की नीतियों के खिलाफ के तौर पर देखी गई। कई बार वरुण गाँधी में पार्टी लाइन से अलग जाकर अपने विचार पब्लिक डोमेन में शेयर किये हैं जिससे पार्टी को कई बार असहज होना पड़ा है।
काफी लम्बे समय के बाद पाकिस्तान में जाकर भारतीय वायुसेना की कार्रवाई के बाद पहली बार वरुण गांधी ने पीएम मोदी का नाम लेते हुए उनकी तारीफ करते हुए ट्वीट भी किया।
लेकिन मेनका गांधी करनाल से टिकट मांग रही है और बेटा पीलीभीत से, लेकिन उनकी यह बात बनती है या नहीं ये तो पार्टी को तय करना है और इस बात का पता सिर्फ मोदी और अमित शाह को ही है कि किसे कहाँ से टिकट मिलेगा।