और वह थंगकममा से बन गई मोलकी बहू राधिका

Update: 2018-07-26 14:11 GMT

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हजारों मील दूरी पर शादी की बात सुनकर एक अनजाना डर उसके भीतर कुंडली मार कर बैठ गया। इसी डर को लपेट-ओढ़ कर वह हरियाणा चली आयी, ठीक उसी तरह जैसे कोई पशु अपने खरीददार के पीछे-पीछे चुपचाप चला आता है...

मोलकियों की कहानी उन्हीं की ज़ुबानी का दूसरा भाग राधिका की कहानी युवा कवि—लेखक विपिन चौधरी की कलम से….

हमारे समाज में स्त्री को घर-परिवार से जोड़ कर देखा जाता है, बहुत छुटपन से ही अपने घर की इच्छा उसके भीतर रोप दी जाती है। उम्र के साथ-साथ उस इच्छा का घेरा भी बढ़ता जाता है और बढ़ते-बढ़ते वह एक विशाल वृक्ष का रूप अख़्तियार कर लेता है।

अपने बचपने में वह खेल-खेल में गुड्डे-गुड़िया के लिए एक घर बनाने का निपुण अभिनय करती है, थोड़ी बड़ी होने पर अपने घर की साज-सज्जा करना उसे भाने लगता है। फिर विवाह के पश्चात् ससुराल में बहू होने के नाते मिले अपने एकांत में रंगीन बेल-बूंटे टाँकने की ललक, उसके भीतर हावी होती जाती है। अपने कोने में अपनी पसंद के रंग भरना हर स्त्री का वाज़िब हक़ भी है, मगर समाज की पितृसत्तात्मक संरचना में एक स्त्री को हर चीज़ के लिए संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि समाज सबसे पहले उसके सपनों पर कुंडली मार कर बैठा होता है।

ससुराल में मौजूद सदस्य उसके घर के सपने को आड़ा-तिरछा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। युवावस्था में घर के आयतन में अपनी इच्छा फलीभूत करने का सुख बहुत कम स्त्रियों को हासिल होता है। उम्र के साथ-साथ घर-गृहस्थी में जब एक स्त्री की पकड़ मजबूत हो जाती है, तब कहीं जाकर उसका सपना पूरे होने के लिए अपने पंख खोलते की हिम्मत जुटा पाता है।

हरियाणा में रामवीर के लिए एक मोलकी बहू के रूप में लायी गयी राधिका का अस्तित्व अपने गाँव की दूसरी मोलकियों की तरह ही नगण्य होता, अगर ससुराल के हालात और पति उसके पक्ष में न होते। जब उसने ससुराल की देहरी पर अपना कदम रखा तो उसका सामना घर के तीन सदस्यों से हुआ। तीनों ही हालात के शिकार। खुद राधिका भी हालात के हाथों मजबूर थी।

आठ बहनों में सबसे छोटी राधिका की उम्र भी अधिक हो चुकी थी, उससे बड़ी सात बहनों की शादी के बाद उसकी बारी आते-आते माँ और पिता बीमार और बूढ़े हो गए। घर का गुज़ारा बड़ी मुश्किल से होता था। एक दिन उसे पता चला कि हरियाणा से कोई उसे देखने आ रहा है। हजारों मील दूरी पर शादी की बात सुनकर एक अनजाना डर उसके भीतर कुंडली मार कर बैठ गया। इसी डर को लपेट-ओढ़ कर वह हरियाणा चली आयी, ठीक उसी तरह जैसे कोई पशु अपने खरीददार के पीछे-पीछे चुपचाप चला आता है।

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हरियाणा की आबोहवा से राधिका का कोई परिचय नहीं था। यही नहीं इससे पहले उसे हरियाणा के बारे में रत्तीभर भी जानकारी नहीं थी। यहाँ पर आकर जब राधिका की बूढी और बीमार सास ने उससे अच्छा व्यवहार रखा और कुछ नकारात्मक नहीं कहा, उसके किसी काम में कभी कोई हस्तक्षेप नहीं किया और पति ने भी घर की एक नयी सदस्य की तरह उसका हर तरह से सहयोग किया, तो राधिका का डर जाता रहा।

राधिका की कहानी, हरियाणा में स्त्री-पुरुष के असंतुलित अनुपात के बीच, मोलकियों की खरीद-फरोख्त और समाज की अनगिनत विसंगतियों के बीच एक ऐसी मोलकी की कहानी है, जिसने अपनी लगन और व्यवहार से अजनबी धरती और नामालूम जुबान वाले प्रदेश का आँगन सींचा और घर के अपने सपने को पूरा करने की हिम्मत जुटाई।

हिसार जिले के गाँव सोरखी में अधिकतर लोग बेरवाल (जाट) गोत्र से संबंध रखते हैं। 5321 की जनसंख्या वाले इस गाँव में पुरुषों की संख्या 2873 और महिलाएँ 2448 की संख्या में है। सोरखी गाँव के 1052 घरों में से एक छोटा सा घर रामबीर सिंह का भी है। रामबीर तेरह साल पहले केरल की थंगकममा को एक मोलकी के रूप में ब्याह कर लाया था।

रामबीर से ब्याह कर आयी थंगकममा मोलकी की गिनती सोरखी गाँव की उन मोलकियों में की जाती है जो केरल की नारियल, रबड़, चाय- कॉफी, काली मिर्च, इलायची, काजू, अखरोट, जायफल, अदरक, दालचीनी, लौंग जैसी फसलों और अपनी हरियाली धरती से हरियाणा की उस धरती पर लायी गयी जहाँ पानी की कमी लगातार बनी रहने के कारण फसलों को अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।

कीकर, शीशम, बबूल, गेहूं, बाजरे की इस कठोर जमीन पर आने वाली इन मोलकियों को भौगोलिक परिस्थितियों की भिन्नता से उपजे अवसाद के अलावा कई दूसरी समस्याओं से जूझना पड़ता है और यही संघर्ष इन मोलकियों की व्यथा-गाथा का कभी न ख़त्म होने वाला अध्याय बन जाता है।

राधिका के सामने भाषा की समस्या सबसे बड़ी थी। हिंदी का एक अक्षर न उसकी समझ में आता था और न ही वह बोल पाती थी। शुरुआत का एक साल काफी दिक्कतों में गुज़रा। खाट पर लेटी हुयी सास किसी चीज़ के लिए पुकार लगाती तो वह जान ही नहीं पाती कि उसे किस चीज़ की जरूरत है।

आज इतने साल बाद भी वह मलयाली मिश्रित हरियाणवी ही बोल पाती है। रामबीर की पूर्व पत्नी अपने पीछे सात साल की लड़की छोड़ कर स्वर्ग सिधार गयी थी, जिसके बाद उसने मोलकी से शादी की थी। रामबीर की माँ ने हरियाणा में ही उसका दुबारा विवाह करवाने की बहुत कोशिश की, मगर सफलता हाथ नहीं लगी।

उसके गाँव के कई युवकों की उम्र जब अधेड़ होने की तरफ बढ़ने लगी तो वे केरल से मोलकी ले आये थे। अब रामबीर को भी केरल का रास्ता ही अपनी नज़रों से सामने दिखाई देने लगा। अपने दो रिश्तेदारों के साथ 3,000 किलोमीटर की यात्रा कर केरला पहुंच थंगकममा को अपनी दूसरी पत्नी के रूप में ले आया, कुल चालीस हज़ार का खर्चा हुआ।

थंगकममा ने रामबीर की देहरी पर कदम क्या रखा, उसके छोटे के घुटे-घुटे घर में जैसे ताज़ी बयार का प्रवेश हो गया। घर में महीनों खाट पर पड़ी बीमार माँ को एक सहारा और उसकी छोटी बच्ची को माँ का स्नेह मिल गया। एक विधुर के बिखरे हुए घर को एक सुगढ़ स्त्री ने अपने मेहनती हाथों से सजाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।

हम जिस घर में खड़े हुए हैं, वह राधिका और रामबीर का घर है। अभी राधिका घर पर नहीं है, पड़ोस में ही मोलकी के रूप में ब्याह कर केरल की अपनी सहेली के घर वह हर दूसरे दिन जाती है। एक बच्चे को उसे बुलाने के लिए भेजा गया। उसके आने से पहले मैं उसकी इस छोटी सी गृहस्थी पर नज़र डालती हूँ।

लगभग 100 गज़ ज़मीन पर बने इस घर में एक बड़ा कमरा, एक छत वाला आँगन जहाँ एक खाट और चार कुर्सियां और अनाज की एक बड़ी सी टंकी रखी हुयी थी, लकड़ी का दरवाज़ा खुलते ही बाएं तरफ भैंस और एक कटड़ी सीमेंट के बने थान में चाट खा रहे थे। दाएं तरफ गंडासा और हरी घास रखी हुयी थी। थोड़ा आगे एक स्नानघर दिख रहा था, उसके सामने बाएं ओर छोटी सी रसोई। जिसमें बर्तन और रसोई का दूसरा साज़ो-समान काफी साफ़-सुथरा और करीने से रखा दिख रहा था।

तभी गहरे रंग, लंबी कद-काठी और छरहरी काया वाली राधिका उसे बुलाने गए देवर के छोटे बेटे के साथ प्रवेश करती दिखी।

नाम पूछने पर उसने अपना नाम राधिका रामवीर सिंह उसी ठसक के साथ बताया, जैसे कोई पढ़ी-लिखी स्त्री अपने नाम के आगे डॉक्टर की उपाधि को गर्व से भर बताती है। निरक्षर राधिका का यह आत्मविश्वास मेरे लिए कभी न भूलने वाला वाक्या है। जब वह पति के साथ अपना नाम जोड़ कर बता रही थी तब सामने खड़ा रामबीर युवती की तरह शरमा रहा था।

'इसका नाम हम कोणी बोल पांवें थै, जैदे मेरी माँ नै इसका नाम राधिका धरा।'

जद या आयी थी मेरी छोरी सात साल की थी, इसने पाळी वा, दो महीने पहले ही उसका ब्याह करा सै।' रामबीर दस साल पहले के अतीत में लौटता है।

मोलकी बहू राधिका अपने पति रामवीर के साथ, पर सब राधिका जैसी खुशकिस्मत नहीं होतीं

क्या राधिका घर के निर्णय लेती है? पूछने पर रामबीर बोला, "पिसे-लत्ते का सारा हिसाब-किताब या राखै सै। दिमाग घणा तेज़ सै इसका।'

गाँव की दूसरी औरतें अपने चेहरे पर घूँघट रखती हैं, क्या राधिका भी घूँघट रखती है?

'मैं घूँघट कोणी करदी सर पर पल्ला रखती।" राधिका ने अपनी भारी आवाज़ में बताया।

रामवीर ने बताया कि पहले डरता था कहीं केरल की लड़की, स्थानीय बहू की तरह खेत और पशु न संभाल पाए, कई दिनों तक उसकी नींद उचटी रही, उधर से माँ की जिद, 'रै बिना बहू कै न चलैगा यो घर...'

अब दोनों को संग-साथ रहते हुए ग्यारह साल हो गए हैं। राधिका ने आते ही इस को घर संभाल लिया और रामबीर जैसे गंगा नहा गया।

'मनै किमे चीज़ की जरुरत कोणी सब राजी-खुसी सै।'

राधिका और रामवीर के कोई संतान नहीं है, मगर इसका कोई गम न राजबीर को है, न राधिका को। "यो सब तो ऊपर आले के हाथ मै सै।'

पेशे से मैकेनिक है रामबीर एक किला जमीन है, उसमे कुछ खास नहीं उगता। छोटे भाई का घर भी साथ ही है। उसकी पत्नी भी मोलकी है, आगरा से आयी देवरानी सुमित्रा के दो बच्चे हैं। हमें रामवीर के घर उसकी देवरानी ही लेकर आयी थी।

'साल में एक बार ही केरला जाती' राधिका ने बताया।

इस बार रामबीर बोला, "मैं भी इसके साथ जाऊ सूं, अर हफ्ता एक रह कै आ जा सूं। मेरी खूब सेवा होवै सै ओड़ै, मेरी ससुराड़ आले खाण खातर घणी सारी चीज़ लावै सै, इतनी तो एक माणस कदै खा भी कोणी सकै। एक कल्ला माणस कितना खा सकै सै।'

'इसनै इडली-सांभर घणा पसंद था, पर ईब कोणी खावै या, कहवै सै तू तो खांदा कोणी फेर मै कल्ली के बणाऊँ। अब या भी रोटी ही खावै सै।'

'क्यों यहाँ भी तो बना सकती है इडली-साँभर' मैंने कहा।

'ईब के करेगी, कल्ली बणा कै।' बातचीत में शामिल होते हुए पड़ोस में रहने वाले रामवीर के भाई ने कहा।

"अबकी बार मैं तुम्हारे घर आऊं तो रसोई में इडली के बर्तन होने चाहिए। नहीं तो मैं लाकर तुम्हें गिफ्ट कर दूंगी।' मेरी माँ ने कहा।

इस बार सब हँसे, मैंने राधिका की तरफ देखा वह भी मुस्कुरा रही थी, पता नहीं उसका मन क्या कह रहा था। उसने अपने को बहुत बदला था पर क्या जीभ को भी इडली सांभर के स्वाद के जगह बाजरे और लहसुन और लाल मिर्च की चटनी भा गयी थी।

तभी सामने गली में गीत गाती हुयी औरतों का झुण्ड निकला, "मन्नैं रीता हे रुमाल मत ल्यायाये करै हे कुछ केले की फली रस ल्याया हे करै हे मैनें होवै अँधेरी रात रौशनी बिजली की हे..'

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