जल संकट से सर्वाधिक तबाह गांव-देहात, इसलिए नहीं बन पा रहा राष्ट्रीय मुद्दा
जल संकट से सबसे अधिक गाँव के लोग जूझते हैं और इसके बाद शहर की आबादी। खेती पर भी इसका असर पड़ता है, पर क्या आपने कभी सुना है कि कोई उद्योग पानी की कमी से बंद हो गया...
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
देश इस समय पानी के विकराल संकट से जूझ रहा है। झीलें और जलाशय सूख रहे हैं, लाखों लोग पानी की कमी से त्रस्त होकर पलायन कर रहे हैं, नदियाँ सूख रही हैं और कृषि बर्बाद हो रही है। इन सबके बीच प्रधानमंत्री मोदी ने 25 जून को संसद में बताया कि वे और एनडीए पानी के संकट को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
प्रधानमंत्री के वक्तव्य को मीडिया ने भी इस तरह प्रस्तुत किया, मानो कहीं कोई संकट नहीं है। प्रधानमंत्री ने कहा कि वे इस समस्या के प्रति इतने गंभीर हैं कि अलग से एक जलशक्ति मंत्रालय बना दिया। उन्होंने लोहिया जी वक्तव्य भी पढ़ा, महिलायें सबसे अधिक शौचालय की कमी और पानी की कमी से प्रभावित होती हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने राजस्थान और गुजरात का उदाहरण भी इस सन्दर्भ में दिया, पर सबसे अधिक प्रभावित राज्यों, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र का नाम भी नहीं लिया। उन्होंने कहा कि पानी की कमी दूर कर सामान्य लोगों की जान बचाई जा सकती है और इसका फायदा सबसे अधिक गरीबों को मिलेगा।
जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में जनता और मीडिया की पसंद के हरेक विषय – शौचालय, महिला, गरीब – सबको शामिल कर लिया। सदन में मेजें भी थपथपाई गयीं, पर इससे देश को क्या मिला? कहा जा रहा है कि इस बार का जल संकट 1972 के संकट से भी भयानक है, जिसमें लगभग 3 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे और पिछले पांच वर्ष तो एनडीए ने ही राज किया है। ऐसे में मोदी जी किस प्राथमिकता की बात कर रहे हैं और यदि प्राथमिकता के बाद भी ऐसा संकट आया है तब तो अच्छा है कि प्राथमिकता हो ही नहीं।
इस समय आधे से अधिक भारत सूखे का सामना कर रहा है और इस बीच मौसम विभाग ने कहा है कि 22 जून तक देश में औसत की तुलना में लगभग 40 प्रतिशत कम बारिश हुई है। आगे के भी आसार बहुत अच्छे नहीं हैं। इस समय लगभग एक करोड़ किसान पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं।
प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो के अनुसार 20 जून को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान देश के 91 बड़े जलाशयों में कुल क्षमता की तुलना में महज 17 प्रतिशत पानी ही बचा है। पश्चिमी और दक्षिणी भारत के जलाशयों में तो महज 10 प्रतिशत पानी ही बचा है।
जल संकट से सबसे अधिक गाँव के लोग जूझते हैं और इसके बाद शहर की आबादी। खेती पर भी इसका असर पड़ता है, पर क्या आपने कभी सुना है कि कोई उद्योग पानी की कमी से बंद हो गया। ऐसा होता ही नहीं है, क्योंकि पानी की बर्बादी और पानी के प्रदूषण के मुद्दे पर उद्योगों से कोई नहीं पूछता। नदी का जल हो या फिर जमीन के अन्दर का जल, उद्योगों के लिए यह हमेशा उपलब्ध रहता है।
पानी हमारी सरकारों के लिए कभी कोई मुद्दा नहीं रहा और न तो निकट भविष्य में रहने की उम्मीद है। समस्या जब गंभीर होती है तभी जनता कराहती है, मीडिया दिखाती है और नेता भाषण देते हैं और प्राथमिकता बताते हैं।