UP News : अमित शाह या बेबी रानी मौर्य, आखिरकार किसकी बात मानें यूपी की बेटियां

यूपी सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और सशक्तिकरण को बढ़ाने के लिए मिशन शक्ति अभियान चलाया था। लेकिन यह अभियान भी अपराधियों में भय पैदा करने में बहुत सफल नहीं रहा।

Update: 2021-11-01 10:08 GMT

लखनऊ। बीते 29 अक्टूबर को यूपी की राजधानी लखनऊ (Lucknow) में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने पार्टी के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यूपी की बेहतर कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए योगी सरकार (Yogi Adityanath) की खूब पीठ थपथपाई थी। यूपी में महिला सुरक्षा के आंकड़ें संतोषजनक नहीं कहे जा सकते। प्रदेश में कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा बड़ा मसला रहा है।

शाह (Amit Shah) ने लखनऊ में कहा कि, 'अब बहन बेटी रात को 12 बजे भी यूपी की सड़क पर बेखौफ निकल सकती है।' शाह (Amit Shah)के बयान से ठीक 9 दिन पहले यानी 20 अक्टूबर को वाल्मीकि जयंती पर के अवसर पर एक दलित बस्ती में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भाजपा (BJP)  की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और उत्तराखण्ड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य (Baby Rani Maurya) ने कहा कि, एक महिला अधिकारी और एक सब-इंस्पेक्टर थाने में बैठते हैं, लेकिन मैं एक बात कहूंगी कि शाम पांच बजे के बाद, अंधेरा होने के बाद कभी भी थाने न जाएं। अगली सुबह जाओ। यदि जाना अति आवश्यक हो तो अपने भाई, पति या पिता को साथ ले जाना।

शाह (Amit Shah) और बेबी रानी मौर्य (Baby Rani Maurya) के बयान के बरक्स ये सवाल उठना लाजिमी है कि आखिरकर यूपी की बेटियां किसकी बात सच मानें। सवाल यह भी है कि यूपी में बेटियां कितनी सुरक्षित हैं? बेबी रानी मौर्य और अमित शाह के विरोधाभासी बयानों के बाद यूपी में महिला सुरक्षा का सवाल फिर से चर्चा में आ गया है।

विपक्षी दल के नेताओं ने बेबी रानी मौर्य की टिप्पणियों के लिए उनकी खिंचाई की। आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Partu) के उत्तर प्रदेश प्रभारी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने एक ट्वीट किया कि बेटी बचाओ...। समाजवादी पार्टी के नेताओं ने भी इस बयान की निंदा की। वहीं, कांग्रेस ने भी बयान की निंदा करते हुए कहा कि इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था का क्या हाल है। बेबी रानी मौर्य ने महिला सुरक्षा पर दिए उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाया। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा कि सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए उनकी बातों को गलत ढंग से पेश किया जा रहा है।

यूपी में पिछले साल 17 अक्तूबर को राज्य सरकार ने महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंबन के मकसद से मिशन शक्ति अभियान की शुरुआत की थी। राज्य के अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी के एक बयान के मुताबिक, 'मिशन शक्ति अभियान के दौरान 17 अक्तूबर 2020 से 3 मार्च 2021 तक राज्य में सात अपराधियों को फांसी के अलावा महिला और बाल अपराध के 435 अभियुक्तों को आजीवन कारावास, 394 को 10 वर्ष से अधिक कठोर कारावास तथा 1108 अभियुक्तों को इससे कम की सजा कराई गई। इसके अलावा 1,503 असामाजिक तत्वों को को जिलाबदर भी कराया जा चुका है। लेकिन राज्य सरकार की इतनी सक्रियता और ताबड़तोड़ कार्रवाइयों के बावजूद अपराध की घटनाओं में किसी तरह की कोई कमी नहीं दिख रही है।

महिला सुरक्षा के मुद्दे पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी योगी सरकार पर हमलावर रहती हैं। प्रियंका का दावा है कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ हर दिन अपराध के औसतन 165 मामले आते हैं। प्रियंका गांधी के मुताबिक, महिला सुरक्षा को लेकर हाथरस, उन्नाव और बदायूं जैसी घटनाओं में यूपी सरकार के व्यवहार को पूरे देश ने देखा। महिला सुरक्षा की बुनियादी समझ है कि महिला की आवाज सर्वप्रथम है। मगर प्रदेश सरकार ने बार-बार ठीक इसके उलट काम किया। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि यह स्पष्ट है कि सरकार के लिए "बेटी बचाओ" और "मिशन शक्ति" सिर्फ खोखले नारे हैं।

पत्रकार विनीत राय के अनुसार, साल 2017 में यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनने के बाद ही सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा और उनके सशक्तिकरण के अपने चुनावी वादों के मुताबिक जोर-शोर से एंटी रोमियो अभियान शुरू किया था। लेकिन एंटी रोमियो स्क्वैड कार्यक्रम महिला सुरक्षा में भूमिका निभाने की बजाय विवादों में ज्यादा आ गया और अब उसका शोर बिल्कुल थम गया है।

क्या कहते हैं एनसीआरबी के आंकड़ें

गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाले एनसीआरबी के आंकडें (रिपोर्ट सिंतबर 2021 में जारी) बताते हैं कि कोरोना महामारी से प्रभावित साल 2020 के दौरान अपराध के मामलों में 2019 की तुलना में 28 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। साल 2020 में रोज औसतन 80 हत्याएं हुईं और कुल आंकड़ा 29,193 पहुंच गया। इस मामले में राज्यों की सूची में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है। यह ऐसे समय में था जब 25 मार्च 2020 से 31 मई 2020 तक कोविड-19 महामारी के कारण देश में लॉकडाउन था। पूरे देश में 2020 में बलात्कार के रोज औसतन 77 मामले दर्ज किए गए और कुल 28,046 मामले सामने आए। देश में ऐसे सबसे ज्यादा मामले राजस्थान में और दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए।

अपहरण के आंकड़े

2020 में अपहरण के सबसे ज्यादा 12,913 मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए। इसके बाद पश्चिम बंगाल में अपहरण के 9309, महाराष्ट्र में 8103, बिहार में 7889, मध्य प्रदेश में 7320 मामले दर्ज किए गए। रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में दिल्ली में 12902 आपराधिक घटनाएं हुई थी। वर्ष 2020 में यह आंकड़ा 9782 पर आया। लखनऊ और जयपुर में वर्ष 2019 में क्रमशः 2425 और 3417 मामले दर्ज किए गए थे।

लव अफेयर-ऑनर किलिंग में यूपी आगे

एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक आंकड़ों के मुताबिक, लव अफेयर में हत्या की सबसे अधिक घटनाएं उत्तर प्रदेश में हुई हैं। दूसरे नंबर पर बिहार और गुजरात हैं, जहां ऐसी 170-170 घटनाएं हुईं. 147 वारदातों के साथ तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश है। इन्हें ऑनर किलिंग से भी जोड़कर देखा जा रहा है।

प्रयागराज के में वरिष्ठ पत्रकार विनय मिश्र कहते हैं, 'यूपी के थानों में अभी भी पर्याप्त संख्या में न तो महिला पुलिसकर्मी हैं और न ही इसके लिए वे बहुत ज्यादा प्रशिक्षित हैं। बदल-बदल कर योजनाएं चलाने की बजाय एक ही योजना के सार्थक तरीके से क्रियान्वयन की जरूरत है। एंटी रोमियो को ही देखिए, शुरू में लगा कि पुलिस वाले बहुत सक्रिय हैं लेकिन उन्हें जो काम करना था, वो नहीं कर सके और मॉरल पुलिसिंग के जरिए लोगों को परेशान करने लगे।"

लखनऊ हाईकोर्ट के वकील संदीप शुक्ल कहते हैं, पिछले साल हाथरस, बलरामपुर, आजमगढ़ जैसी कई जगहों पर लगातार बलात्कार और हत्या की कई घटनाओं के बाद यूपी सरकार ने मिशन-शक्ति अभियान की शुरुआत की थी लेकिन यह अभियान भी अपराधियों में भय पैदा करने में बहुत सफल नहीं रहा।

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