गौतम अडानी ने फेंका जुमला: 2050 तक 30 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था हो गई तो ख़त्म हो जाएगी भारत से गरीबी
Gautam Adani news: देश में निजीकरण का दौर 80 के दशक के बीच में शुरू हुआ। कहा गया कि अब देश का विकास सरकार नहीं, निजी कंपनियां करेंगी। आप, हम सब प्राइवेट की तरफ दौड़ने पर मजबूर हुए।
सौमित्र राय का विश्लेषण
Gautam Adani news: देश में निजीकरण का दौर 80 के दशक के बीच में शुरू हुआ। कहा गया कि अब देश का विकास सरकार नहीं, निजी कंपनियां करेंगी। आप, हम सब प्राइवेट की तरफ दौड़ने पर मजबूर हुए। फिर भी चुप रहे। फिर उदारीकरण का दौर आया। देश के व्यापार को तवज़्ज़ो मिली। जीडीपी बढ़ने लगी। आज भी कांग्रेसी इस उपलब्धि पर उछलते हैं। लेकिन देश में अमीरी-ग़रीबी के बीच की खाई भी बढ़ी।
फिर 90 में भूमंडलीकरण शुरू हुआ। व्यापार संरक्षण खत्म हो गया। जापानी टीवी और कोरियाई फ़ोन देखकर लोग लहालोट हो गए। जीडीपी बढ़ती रही। सरकार ने ग़रीबी की परिभाषा 32 रुपए और 25 रुपये के रोज़ाना खर्च पर तय कर दी। 27 करोड़ लोग ग़रीबी से बाहर आ गए। अमीर-ग़रीब की खाई और बढ़ी। लोग फिर भी चुप रहे।
लेकिन नौकरियां लगातार घटती गईं। भारत अब गले तक कर्जदार है। फिर भी IMF और विश्व बैंक जैसी संस्थाएं भारत को क़र्ज़ के जाल में और फांसने के लिए फ़र्ज़ी दावा कर रही हैं कि 2015-2019 के बीच ग़रीबी 9.1% घट गई। हम फिर भी चुप हैं।
अब मोदी सरकार कहती है- अपना रोज़गार शुरू करो। गुजरात मॉडल अपनाओ। सरकार नौकरी दे नहीं सकती और निजी कंपनियां मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए AI और नई तकनीकों से रोज़गार घटा रही है। हम लगातार चुप हैं। अब क्लाइमेक्स पर आते हैं। भारत में छोटे स्वरोजगार- यानी सब्ज़ी, खोमचे, ठेले, मरम्मत, बढई की दुकान आदि कारोबार में 35% तक कब्ज़ा है। दिल्ली के जहांगीरपुरी कबाड़ का काम होता है।
अब नौकरी से बेदखल हिंदुओं को थोड़े पैसे में धंधा शुरू करने के लिए इन क्षेत्रों में घुसना है। तो क्या करें? मुसलमानों को बेदख़ल तो करना ही होगा। मोदी सरकार का बुलडोज़र यही काम तो कर रहा है। हम फिर भी चुप हैं, क्योंकि हमारी औलादें कल वही खोमचा लगाएंगी।
ज़रा सोचिए कि अगर मुसलमानों को वहां से भी खदेड़ दिया गया तो उस 35% जगह पर भी इस कदर मारामारी होगी कि बुलडोज़र तो आपकी औलादों के धंधे पर भी चलेगा। इसका अंदाज़ा आज आप चपरासी की नौकरी की लाइन में पीएचडी वालों को खड़े देखकर लगा सकते हैं।
अगर आपकी औलादों को रेहड़ी-पटरी पर बैठकर लोहा ही कूटना है तो फिर शिक्षा की क्या ज़रूरत?लिहाज़ा, नई शिक्षा नीति भी आई है। लाखों-करोड़ों फूंककर कागज़ का एक पुर्जा यानी डिग्री लेकर अम्बानी-अडाणी की फैक्टरियों में अनुबंध पर नौकरी करने वाला आपका लाडला निकाले जाने पर वापस रेहड़ी-पटरी पर ही आएगा।
मोदी राज में 32-25 रुपये की गरीबी तो रही नहीं। कौशल विकास की ट्रेनिंग लो। दुकान लगाओ। कमाओ और गरीबी मिटाओ। इस गणित पर चलें तो भी बढ़ती महंगाई बचत तो दूर, दो वक्त का पेट भी पूरा नहीं भरने देगी। दिल्ली के ऑटो वाले आज यही कह रहे हैं।
सरकार के खाते में तो आप ग़रीब रहे नहीं। अडाणी जी ने आज दुनिया की सबसे बड़ी मरीन सर्विस प्रोवाइडर कंपनी खरीद ली। 2050 में वे शायद एक पूरा देश ही खरीद लें। या अपने ही देश के किसी राज्य में आप पर ही बुलडोज़र चला दें।फिर भी आपको चुप रहना होगा। क्योंकि आप तब नहीं बोले, जब बोलना चाहिए था। 30 ट्रिलियन डॉलर के भारत का तसव्वुर आपको शायद आज सोने न दे।
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