Babban Carbonet Review Book: अपने में निराले लेखक की लिखी 'बब्बन कार्बोनेट'
Babban Carbonet Review Book: बब्बन कार्बोनेट कई किस्सों को साथ मिलाकर लिखी गई एक ऐसी किताब है जिसमें सामाजिक कुरीतियों, दिखावे के ऊपर पारंपरिक तरीके से नही बल्कि व्यंग्यात्मक तरीके से प्रहार किया गया है.
Babban Carbonet Review Book: बब्बन कार्बोनेट कई किस्सों को साथ मिलाकर लिखी गई एक ऐसी किताब है जिसमें सामाजिक कुरीतियों, दिखावे के ऊपर पारंपरिक तरीके से नही बल्कि व्यंग्यात्मक तरीके से प्रहार किया गया है.
किताब का आवरण चित्र 'द जंगल बुक' की याद दिलाता है और आपको इस चित्र के चित्रकार के बारे में किताब के शुरुआत में जानकारी मिल जाती है. 'सियाही स्टूडियो' ने किताब के आवरण को जिस मेहनत से तैयार किया है, उसका नतीजा यह है कि पाठक किताब हाथ में पकड़ते ही खुद को तरोताज़ा सा महसूस करेंगे.
किताब का पहला पन्ना तीन दशक का लेखन अनुभव लिए किताब के लेखक अशोक पाण्डे का परिचय देता है. इन तीन दशकों में लेखक ने 'लपूझन्ना' जैसी चर्चित किताब लिखी है तो वह लोकप्रिय वेबसाइट का 'काफल ट्री' के संस्थापक संपादक भी रहे हैं.
'विलक्षण हाजिर जवाब एंग्री यंग मैन के साथ' हिंदी के मशहूर कवि मृत्युंजय का लिखा है, किताब में इस्तेमाल की गई भाषा पर मृत्युंजय लिखते हैं 'वैसे तो यह किताब देशज भाषा में लिखी गई है, जहां स्थानीयता की बहार है पर संस्कृत शब्दावली को व्यंग के लिए इस्तेमाल करने की तकनीक में यह किताब दक्ष है'. किताब पढ़ने के बाद आप लेखक की इस बात पर ही सबसे ज्यादा प्रभावित भी होंगे.
अनुक्रम के ज़रिए यह पता चलता है कि किताब में 49 अलग-अलग किस्सों को लिखा गया है. किताब हर उम्र के लोगों के लिए लिखी गई, इसमें बच्चों के मन मे चलने वाली खुराफात है तो वयस्कों के संसार से जुड़े किस्से भी हैं. 'गरमपानी के नारायण राम मास्साब का किस्सा' जैसे शुरुआती शीर्षक से आपको यह विश्वास हो जाएगा कि इतने शानदार आवरण के बाद पाठकों को किताब के अंदर भी कुछ ना कुछ शानदार पढ़ने को जरूर मिलेगा.
'मैग्नीफाइंग' ,'अप्रेंटिस' जैसे विदेशज शब्द और 'झूलसैंण', 'भिन्नोट' जैसे देशज शब्द के साथ लिखे गए किस्से आपको अपनी ज़िंदगी के रोज़ के किस्से जैसे ही लगेंगे. किताब में एक जगह हनीमून को 'मधुमास' लिख दिया गया है. यह शब्द विश्वास दिलाता है कि ऐसे प्रयोगधर्मी हिंदी लेखक ही हिंदी भाषा को अंग्रेज़ी पर बढ़त दिलाएंगे.
'टेलर मास्साब' खिताब की तुलना 'शास्त्रीय गायक उस्ताद' से करना लेखक का अपना ही कमाल है. किताब पढ़ते आप उत्तराखंड भ्रमण पर भी रहेंगे, खासतौर पर नैनीताल के आसपास पड़ने वाले इलाकों में ही अधिकतर कहानी अपने अंजाम पर पहुंची थी.
'फलाणी चीज़ के चक्कर में मित्र कुत्ता बन गया है' पंक्ति जिस किस्से में इस्तेमाल की गई है, वह हम अपने मित्रों के साथ दिन भर कई बार साझा करते हैं और लेखक की यही खूबी है कि वह ऐसे विचारों को सही जगह सही समय पर इस्तेमाल करने के लिए सहेज कर रखते हैं. इस किताब के किस्से ऐसे नही हैं कि आप उन्हें पढ़ें और फिर भूल जाएं, इन पन्नों को आप हमेशा के लिए याद रखना चाहेंगे ताकी चालीस साल बाद भी आप उन्हें किसी को सुना सकें.
लेखक की एक खास बात है, उन्होंने बहुत सी कहानियों को व्यंगात्मक तरीके का इस्तेमाल करते हुए खुद से जोड़ा है. जैसे एक जगह वो लिखते हैं 'उन्हीं के धूम्र भण्डार में डाका डाल कर मैंने और खानदान के तकरीबन दस चचेरे-ममेरे भाइयों ने सिगरेट की लत हासिल की थी'.
'माधुरी दीक्षित, नानाजी और पानी की बोतल' किताब का सबसे खूबसूरत किस्सा है. इस किस्से में एक आदमी का अपने रिश्तों के प्रति प्रेम दिखता है, साथ उसका सामाजिक विषयों पर आत्ममंथन भी है. इस तरह व्यक्ति के सामाजिक और व्यक्तिगत, दोनों तरह के जीवन पर सुंदरता से प्रकाश डाला गया है. पृष्ठ 28 में शव के हालात का लेखक ने जिस तरह से वर्णन किया है उसके बाद लेखक का नाम स्वतः ही भारत के अग्रणी हिंदी लेखकों में दर्ज हो जाएगा.
इस किताब में आपको 'पदिया गांठी', 'गुट्टू भाई', 'जिबुवा बिरालु' जैसे कई मज़ेदार नाम भी मिलते हैं और उनके पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है. लेखक ने कुछ इसी तरह का प्रयोग अपनी किताब 'लपूझन्ना' में भी किया था, जो काफी सफल रहा था.
आगे पढ़ते आपको लेखक द्वारा वर्तमान पत्रकारिता पर लेखक द्वारा किया गया एक तगड़ा व्यंग्य दिखेगा, जो आज के हालातों पर बिल्कुल फिट बैठता है. लेखक लिखते हैं 'अपने असमय निधन से पहले 'हिमालयी नवोन्मेष' नाम से बेहैसियत प्रकाशक-सम्पादक-पत्रकार-हॉकर एक टुकड़िया अनियतकालीन पाक्षिक अख़बार भी निकालने लगे थे क्योंकि उन्हें भनक थी कि ऐसे टुच्चकर्मों को बहुत सम्मान दिए जाने का युग जल्द ही आने को था'.
लेखक ने किताब में कई प्रयोग किए हैं जैसे एक जगह उन्होंने लिखा है 'गुट्टू भाई की ज़बानी है' यहां लेखक गुट्टू भाई बन खुद के शब्द लिख पाठकों को ही गुट्टू भाई बना देते हैं. एक जगह लेखक लिखते हैं 'आंख बंद कर के पैले दिमाग के अंदर लाल पॉइंट को ढूंढना होगा और उसके बाद उसी को देखता रैना' इसे पढ़ पाठक लेखक के कहे का अनुसरण भी करने लगते हैं. 'मारुति वैन में इस जगह बैठने वाली सवारी को अपनी दोनों टांगे गीयर के इधर-उधर रखनी होती थी' इस पंक्ति में इतनी क्षमता है कि पाठकों के मन में इस तरह वैन में बैठने की छवि उभर आना स्वाभाविक है. इसी तरह अंग्रेज द्वारा बोले गए 'टुमको दो गन्टा दीया नरेन' वाक्य से आप भी हेनरू लाटा बन जाएंगे.
किताब के ज़रिए पाठक को 'सांप के कान के नीचे वाले माल' जैसा नया मुहावरा सीखने को मिलता है. सामाजिक कुरीतियों पर व्यंग्य करती कहावत 'भूसा भरण और शादी के रिसेप्शन,आंधी-तूफान या बर्फ बाढ़ की परवाह नहीं करते, होकर रहते हैं' इस किताब का आकर्षण है. लेखक ने किताब के ज़रिए पहाड़ों से जुड़ी कहावतों को दुनिया तक पहुंचाने का प्रयास किया है, जैसे वह लिखते हैं 'हमारे इधर तिवारी लोग तिवाड़ी कहे जाते हैं'. आगे के किस्सों में टीनएजर्स में नशाखोरी की आदत पर भी लिखा गया है.
लेखक लगभग हर किस्सों में पाठकों के लिए संस्पेंस बनाए रखने में कामयाब रहे हैं. 'तस्व्वुर' शब्द का प्रयोग पढ़ने में अच्छा लगता है तो 'स्कूलसखा' शब्द भविष्य में प्रयोग होने के लिए पाठकों की डिक्शनरी में खुदबखुद शामिल हो जाता है. बीयर और रम के लिए 'पी गई' की जगह 'समझी गई' का प्रयोग करना हिंदी जगत में नया-नया है.
किताब में पहाड़ पर भी बहुत कुछ लिखा गया है
'पहाड़ के लिए कुछ करने का जज़्बा' में लेखक द्वारा पहाड़ों से हो रहे पलायन जैसे गम्भीर मुद्दे को बड़ी खूबसूरती से छू लिया गया है. 'हिमालय की धवल श्रंखलाएं अपनी पूरी धज में थी' पंक्ति के ज़रिए हिमालय की जो छवि पाठकों के मन में छोड़ी जाती है, वह उनको हिमालय भ्रमण के लिए उकसाने में कामयाब रही है.
'दलिद्दर कथा' किस्से के ज़रिए लेखक ने एक ऐसे विषय पर बात की है जिसे अक्सर गम्भीरता से नही लिया जाता. उन्होंने पीढ़ियों से पहाड़ों में रह रहे मुसलमानों के प्रति हो रहे व्यवहार पर बड़े व्यंग्यात्मक तरीके से लिखा है. बड़ी-बड़ी बातों को सहजता से लिख जाना ही लेखक की सबसे बड़ी खूबी है.
पति-पत्नी की झिकझिक वाली प्यारी कहानी
और उसमें पीक भरे मुंह से निकले शब्दों को वैसा ही लिख देना, किताब से पाठकों को बांधे रखता है. 'भीमताल का सुतली वाला कुत्ता' किस्से में कुत्ते के गले में सुतली की बात सोच कर ही आप हंसने लगेंगे. कुत्ते के रंग और शरीर का वर्णन लाजवाब है.
पृष्ठ '86' वह पन्ना है जिसके लिए आप किसी किताब को खरीदने के लिए दस हज़ार रुपए भी खर्च कर दें तो कम हैं. इस किस्से को पढ़कर लगता है कि अगर लेखक ने किताब का नाम 'सुतली वाला कुत्ता' रख दिया होता तो बेहतर होता. किताब को प्रचारित करने का एक उपाय यह भी हो सकता था कि इस पन्ने को देश की गली-गली पर चिपका दिया जाता.
किताब का शीर्षक जिस किस्से से लिया गया है, लेखक के सामने उस किस्से को पाठकों के सामने साबित करने का भारी दबाव है , क्योंकि किताब के अन्य किस्से बहुत ही आला दर्जे कह रहे हैं. यह वाला किस्सा थोड़ा अडल्ट टाइप का है और किस्से में लिखी गई कुछ जगहों के बारे में जानकारी लेने के लिए आपको गूगल का सहारा लेना होगा क्योंकि किताब के सारे पाठक तो नैनीताल से नहीं होंगे ना.
'जयसंकर सिज़लर' किस्से में छोटे शहर के लोग बड़े शहरों के बारे में जो कुछ भी सोचते हैं उस सच्चाई को लेखक द्वारा बड़े ही व्यंग्यात्मक तरीके से लिख दिया गया है. 'पूरन दा और तेल का कनस्तर' किस्सा किताब के हर किस्से की किसी न किसी खूबी को खुद में समेटा हुआ है. 'हम सब तोंदू हैं' में लेखक ने जिस तरह से श्मशान का लाइव चित्रण किया है, उसे आप बड़े ध्यान से पढ़ेंगे. किताब खत्म होते-होते 'लौंडा पटवारी का' किस्सा आपको पेट पकड़ हंसा देता है.
इस किताब के ज़रिए लेखक ने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर उसे समझने का भार अपने पाठकों पर छोड़ दिया है, यह अब 'बब्बन' के पाठकों पर है कि वह अपने प्रिय लेखक की बातों को किस तरह से लेते हैं, वह इसे गम्भीरता से समझते हैं या हंस कर भूल जाते हैं.
- किताब- बब्बन कार्बोनेट
- लेखक- अशोक पाण्डे
- प्रकाशक- नवारुण
- मूल्य- ₹300
- लिंक- https://www.amazon.in/dp/939307724X/ref=cm_sw_r_apan_i_Y935REH9WJGJCB5TB3FS
- समीक्षक- हिमांशु जोशी