शासक अपनी ही जनता से युद्ध करते हैं | Some Hindi Poems on War |
Some Hindi Poems on War | युद्ध शब्द से सबसे पहले ध्यान आता है सेनाओं का, और ऐसा महसूस होता है मानों सेनाओं ने ही युद्ध शुरू किया हो| वास्तविकता यह है कि निरंकुश शासक युद्ध करते हैं
महेंद्र पाण्डेय की कविता
Some Hindi Poems on War | युद्ध शब्द से सबसे पहले ध्यान आता है सेनाओं का, और ऐसा महसूस होता है मानों सेनाओं ने ही युद्ध शुरू किया हो| वास्तविकता यह है कि निरंकुश शासक युद्ध करते हैं, सेना तो बस आदेश का पालन करती है| युद्ध शब्द से ऐसा लगता है, मानो हमेशा दो देशों के बीच ही युद्ध होता है| हनेशा यह सही नहीं होता, बहुत बार ऐसे सनकी शासक सत्ता संभालते हैं, जो अपनी जनता से ही लगातार युद्ध करते हैं| बस अंतर यह रहता है कि दो देशों के बीच युद्ध इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो जाते हैं, जबकि शासक जब अपनी ही जनता से युद्ध करता है तब तबाही अधिक होती है और लम्बे समय तक इसका असर रहता है, पर ऐसे युद्ध जनता की तरह गुमनाम ही रहते हैं| हिंदी के मूर्धन्य कवि, रामधारी सिंह दिनकर ने युद्ध पर लिखा है – युद्ध को वे दिव्य कहते हैं जिन्होंने, युद्ध की ज्वाला कभी जानी नहीं है|
जब शासक अपनी ही जनता से युद्ध करता है तब भूख, गरीबी और बेरोजगारी सबसे बड़े हथियार होते हैं – जिनसे लगातार लाशों के ढेर लगते हैं| ऐसे शासक झूठ, फरेब और मानवाधिकार हनन का इस्तेमाल मिसाइलों के तरह करते हैं| जनता के लिए ऐसा युद्ध तब और घातक हो जाता है जब शासक के सहयोगी मीडिया, संवैधानिक संस्थाएं और सोशल मीडिया बन जाते हैं| इन दिनों उक्रेन और रूस के युद्ध की खबरों को मीडिया दिन रात दिखा रहा है, दुनियाभर में चर्चा चल रही है – क्या ऐसी चर्चा अफ़ग़ानिस्तान और म्यांमार की कभी देखी है? हमारे देश की जनता जिस युद्ध को वर्ष 2014 से लगातार झेल रही है, उसकी चर्चा कभी देखी है? युद्ध से सम्बंधित विषयों पर अनेक कवितायें लिखी गयी हैं| सुंदरचंद ठाकुर की एक छोटी सी कविता है, युद्ध पर| इसमें उन्होंने लिखा है - उसके (युद्ध के) न होने के समझ आ चुके थे जब कितने ही कारण, तभी हुआ एक और युद्ध|
युद्ध पर/सुंदरचंद ठाकुर
युद्ध पर नया क्या लिखा जाए
इसमें मरते हैं नौजवान
एक हारता दूसरा जीतता है
कभी-कभी कोई नहीं हारता कोई नहीं जीतता
दोनों कपड़े झाड़ते ख़ाली हाथ लौट जाते हैं
क्या लिखा जाए युद्ध पर
जब हमें लगा कि उस पर सब कुछ
लिखा जा चुका है
उसके न होने के समझ आ चुके थे जब
कितने ही कारण
तभी हुआ एक और युद्ध
पिछले युद्धों से ज़्यादा बचकाना
दिनकर कुमार ने अपनी कविता, युद्ध में लिखा है - अनाथ बच्चों के हृदय में युद्ध समा जाता है, हृदय को पत्थर बनने में अधिक समय नहीं लगता
युद्ध/दिनकर कुमार
तर्कों के बिना ही
हो सकता है आक्रमण
युद्ध की आचार संहिता
पढ़ने के बावजूद
निहत्थे योद्धा की
हो सकती है हत्या
अदृश्य युद्ध में स्पष्ट नहीं होता
दोनों पक्षों का चेहरा
सिर्फ धुएँ से ही
आग की ख़बर मिल जाती है
गिद्ध
मृतकों की सूचना दे देते हैं
अनाथ बच्चों के हृदय में
युद्ध समा जाता है
हृदय को पत्थर बनने में
अधिक समय नहीं लगता
असमय ही विधवा बनने वाली
स्त्रियों के चेहरे पर
राष्ट्रीय अलँकरण के बदले में
मुस्कान नहीं लौटाई जा सकती
गर्भ में पल रहा शिशु भी
अदृश्य युद्ध का एक
पक्ष होता है
युद्ध राशन कार्ड से लेकर
रोज़गार केन्द्र-मतदाता सूची
खैराती अस्पताल-राहत शिविर तक
हर जगह हर रोज़मर्रा की ज़रूरत की
चीज़ों में घुला-मिला रहता है
युद्ध का स्वाद
समुद्र के पानी की तरह
खारा होता है
युद्ध जो आ रहा है, जर्मनी के कवि बैर्तोल्त ब्रेष्ट की रचना है और इसका हिंदी अनुवाद मोहन थपलियाल ने किया है| इस छोटी कविता में आम आदमी पर युद्ध का प्रभाव बताया गया है|
युद्ध जो आ रहा है/बैर्तोल्ट ब्रेष्ट/मोहन थपलियाल
युद्ध
जो आ रहा है
पहला युद्ध नहीं है ।
इसे पहले भी युद्ध हुए थ।
पिछला युद्ध
जब खत्म हुआ
तब कुछ विजेता बने
और कुछ विजित
विजितों के बीच
आम आदमी भूखों मरा
विजेताओं के बीच भी
मरा वह भूखा ही।
राजेन्द्र राजन ने अपनी कविता, युद्ध के विरोध में, में लिखा है - देशद्रोही कहे जाएँगे जो शासकों के पक्ष में नहीं आएँगे, उनके गुनाह माफ़ नहीं किए जाएँगे|
युद्ध के विरोध में/राजेंद्र राजन
जो युद्ध के पक्ष में नहीं होंगे
उनका पक्ष नहीं सुना जाएगा
बमों और मिसाइलों के धमाकों में
आत्मा की पुकार नहीं सुनी जाएगी
धरती की धड़कन दबा दी जाएगी टैंकों के नीचे
सैनिक ख़र्च बढ़ाते जाने के विरोधी जो होंगे
देश को कमज़ोर करने के अपराधी वे होंगे
राष्ट्र की चिन्ता सबसे ज़्यादा उन्हें होगी
धृतराष्ट्र की तरह जो अन्धे होंगे
सारी दुनिया के झण्डे उनके हाथों में होंगे
जिनका अपराध बोध मर चुका होगा
वे वैज्ञानिक होंगे जो कम से कम मेहनत में
ज़्यादा से ज़्यादा अकाल मौतों की तरक़ीबें खोजेंगे
जो शान्तिप्रिय होंगे मूकदर्शक रहेंगे भला अगर चाहेंगे
जो रक्षा मन्त्रालयों को युद्ध मन्त्रालय कहेंगे
जो चीज़ों को सही-सही नाम देंगे
वे केवल अपनी मुसीबत बढ़ाएँगे
जो युद्ध की तैयारियों के लिए टैक्स नहीं देंगे
जेलों में ठूँस दिए जाएँगे
देशद्रोही कहे जाएँगे जो शासकों के पक्ष में नहीं आएँगे
उनके गुनाह माफ़ नहीं किए जाएँगे
सभ्यता उनके पास होगी
युद्ध का व्यापार जिनके हाथों में होगा
जिनके माथों पर विजय-तिलक होगा
वे भी कहीं सहमे हुए होंगे
जो वर्तमान के खुले मोर्चे पर होंगे उनसे ज़्यादा
बदनसीब वे होंगे जो गर्भ में छुपे होंगे
उनका कोई इलाज नहीं
जो पागल नहीं होंगे युद्ध में न घायल होंगे
केवल जिनका हृदय क्षत-विक्षत होगा।
सुदर्शन प्रियदर्शिनी ने अपनी कविता, युद्ध, में युद्ध के प्रभावों का सजीव चित्रण किया है| उन्होंने लिखा है - सीमाओं तक नही सीमित रहते ये युद्ध, घर -घर घुस कर हुमकते हैं इन के हुंकारे|
युद्ध/सुदर्शन प्रियदर्शिनी
युद्ध के विशाल
जबड़ों मै
समां जाती हैं
संस्कृतियाँ -
सभ्यताए -एवं
मानवता --
परस्पर द्वेषों
के प्रहार -
मानसिक -विकृतियों
की -अन्वितियाँ
और न जाने कितने
नृशंस -प्रतिशोध --
सीमाओं तक
नही - सीमित रहते
ये युद्ध ......
घर -घर घुस कर
हुमकते हैं
इन के हुंकारे
एवं अहमक
प्रहार ---
लील लेते हैं
यह सिंढूर
और ममता की
मीठी गोद
और रह जाता है
केवल बचे हुए
क्षणों का
अपरिमित बोझ
इस लेख के लेखक ने अपनी कविता, युद्ध, में उस युद्ध की और इशारा किया है जो शासक अपनी ही जनता के विरुद्ध लगातार करते रहते हैं| यह युद्ध, दो देशों के बीच होने वाले युद्ध से भी अधिक घातक होता है|
युद्ध/महेंद्र पाण्डेय
युद्ध सेनायें नहीं करतीं
युद्ध शासक करते हैं
युद्ध में शासक नहीं मरते
सैनिक मरते हैं
जनता मरती है|
शासक हमेशा दूसरे देश से युद्ध नहीं करते
कभी-कभी अपनी जनता से भी युद्ध करते हैं
मीडिया, संवैधानिक संस्थाएं शासक की सहयोगी हैं
जनता को कुचलते हैं सब मिलकर
जनता को रौदते हैं
जनता को लूटते हैं|
भूख, महंगाई, बेरोजगारी घातक हथियार हैं
झूठ, फरेब, साम्प्रदायिकता मिसाइल हैं
लगातार दागी जाती हैं
शासक जनता की हरेक लाश के पास
खड़ा वीभत्स अट्टाहास करते है
अपनी विजय पर गर्व करता है|
दो देशों के युद्ध तारीख समेत
दर्ज होते हैं इतिहास के पन्नों पर
पर,
शासक द्वारा जनता से किया जाने वाला युद्ध
कहीं दर्ज नहीं होता
दो देशों के बीच युद्ध
कुछ दिनों में बंद हो जाते हैं
पर,
शासक द्वारा जनता से किया जाने वाला युद्ध
सालों-साल चलता रहता है
हमले लगातार घातक होते जाते हैं|
सुनो,
जनता की चीख-पुकार
और शासक का अट्टाहास|