Chandigarh Kare Aashiqui Review: सिनेमा के अर्थ को पूरा करती है Chandigarh Kare Aashiqui (चंडीगढ़ करे आशिकी)
Chandigarh Kare Aashiqui Review: अधिकतर बॉलीवुड फिल्मों की तरह 'चंडीगढ़ करे आशिक़ी' में भी एक लव स्टोरी शुरू हो अपने अंजाम तक पहुंची है, पर इस बीच का सफ़र बॉलीवुड की फिल्मों में न कभी देखा गया है न सुना।
Chandigarh Kare Aashiqui Review: अधिकतर बॉलीवुड फिल्मों की तरह 'चंडीगढ़ करे आशिक़ी' में भी एक लव स्टोरी शुरू हो अपने अंजाम तक पहुंची है, पर इस बीच का सफ़र बॉलीवुड की फिल्मों में न कभी देखा गया है न सुना।
जितेंद्र के भतीजे अभिषेक कूपर ने बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान पहचान बनाई है। अपने निर्देशन में 'रॉक ऑन', 'काइ पो छे' , 'केदारनाथ' जैसी सफ़ल फिल्में बनाने के बाद अभिषेक इस बार हमारे सामने 'चंडीगढ़ करे आशिक़ी' लाए हैं।
फ़िल्म का पहला हाफ आपको आशिक़ी वाले मूड में ढाले रहेगा, बॉडी बिल्डिंग का संसार और आधुनिक समय में रिश्तों की तेज़ी यहां देखी जा सकती है। सम्बन्धों में मोबाइल के गहराते प्रभाव को भी जगह-जगह बखूबी दिखाने की कोशिश करी गई है। इंटरवल से थोड़ा पहले फ़िल्म के विषय के बारे में पता चलेगा और यह वह विषय है जो भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहली बार दर्शकों के सामने लाने का प्रयास किया गया है।
अपने गृहनगर के बैकग्राउंड में बनाई गई इस फ़िल्म में आयुष्मान खुराना ने मेज़बान की भूमिका बड़े सही ढंग से निभाई है और दर्शकों को अपनी परफेक्ट मसल्स के दर्शन कराए हैं। आयुष्मान आज के युवाओं का चेहरा बने नज़र आते हैं, जिस पर सफलता और शादी हर तरह का बोझ है और उन्होंने इसे बखूबी निभाया भी है। फ़िल्म की महफ़िल लूट ले गई हैं आधुनिक लड़की बनी वाणी कपूर , उन्होंने जिस तरह के किरदार को निभाया है उसके लिए उन्हें अपने बॉलीवुड कैरियर को दांव पर रखना था पर वह इसमें सिकंदर निकली।
फ़िल्म में बहुत से पात्र हैं जिनमें वरिष्ठ अभिनेता कंवलजीत सिंह , योगराज सिंह, 'चक दे इंडिया!' फेम तान्या अब्रोल, अभिषेक बजाज जैसे सितारे मौजूद हैं और सभी ने अपनी छाप छोड़ी है। दृश्यों को याद किया जाए तो पुलिस से प्रेमी युगल का सामना, फ़िल्म के विषय पर आयुष्मान का गूगल सर्च करना और मां-बेटी का हॉस्पिटल संवाद, याद रहते हैं।
फ़िल्म का संगीत ताज़गी भरा और 'तुम्बा ते जुम्बा', 'कल्ले-कल्ले' , 'माफ़ी' जैसे गाने लोगों की ज़ुबान पर लंबे समय तक चढ़े रहेंगे। संवादों पर बात की जाए तो यह भी फ़िल्म की जान हैं और 'सोच मैंने क्या काटा' है तो माथा सन्न करने वाला है। फ़िल्म की पटकथा और छायांकन शानदार हैं। फ़िल्म देख या तो आपको चंडीगढ़ की याद आ जाएगी या आप वहां घूमने के लिए टिकट बुक करा लेंगे। फ़िल्म से जुड़े सभी लोगों ने इसे पूरा करने में जो हिम्मत दिखाई है,वही हिम्मत 'केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड' ने भी इसे यू-ए की जगह यू प्रमाण पत्र देकर दिखानी चाहिए थी।
दर्शकों की बात भी कर ली जाए कि वह यह फ़िल्म क्यों देखें , तो आख़िर में थोड़ा सा चूकने के बाद भी सिनेमा की समाज को लेकर जो जिम्म्मेदारी है वह यह फ़िल्म पूरा करती दिखती है। इश्क़ पर थोड़ा कम प्रतिबंध लगे और समाज के अंदर भविष्य में कुछ अच्छा हो इसके लिए परिवार सहित यह फ़िल्म देख लेने की हिम्मत जुटाइए।
- निर्देशक- अभिषेक कपूर
- पटकथा- सुप्रतीक सेन, तुषार परांजपे
- अभिनीत- आयुष्मान खुराना, वाणी कपूर
- छायांकन- मनोज लोबो
- संगीत- सचिन-जिगरो
- निर्माता- भूषण कुमार, प्रज्ञा कपूर, कृष्ण कुमार, अभिषेक नय्यर
- रेटिंग- 4/5
- समीक्षक- हिमांशु जोशी @Himanshu28may