लाशों का इवेंट मैनेजमेंट: प्रधानमंत्री हरेक मौके पर आंसू तो बहा सकते हैं पर करने के नाम पर बस इवेंट मैनेजमेंट कर सकते हैं
A new normal – Government is not responsible for any disaster, only if government is of BJP. गुजरात में मोरबी में हुए हादसे से ठीक एक दिन पहले दक्षिण कोरिया के सीओल में एक उत्सवनुमा आयोजन के दौरान भगदड़ के कारण लगभग 156 व्यक्तियों की जान चली गयी|
लाशों का इवेंट मैनेजमेंट: प्रधानमंत्री हरेक मौके पर आंसू तो बहा सकते हैं पर करने के नाम पर बस इवेंट मैनेजमेंट कर सकते हैं
महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
A new normal – Government is not responsible for any disaster, only if government is of BJP. गुजरात में मोरबी में हुए हादसे से ठीक एक दिन पहले दक्षिण कोरिया के सीओल में एक उत्सवनुमा आयोजन के दौरान भगदड़ के कारण लगभग 156 व्यक्तियों की जान चली गयी| सीओल के इतेवों नामक क्षेत्र में हेलोवीन उत्सव के आयोजन के दौरान यह घटना घटी थी| इसके बाद वहां सरकार और पुलिस के लगभग सभी बड़े चेहरे पहुंचे, घटना पर अफ़सोस जताया और देश से माफी माँगी| प्रधानमंत्री और पुलिस के बड़े अधिकारियों ने सार्वजनिक तौर पर अपनी गलती मानी और फिर ऐसी घटना नहीं होने देने का आश्वासन दिया| प्रधानमंत्री हैन डक सू ने सार्वजनिक तौर पर इसे संस्थागत असफलता बताया और इसके लिए माँफी माँगी| पुलिस के मुखिया यून ही कुन ने कहा कि आपातकालीन व्यवस्था में अनेक खामियां थीं और इसके लिए सार्वजनिक तौर पर देश से माँफी माँगी|
सरकार और पुलिस ने घटना की पूरी तहकीकात के लिए एक निष्पक्ष जांच का भरोसा दिया है| दक्षिण कोरिया में वर्ष 2014 के बाद से यह इस तरह की पहली बड़ी घटना है| दक्षिण कोरिया के गृह मंत्री ने इसे मानव-निर्मित आपदा बताया और सीओल के मेयर ने भी इस घटना के लिए जनता से माफी माँगी है| दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक एओल ने भी अपने शोक सन्देश में कहा है कि ऐसी घटना की पूरी जिम्मेदारी सरकार की है| प्रधानमंत्री ने सभी मृतकों के परिवार के सदस्यों और इस घटना से जुड़े अन्य सभी व्यक्तियों के लिए मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों की सहायता उपलब्द्ध कराने की बात कही है|
इन सबके बीच आप मोरबी की घटना को परखिये, तब आपको एक जीवंत प्रजातंत्र की हकीकत समझ में आयेगी| सरकारी तौर पर 135 व्यक्तियों की मृत्यु और कुछ के अबतक लापता होने के बाद भी सरकार और पुलिस अपने आप को पाक साफ़ बता रहे हैं, किसी की कोई जिम्मेदारी तय नहीं है और जाहिर है देशवासियों से माफी माँगने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता है| यहाँ प्रधानमंत्री हरेक मौके पर आंसू तो बहा सकते हैं पर करने के नाम पर बस इवेंट मैनेजमेंट कर सकते हैं| हरेक बड़ा आदमी या बड़े पुलिस अधिकारी जब आमले की तह तक जाने की किसी भी दोषी को नहीं छोड़ने की बात करते हैं तब दरअसल वे अपने मस्तिष्क में आकलन कर रहे होते हैं कि किसे क्लीनचिट देनी है और किसे बलि का बकरा बनाना है|
हमारे देश में जब अस्पताल घायलों से पूरी तरह भरा होता है तब अस्पताल प्रशासन घायलों को दरकिनार कर प्रधानमंत्री के स्वागत में अस्पताल को रंगवाता है, पानी हो या नहीं हो पर एक अदद चमकदार वाटर कूलर खड़ा करता है| घायल मरते हों तो मर जाएँ पर प्रधानमंत्री की कोई भी तस्वीर खराब नहीं होनी चाहिए|
दरअसल वर्ष 2014 के बाद से हमारे देश में एक नई परंपरा ने जन्म लिया है और इस नई परंपरा में केंद्र सरकार, मीडिया, बीजेपी समर्थक, पुलिस और न्यायालय सभी बराबर की भागीदारी निभाते हैं| यह परंपरा है – किसी भी घटना-दुर्घटना में सरकार की जिम्मेदारी केवल तभी होते है, जब सरकार बीजेपी के विपक्ष की होती है| बीजेपी सरकारों में या फिर बीजेपी के अधिपत्य वाले शहरी निकायों में होने वाले किसी भी दुर्घटना की जिम्मेदारी सरकार के नहीं होती| मोरबी में नदी पर बने ऐतिहासिक पुल के रखरखाव की जिम्मेदारी एक घड़ी बनाने वाले कंपनी को दी गयी, पर नगर निकाय का कोई अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार नहीं है| रखरखाव वाली कंपनी भी जिम्मेदार नहीं है, जिम्मेदारी केवल टिकट काटने वालों और सुरक्षा में लगे लोगों की है| पुलिस के बड़े अधिकारियों से टीवी कैमरे पर भी यह सवाल पूछा गया – उन्होंने कभी गुजराती में कुछ कहा, कभी हिन्दी और कभी अंगरेजी में कहा – पर किसी बड़े अधिकारी को क्यों नहीं पकड़ा गया इस बारे में बेशर्मी से भी कुछ नहीं कहा|
दुनियाभर में हमारा ही एक ऐसा तथाकथित प्रजातंत्र है, जहां समाज को, मतदाताओं को और सत्ता को जनता की मौत से कोई फर्क नहीं पड़ता है, बल्कि सत्ता के लिए तो ऐसी घटनाएं बड़ा इवेंट मैनेजमेंट होती हैं| मीडिया के लिए यह महज एक दिन का तमाशा होता है| मीडिया का मोरबी का तमाशा सबने देखा, पर इसी मीडिया की रिपोर्टिंग आप याद कीजिये जब प्रधानमंत्री का काफिला पंजाब में किसी फ्लाईओवर पर फंस गया था| कई दिनों तक मीडिया मुख्यमंत्रियों और केन्द्रीय नेताओं के वक्तव्य दिखाता रहा था, टीवी डिबेट होते रहे थे, हरेक रिपोर्टर पाकिस्तान की दूरी और प्रधानमंत्री पर काल्पनिक खतरे पर कहानियां सुनाता रहा था| जनता से इस तरह विमुख सत्ता और मीडिया शायद ही कहीं हो|