Extreme Right Politics India : निरंकुश और कट्टरवादी राजनीति में जनता नहीं होती
Extreme Right Politics India : जब आप निरंकुश, हिंसक और कट्टरवादी दक्षिणपंथी राजनीति करते हैं, तब आप केवल अपनी दकियानूसी विचारधारा और अपने लोगों के भले के लिए राजनीति करते हैं, ऐसी राजनीति में जनता का अस्तित्व केवल तमाशबीन और भीड़ का ही रहता है|
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Extreme Right Politics India : जब आप निरंकुश, हिंसक और कट्टरवादी दक्षिणपंथी राजनीति करते हैं, तब आप केवल अपनी दकियानूसी विचारधारा और अपने लोगों के भले के लिए राजनीति करते हैं, ऐसी राजनीति में जनता का अस्तित्व केवल तमाशबीन और भीड़ का ही रहता है| ऐसी राजनीति करने वाले राजनीति में कमजोर होते हैं, तर्कहीन होते है – इसलिए हिंसक होते हैं और जनता को भी हिंसक बना डालते हैं| जनता को हिंसक बनाने के लिए कहीं धर्म का सहारा लिया जाता है तो कहीं नस्ल-भेद का| तर्कहीन राजनीति को आगे बढाने के लिए जरूरी है हरेक संवैधानिक संस्था, जांच एजेंसियों, पुलिस-प्रशासन और न्यायालयों में अपनी विचारधारा के लोगों को, भले ही वे नाकाबिल हो, नियुक्त किया जाए| ऐसी राजनीति की एक और विशेषता है मीडिया को गुलाम बनाना और निष्पक्ष पत्रकारिता पर घातक प्रहार| यह सब किसी एक देश की बात नहीं है बल्कि निरंकुश और कट्टर दक्षिणपंथी राजनीति का एक वैश्विक तरीका है|
यह सब हमलोग अपने देश में लगातार देख रहे हैं, और यही ट्रेंड अमेरिका में भी स्पष्ट होने लगा है| हमारे देश में यह सब बीजेपी के सत्ता में आने से दशकों पहले की तैयारी के तौर पर नजर आता है तो दूसरी तरफ अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के सत्ता से जाने के बाद नजर आ रहा है| अब तक यही लग रहा था कि अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाईडेन सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत बनाते जा रहे हैं, पर हाल में ही गर्भपात क़ानून पर अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने साबित कर दिया कि डोनाल्ड ट्रम्प ने नियुक्तियों, विशेष तौर पर न्यायालयों में नियुक्तियों का, ऐसा जाल बुना है जो वर्तमान सरकार की पूरी विचारधारा को पलटने की क्षमता रखता है – और मौजूद राष्ट्रपति के पास ऐसे निर्णयों की भर्त्सना करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है|
जिस तरह से हमारे देश में न्याय और राहत केवल सत्ता या फिर एक विचारधारा के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है, वही हाल अमेरिका का भी है| हमारे देश में कुछ लोगों के वायरल भड़काऊ भाषणों पर आदेश आता है कि हंस कर कहा गया भड़काऊ भाषण भड़काऊ नहीं होता तो सैकड़ों लोग बिना किसी भाषण दिए ही भड़काऊ भाषण के नाम पर बंद कर दिए जाते हैं और न्यायालय में उनकी सुनवाई नहीं होती| अमेरिका में भी ट्रम्प द्वारा नियुक्त किये न्यायाधीशों की संख्या बढ़ गयी है और अब बाईडेन की विचारधारा लगातार धराशाई होती जा रही है| गर्भपात के निर्णय ने तो खूब सुर्खियाँ बटोरीं, पर यह यह अकेला फैसला नहीं है, जिसने वर्तमान सरकार पर प्रहार किया है|
हाल में ही अनेक भाषणों में बाईडेन ने अमेरिका में सामान्य नागरिकों को आसानी से हथियार खरीदने और उसे लेकर सरेआम घूमने की इजाजत देने वाले क़ानून को बदलने के बारे में कहा| इस मसले पर उन्होंने अनेक ट्रम्प की पार्टी के रिपब्लिकन सांसदों से भी चर्चा की, इसी बीच में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले द्वारा न्यूयॉर्क हैण्डगन लॉ को खारिज कर दिया| दशकों पुराने इस क़ानून के तहत न्यूयॉर्क में सामान्य नागरिक के बन्दूक या पिस्टल खरीदने की प्रक्रिया जटिल थी और बन्दूक लेकर घर से बाहर जाने के पहले वाजिब कारण बता कर अनुमति लेनी पड़ती थी| अब यह क़ानून पलट दिया गया है, अब कोई भी बन्दूक या पिस्टल आसानी से खरीद सकता है और भरी बन्दूक लेकर शौपिंग मॉल या कहीं भी जाने को स्वतंत्र है|
डोनाल्ड ट्रम्प शुरू से बन्दूक के हिमायती रहे हैं, और आज भी वे हरेक के पास बन्दूक की विचारधारा रखते हैं| इस क़ानून के पलटने का असर केवल न्यूयॉर्क पर ही नहीं बल्कि ऐसे ही क़ानून वाले कैलिफ़ोर्निया, न्यूजर्सी समेत 7 राज्यों पर पड़ेगा, और साथ ही राजधानी वाशिंगटन डीसी पर भी| यह फैसल तब आया है, जबकि अमेरिका में वर्ष 2020 में बंदूकों के कारण 45222 मौतें दर्ज की गईं थीं और वर्ष 2022 में अबतक 277 मौतें हो चुकी हैं|
इस पहले एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के पुरातनपंथी न्यायाधीशों ने उस क़ानून की भर्त्सना की थी जिसके तहत अमेरिका में चर्च का प्रशासन में दखल ख़त्म किया गया था| हाल में ही सर्वोच्च न्यायालय ने अमेरिका के एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के अधिकारों पर अंकुश लगा दिया है| इस फैसले के तहत यह संस्था राज्यों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए निर्देश नहीं दे सकती है| जाहिर है इस फैसले के बाद अमेरिका के बहुत सारे राज्यों में कोयले का उपयोग बढ़ जाएगा| हाल फिलहाल में इन न्यायाधीशों के वक्तव्यों से स्पष्ट है कि अब उनकी नजर अमेरिका में प्रेस की आजादी पर है| संभव हैं अगले कुछ दिनों में अमेरिका में प्रेस की आजादी पर ही अंकुश लग जाए|
कट्टरपंथी और निराकुश सरकारें जब स्वयं अपनी विचारधारा जनता पर थोपने में असमर्थ रहती हैं तब ऐसी विचारधारा को लागू करने का काम न्यायालय करने लगते हैं| न्यायालय जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होते और इनके निर्णयों पर सवाल नहीं किये जा सकते| पोलैंड में वर्ष 2016 में सरकार ने गर्भपात को प्रतिबंधित करने का फरमान सुनाया था, पर इसके बाद बढ़ाते जन-आन्दोलन के बाद इसे वापस लेना पड़ा था| इसके बाद वर्ष 2020 में वहां के न्यायालय ने इसे लागू कर दिया, और जनता को इस फैसले को मानना पड़ा| जहां तक जनता की राय का सवाल है – पोलैंड में 66 प्रतिशत और अमेरिका में 60 प्रतिशत से अधिक नागरिक गर्भपात के अधिकार का समर्थन करते हैं| पोलैंड में वर्ष 2020 के गर्भपात निषेध क़ानून का समर्थन तो 10 प्रतिशत जनता भी नहीं करती|
जाहिर है पुरातनपंथी, कट्टरपंथी, निरंकुश और हिंसक राजनीति के मूल में न्यायालयों में और सभी संवैधानिक संस्थाओं में अपनी विचारधारा के लोगों की नियुक्ति एक वैश्विक समस्या है और हरेक जगह की जनता इसे झेल रही है|