Hardik Patel join BJP? हार्दिक के बीजेपी में जाने से कहीं कांग्रेस की 'नसबंदी' न हो जाए!

Hardik Patel join BJP? कांग्रेस अकेली ऐसी पार्टी बन चुकी है, जहां एक आता है तो एक-दो नेता दल बदल लेते हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव के छह महीने पहले ठीक ऐसी ही हो रहा है, जब राज्य कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने एक बार फिर बीजेपी में जाने के संकेत दिए हैं।

Update: 2022-04-23 07:13 GMT

Hardik Patel join BJP? हार्दिक के बीजेपी में जाने से कहीं कांग्रेस की ‘नसबंदी’ न हो जाए!

सौमित्र राय का विश्लेषण

Hardik Patel join BJP? कांग्रेस अकेली ऐसी पार्टी बन चुकी है, जहां एक आता है तो एक-दो नेता दल बदल लेते हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव के छह महीने पहले ठीक ऐसी ही हो रहा है, जब राज्य कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने एक बार फिर बीजेपी में जाने के संकेत दिए हैं। उधर, कांग्रेस में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर का शामिल होना अब तकरीबन तय माना जा रहा है। क्या आयाराम-गयाराम का इतिहास फिर दोहराया जाएगा ?

हार्दिक ने पिछले दिनों बयान दिया था कि पार्टी में उनकी स्थिति शादी के फौरन बाद नसबंदी करा दिए गए दूल्हे जैसी है। यानी कार्यकारी अध्यक्ष होने के बाद भी उनकी सुनी नहीं जा रही है और पटेल ने इसका ठीकरा पार्टी की राज्य इकाई पर फोड़ा है। शुक्रवार को उन्होंने कहा कि वे श्रीराम के वंशज हैं, हिंदू हैं और समय रहते ठोस फैसले लेने और पुख्ता रणनीति बनाने के लिए बीजेपी की तारीफ करते हैं। हालांकि, उन्होंने बीजेपी में शामिल होने की संभावना से इनकार भी किया।

क्यों नाराज हैं हार्दिक ?

2017 के गुजरात विधानसभा के चुनाव में बीजेपी को 99 सीटों पर लाकर खड़ा करने में सिर्फ हार्दिक पटेल का ही हाथ नहीं था। जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकुर ने भी कांग्रेस के वोट शेयर को 40 फीसदी के पार पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। हार्दिक 2019 में कांग्रेस में शामिल हुए। उनके आने के बाद यह संभावना जताई गई कि कांग्रेस पार्टी को 2022 के विधानसभा चुनाव में पाटीदार वोटों का और अधिक फायदा मिलेगा, जो कि सत्तारूढ़ बीजेपी से नाराज बताए जाते हैं। अब हार्दिक का आरोप है कि कांग्रेस ने पाटीदार वोट लेने के लिए उनका इस्तेमाल किया और इस बार के चुनाव में पार्टी नरेश पटेल को सीएम का उम्मीदवार बनाकर पाटीदारों के वोट बटोरना चाहती है।

दिव्य भास्कर के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि हार्दिक के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर पार्टी की राज्य इकाई पहले ही दो हिस्सों में बंटी हुई थी और आलकमान ने इस बढ़ती खाई को पाटने की कोई कोशिश नहीं की। इसका नतीजा यह है कि बीते करीब डेढ़ साल से राज्य कांग्रेस का एक धड़ा हार्दिक पटेल की उपेक्षा करता रहा है। उन्हें जरूरी बैठकों, कार्यक्रमों में नहीं बुलाया जाता।

हालांकि, गुजरात कांग्रेस के एक नेता इन कारणों को उतना अहम नहीं मानते, जितना कि खोडलधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेश पटेल को पार्टी में शामिल करने की कोशिश से हार्दिक की नाराजगी। लेउवा पटेल समुदाय से आने वाले नरेश पटेल की कांग्रेस नेतृत्व के साथ तकरीबन 17 बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन हार बार गुजरात कांग्रेस के आला नेता विरोध में उतर आते हैं। हार्दिक को डर है कि नरेश पटेल के पार्टी में आने से उनका कद कम हो जाएगा।

कांग्रेस के लिए कौन है अहम- हार्दिक या नरेश पटेल ?

नरेश पटेल सौराष्ट्र के बड़े पाटीदार नेता है। माना जाता है कि सौराष्ट्र की करीब 39 सीटों पर उनका दबदबा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जहां सौराष्ट्र की 30 सीटें जीती थीं, वहीं बीजेपी को 23 सीटें मिली थीं। अगर पार्टी नरेश पटेल को सीएम उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतारती है कि उसे सौराष्ट्र ही नहीं, बल्कि राज्य के अन्य हिस्सों में भी फायदा मिल सकता है, क्योंकि लेउवा पटेल समुदाय की संख्या गुजरात में अच्छी-खासी है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जगदीश ठाकोर ओबीसी समुदाय से आते हैं, जबकि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुखराम राठवा आदिवासी समुदाय की अगुवाई करते हैं। राज्य कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा कि नरेश पटेल के कांग्रेस में आने के बाद से पाटीदार समुदाय के बीच पार्टी की स्थिति और मजबूत होगी और इसीलिए हार्दिक पटेल को अपने से बड़े कद के नेता का स्वागत करना चाहिए।

फिर फैसले में देरी क्यों ?

खुद हार्दिक पटेल भी यह सवाल उठा चुके हैं और सार्वजनिक रूप से उनका इशारा गुजरात कांग्रेस इकाई की तरफ बार-बार जाता है, जो कि उनके मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व के फैसले में अड़ंगा डाल रहे हैं। दिव्य भास्कर के पत्रकार नरेश पटेल को कांग्रेस में शामिल करने में हो रही देरी के पीछे पार्टी की राज्य इकाई के उस धड़े को जिम्मेदार मानते हैं, जो दलित, आदिवासी और ओबीसी वोट बैंक के सहारे 2022 के चुनाव में जीत की उम्मीद पाले हुए हैं। उनका मानना है कि 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर करीब 2 फीसदी बढ़ा है। कांग्रेस को लगभग 4 फीसदी वोटों का फायदा जरूर हुआ है, लेकिन दोनों के बीच अभी भी 8 प्रतिशत वोटों का फासला है और इसे शहरी इलाकों में वोट शेयर बढ़ाकर ही पाटा जा सकता है। इसीलिए नरेश पटेल को सभी दल अपने खेमे में लाना चाहते हैं।

बीजेपी भी नरेश पटेल को पार्टी में शामिल कर कांग्रेस आलाकमान को मात देना चाहती है और जानकार सूत्रों के मुताबिक, खुद गृह मंत्री अमित शाह इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व को जल्द फैसला लेकर लंबे समय से लटके इस मामले को खत्म करना चाहिए।

नफे-नुकसान का गणित

गुजरात में पाटीदार समुदाय से अभी तक पांच नेता सीएम बन चुके हैं, जिनमें से चार उसी लेउवा पटेल समुदाय से हैं, जिनसे नरेश पटेल आते हैं। गुजरात विधानसभा की 182 सीटों में से लगभग 65 सीटों पर पाटीदार समुदाय के वोट निर्णायक हैं। कांग्रेस ने पिछले चुनाव में हार्दिक पटेल के सहारे क्षत्रिय—दलित-आदिवासी-मुसलमान के अपने समीकरण में बदलाव कर पाटीदारों को शामिल करने का जो फॉर्मूला अपनाया था, उसने बीजेपी को झटके दिए हैं। अब अगर हार्दिक पटेल कांग्रेस से रूठकर बीजेपी का दामन थाम लेते हैं तो पाटीदारों के 'अपमान' का हार्दिक का आरोप कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है।


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