Rahul Gandhi in Cambridge: जानिए, राहुल गांधी की कौन सी 5 बातें बीजेपी सरकार को चुभ गईं

Rahul Gandhi in Cambridge: हम भारतीयों को परदों से बहुत प्यार है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब भारत आए तो सरकार ने गरीबी छिपाने के लिए दीवार तान दी और पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख जब अहमदाबाद आए तो परदे लगाए गए।

Update: 2022-05-22 09:49 GMT

Rahul Gandhi in Cambridge: जानिए, राहुल गांधी की कौन सी 5 बातें बीजेपी सरकार को चुभ गईं

सौमित्र रॉय का विश्लेषण

Rahul Gandhi in Cambridge: हम भारतीयों को परदों से बहुत प्यार है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब भारत आए तो सरकार ने गरीबी छिपाने के लिए दीवार तान दी और पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख जब अहमदाबाद आए तो परदे लगाए गए। 'घर की बात घर में ही रहनी चाहिए' और 'हमारे घरेलू मामलों पर बोलने का हक किसी को नहीं'- जैसे बयान सूचना क्रांति के इस जमाने में निजता और सार्वभौमिकता के लिए कम और छिपाने के लिए ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं।

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी जाना और वहां अपने भाषण में भारत की इस छिपाऊ परंपरा पर घासलेट छिड़कना कुछ ऐसा ही है, जैसे असहमति के शोलों से घिरी बीजेपी सरकार का सारा बनावटीपन खाक हो गया हो। नतीजा यह रहा कि सरकार के मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और यहां तक कि बीजेपी शासित राज्यों के नेताओं तक ने उठती लपटों पर बजाय पानी छिड़कने के, झूठ का तेजाब फेंक मारा। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने तो यहां तक कह दिया कि असम के पहले सीएम गोपीनाथ बोरदोलोई ने महात्मा गांधी के समर्थन ने राज्य को भारतीय संघ में बनाए रखा, वरना देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तो राज्य को पाकिस्तान के हवाले छोड़ दिया था। यह बात अलग है कि राहुल को झूठा ठहराते हुए हिमंता खुद भी आधा सच ही बोल पाए।

केवल इतना ही नहीं, बीजेपी के प्रचार में हमेशा अग्रणी ऑप इंडिया ने तो कैम्ब्रिज में राहुल गांधी के 'आईडियाज फॉर इंडिया' कार्यक्रम के आयोजकों, प्रायोजनकर्ताओं का पूरा इतिहास खोदते हुए उन्हें कांग्रेसी ठहरा दिया। जाहिर है, ब्रिटेन की जमीन पर भारतीय समुदाय के साथ बात करते हुए राहुल गांधी ने जिन मुद्दों को उठाया, वे कोई नए नहीं हैं। इनमें से कई मुद्दों पर देश में तकरीबन हर रोज बहस होती है।

राहुल की वे पांच बातें, जो बीजेपी को सबसे ज्यादा चुभी हैं

  1. भारत राज्यों का संघ है। सभी राज्यों ने केंद्र सरकार के साथ शांति का समझौता किया है। इसलिए सरकार को संविधान के दायरे में सभी राज्यों से संवाद कायम करना चाहिए। इसी संवाद के माध्यम से हमारा संविधान, लोकतांत्रिक प्रणाली और संवैधानिक संस्थाएं उभरी हैं।
  2. बीजेपी देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का घासलेट छिड़क रही है। बस एक चिंगारी की जरूरत है। फिर देश अपने आप जलने लगेगा। हमें इसे रोकना होगा।
  3. राहुल का यह कहना कि भारतीय विदेश सेवा के अफसरों में बड़ा बदलाव आया है और वे घमंडी हो गए हैं।
  4. भारत में लोकतंत्र की स्थिति अच्छी नहीं है। बीजेपी के लोगों ने सभी संवैधानिक संस्थानों पर कब्जा कर लिया है।
  5. चीन ने लद्दाख और डोकलाम में यूक्रेन जैसे हालात पैदा कर दिए हैं और सरकार इस मामले पर बोलने से डरती है।

बीते 8 साल में संघीय शासन व्यवस्था पर आंच नहीं आई?

चाहे जीएसटी में राज्यों के हिस्से का मसला हो, सीएए/एनआरसी का या फिर कानून-व्यवस्था का, बीजेपी की केंद्र सरकार अमूमन राज्यों के साथ संवाद और सहमति के बिना उन पर फैसले थोपने की कोशिश करती रही है। पूर्वोत्तर के असम और मिजोरम के बीच बीते साल हुई खूनी भिड़ंत और हाल में आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में आरोपी बीजेपी नेता तेजिंदरपाल सिंह बग्गा की गिरफ्तारी को लेकर तीन राज्यों की पुलिस के बीच खींचतान यह बताते हैं कि देश की संघीय शासन प्रणाली लगातार कमजोर हो रही है और इसमें केंद्र सरकार की ओर से राज्यपालों की भूमिका संदेह से परे नहीं रही है। राहुल गांधी ने कैम्ब्रिज में कहा कि प्रत्यावर्तन निदेशालय, सीबीआई और अन्य केंद्रीय एजेंसियों का बेजा इस्तेमाल पाकिस्तान की तरह राज्यों को खोखला कर रहा है। यह लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है, क्योंकि सरकार अपनी मातहत एजेंसियों के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश कर रही है। सीबीआई को जांच के लिए सहमति के मामले में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तनातनी यूं ही नहीं पैदा हुई हैं। आधा दर्जन राज्यों ने सीबीआई को अपने यहां जांच या छापामारी से पहले अनुमति लेने की बाध्यता कर दी है। क्या इसे केंद्र सरकार को चुनौती की तरह नहीं देखा जाना चाहिए? इन हालात में अगर राहुल गांधी एक भारत के विचार को लेकर केंद्र सरकार की कथनी-करनी में अंतर पर सवाल उठा रहे हैं तो इसमें कोई गलत नहीं है।

ध्रुवीकरण को चुनाव जीतने का रास्ता किसने बनाया?

हेट स्पीच, धर्म सभा के नाम पर उकसाऊ बयानों से होते हुए धार्मिक शोभायात्राओं के दौरान अल्पसंख्यकों पर अभद्र, आपत्तिजनक भाषा में भड़काऊ नारे, शक्ति प्रदर्शन के जरिए दंगे की साजिश से लेकर अब मस्जिद, ऐतिहासिक धरोहरों में हिंदू प्रतिमाओं को तलाशने तक का यह पूरा खेल देश को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की आग में झोंककर सत्ता हथियाने का काम बीजेपी ने 22 साल पहले शुरू किया था। यूपी चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का 80-20 वाला बयान इसकी ही एक कड़ी है, जिसका सबसे हिंसक और निंदनीय रूप मध्यप्रदेश के नीमच में दो दिन पहले नजर आया, जिसमें बीजेपी के एक नेता ने एक दिव्यांग बुजुर्ग को मुस्लिम समझकर पीट-पीटकर मार डाला। इन घटनाओं पर केंद्र सरकार की रहस्यमयी चुप्पी नफरत के माहौल पर घासलेट डालने का ही काम कर रही है और इसका अंजाम यह है कि कर्नाटक में बजरंग दल युवाओं को हथियारों की ट्रेनिंग दे रहा है, युवाओं को त्रिशूल बांटे जा रहे हैं। दरअसल, राहुल गांधी ने ब्रिटेन के प्रबुद्धजनों के सामने इस सच को जाहिर कर एक विपक्षी नेता होने के नाते उनकी तमाम आशंकाओं को सही साबित कर दिया है। राहुल के भाषण को राष्ट्रद्रोह करार देने वाला बीजेपी का पलटवार एक बार फिर विपक्ष के आरोपों को सही साबित करता है कि भारत में असहमति का दूसरा नाम राष्ट्रद्रोह है।

यह आत्मविश्वास नहीं, जी-हुजूरी है!

भारतीय विदेश सेवा में आए बदलाव और उनके घमंडी हो जाने के राहुल गांधी के बयान पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इस बदलाव को आत्मविश्वास और राष्ट्रहित की रक्षा करना बताया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले अमेरिकी दौरे के समय अपने इंतजामों से उन्हें खुश कर देने वाले एस जयशंकर चीन के मसले पर चुप्पी साध लेते हैं, लेकिन रूस से तेल खरीदने, भारत में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन पर अमेरिका की आलोचना पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। यह उनका आत्मविश्वास हो सकता है और भारत की अमेरिका और यूरोप से बढ़ती दूरी का कारण भी, लेकिन यह राष्ट्रहित में है इसकी कोई गारंटी नहीं। खासकर तब, जबकि चीन ने तिब्बत और अरुणाचल से लेकर डोकलाम तक में अपने पैर पसारे हैं। यूक्रेन पर बमबारी के दौरान जयशंकर भारतीय बच्चों को समय रहते स्वदेश नहीं लौटा पाए और मोदी सरकार को तीन मंत्रियों को मदद के लिए वहां भेजना पड़ा था। खुद जयशंकर दो साल पहले आई अपनी किताब 'द इंडिया वे' में जिन तीन बातों को विदेश नीति के लिए नकारात्मक बताते हैं, वे खोखली हैं। जयशंकर भले ही एक तेज-तर्रार कूटनीतिज्ञ के रूप में देखे जाते हों, लेकिन मोदी सरकार की आलोचनाएं उन्हें प्रतिक्रियावादी बना देती हैं, जो कि एक विदेश मंत्री का स्वाभाविक गुण नहीं और न ही यह आत्मविश्वास और राष्ट्रहित में है।

अभी तो पिक्चर बाकी है

राहुल गांधी के साथ इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए सीताराम येचुरी, सलमान खुर्शीद, तेजस्वी यादव और तृणमूल नेता महुआ मोइत्रा भी लंदन गए हैं। राहुल गांधी 23 मई यानी सोमवार को एक बार फिर बोलेंगे। यानी पिक्चर अभी बाकी है और बीजेपी की ट्रोल सेना को अभी बहुत काम करना है। जिस सच को बीजेपी सरकार 'घर की बात' और 'घरेलू मामला' बताकर छिपाती और आलोचकों का मुंह बंद करती रही है, वह अब विदेशों में भी गूंज रही है। साफ है बीजेपी सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर विदेशों में एक खुशहाल, प्रगतिशील भारत की जिस छवि का प्रचार किया था, उसमें दाग लग चुका है।

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