पूंजीपतियों द्वारा की जाने वाली आर्थिक हेराफरी नहीं अपराध, विपक्षी नेता और सरकार के विरोधी ठहरा दिये जाते हैं अपराधी
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
In its inaugural global tax evasion report, the Paris-based EU Tax Observatory said billionaires have been pushing the limits of the law by moving certain types of income, including dividends from company shares, through dedicated holding companies that usually serve no other purpose. पूरी दुनिया में राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी और लोकलुभावनवादी सत्ता का दायरा बढ़ता जा रहा है। ऐसी सत्ता में सबसे पहले सामाजिक और आर्थिक अपराध की परिभाषा बदल जाती है। हत्या, हिंसा और बलात्कार जैसे परम्परागत सामाजिक अपराध इस परिभाषा से हटा दिए जाते हैं और सत्ता की नीतियों का विरोध ही सबसे बड़ा अपराध बन जाता है।
इसी तरह पूंजीपतियों द्वारा की जाने वाली आर्थिक हेराफेरी अपराध नहीं रहता है, बल्कि हरेक विपक्षी नेता और सरकार के विरोधी आर्थिक अपराधी करार दिए जाते हैं। अमेरिका और जर्मनी में बंदूकों से निरपराधों को मारने वाले आज उतने बड़े अपराधी नहीं हैं, जितने फिलिस्तीन के समर्थन में आवाज उठाने वाले हैं। पूरे यूरोप में आज की सत्ता की नजर में जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में सरकारों की नीतियों का विरोध करते लोग ही सबसे बड़े अपराधी हैं।
हमारे देश में नोएडा के चर्चित निठारी नरसंहार के दोषी सजामुक्त हो जाते हैं, पर सरकार का विरोध करते बुद्धिजीवी बिना किसी अपराध के ही वर्षों जेल में बंद रहते है और न्यायालय यह तमाशा देखता है। आर्थिक अपराधों में अडानी पर तमाम जालसाजी के आरोप के बाद भी कोई जांच भी नहीं होती, दूसरी तरफ शायद ही कोई ऐसा विपक्षी नेता और सरकार के विरोध में काम करने वाला पत्रकार, मीडिया हाउस और गैर-सरकारी संगठन हो, जिस पर आर्थिक अपराधों के आरोप न लगाए गए हों।
पूरी दुनिया में पूंजीपतियों द्वारा टैक्स चोरी की लगातार चर्चा की जाती है, पर इन्हीं पूंजीपतियों के पैसे से सत्ता तक पहुँचने वाली सरकारें इस पर कोई कार्यवाही नहीं करती। भारत में विदेशों से पूंजीपतियों का कालाधन लाने का दावा करने वाली बीजेपी सरकार तो स्वयं पूरी तरह से पूंजीपतियों के कारनामों को बचाने में लिप्त है। 15 लाख रुपये तो किसी के खाते में नहीं आये, पर प्रधानमंत्री मोदी के पूंजीपतियों के घनिष्ट रिश्तों का खुलासा लगातार होता रहा है। अडानी पर संसद में आवाज उठाने पर राहुल गाँधी की संसद सदस्यता ही छीन ली गयी थी, और अब सांसद महुआ मोइत्रा को देश के लिए खतरा बताया जा रहा है। इन सबके बीच अडानी और अम्बानी के मुनाफे में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है, इसके साथ ही बीजेपी का खजाना भी बढ़ता जा रहा है।
हाल में ही पेरिस स्थित ईयू टैक्स ऑब्जर्वेटरी नामक संस्था ने पहला टैक्स इवेजन रिपोर्ट, यानी टैक्स चोरी रिपोर्ट प्रकाशित किया है। इसके अनुसार अधिकतर अरबपति टैक्स चोरी या फिर इसे बचाने के लिए शेल कंपनियों का सहारा लेते हैं। यह परम्परागत टैक्स कानूनों के दायरे में नहीं आता। इसमें कहा गया है कि दुनिया के लगभग 3000 अरबपतियों से कम से कम 2 प्रतिशत संपत्ति कर की वसूली की जानी चाहिए। अधिकतर अरबपति टैक्स की चोरी में संलग्न हैं और इस दौरान वे सभी कानूनी सीमाएं लांघ जाते हैं।
दुनिया के सबसे धनाढ्य अपनी कुछ आमदनी, जिसमें शेयर्स के डिविडेंड भी शामिल हैं, को कुछ अनाम या गुमनाम सी होल्डिंग कंपनियों में, जिन्हें शेल कम्पनियाँ कहा जाता है, निवेश कर देते हैं। ये शेल कम्पनियां धनाढ्यों के नजदीकियों, रिश्तेदारों के नाम होती हैं, और इनका टैक्स चोरी में मदद के अलावा कोई काम नहीं होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शेल कम्पनियां भले ही कानूनी प्रक्रियाओं के दायरे में आती हों, पर क्योंकि इनका टैक्स चोरी के अलावा कोई दूसरा काम नहीं होता, इसलिए ऐसी कम्पनियां अवैध या गैर-कानूनी ही कही जायेंगीं। इसके अतिरिक्त पूंजीपतियों द्वारा लगातार ऐसे देशों में पैसा जमा किया जा रहा है, जो देश अपने बैकों के खाताधारकों के नाम गोपनीय रखते हैं। वर्ष 2022 में ऐसे देशों में लगभग 1 ख़रब डॉलर की राशि जमा की गयी है।
इस रिपोर्ट में पूंजीपतियों का नाम तो नहीं है, पर याद कीजिये गौतम अडानी पर ऐसे ही आरोप लगे थे। इस साल जनवरी में आई हिंडनवर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि गौतम अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों के भाव बढ़ाने के लिए शेल कंपनियों से शेयरों की खरीदारी की जाती है या उनमें निवेश किया जाता है। अब जॉर्ज सोरोस के बैकअप वाली ओसीसीआरपी की लेटेस्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि अडानी ग्रुप अपने कंपनियों के शेयरों के भाव बढ़ाने के लिए ऑफशोर शेल कंपनियों की फंडिंग का इस्तेमाल करता है। फाइनैंशल टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑफशोर शेल कंपनियां अडानी ग्रुप के शेयरों में सीक्रेट इन्वेस्टमेंट कर उसके भाव में बदलाव करने में बड़ी भूमिका निभाती हैं। इन शेल कंपनियों का भारत के दिग्गज उद्योगपति गौतम अडानी से संबंध है।
इस रिपोर्ट के अनुसार पूंजीपतियों द्वारा आय कम बताने के कारण उनकी संपत्तियों पर औसतन 0 से 0.6 प्रतिशत ही प्रभावी टैक्स चुकाना पड़ता है, जबकि पूरी ईमानदारी से टैक्स चुकाने वाले अरबपतियों को अपनी संपत्ति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से 20 से 50 प्रतिशत तक टैक्स चुकाना पड़ता है। रियल एस्टेट में निवेश भी टैक्स में हेरा-फेरी का एक प्रचलित माध्यम बन गया है। दुबई और लन्दन जैसे शहरों में और आसपास के क्षेत्रों में रियल एस्टेट में विदेशियों द्वारा निवेश तेजी से बढ़ता जा रहा है। दुबई में रियल एस्टेट में जितना विदेशियों का निवेश है, उसमें से सर्वाधिक 20 प्रतिशत निवेश, भारतीयों का है। दुनिया के लगभग 100 देशों के बीच एक समझौते के तहत बैंकिंग की सूचनाओं का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जिससे टैक्स चोरी पर लगाम लगाया जा सके, पर टैक्स चोरी में मदद करने वाली शेल कम्पनियाँ और रियल एस्टेट परियोजनाएं इस दायरे से बाहर हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले वर्ष ब्राज़ील में होने वाले जी20 समूह की बैठक में अरबपतियों पर 2 प्रतिशत संपत्ति कर लगाने का सुझाव प्रस्तुत किया जाएगा।
इस रिपोर्ट की भूमिका को शुरू करते हुए प्रख्यात अर्थशास्त्री जोसफ स्तिग्लित्ज़ ने वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रेंकलिन का एक उद्धरण प्रस्तुत किया है – इस दुनिया में मृत्यु और टैक्स को छोड़कर कुछ भी निश्चित नहीं है। इस कथन के विपरीत दुनिया के अरबपतियों ने अमरता तो नहीं हासिल की है, पर टैक्स-चोरी के तरीके जरूर सीख गए हैं। अमेरिका के एक न्यायाधीश जेरोम होल्म्स ने कहा था कि ईमानदारी से टैक्स चुकाना सभ्य समाज की निशानी है, यह प्रजातंत्र का केंद्र है और यही तय करता है कि हम समाज के लिए क्या करना चाहते हैं, और किस तरह से समाज में असमानता को ख़त्म करना चाहते हैं।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान वैश्विक स्तर पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा टैक्स वसूले जाने पर बहुत काम किया गया है। वर्ष 2021 में लगभग 140 देशों ने बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से कम से कम 15 प्रतिशत टैक्स वसूलने का समझौता किया था। कहा जाता है कि इस समझौते से टैक्स वसूली बढ़ गयी, पर इसका कोई सीधा प्रमाण नहीं है। दूसरी तरफ, पूंजीपतियों की लगातार बढ़ती संपत्ति और बढ़ती आर्थिक असमानता हरेक स्तर पर स्पष्ट नजर आती है। सामान्य जनता पर कर्ज का बोझ और सामाजिक सरकारों पर सरकारों द्वारा बढ़ता निवेश भी पूंजीपतियों की समाज के प्रति बढ़ती उदासीनता ही दर्शाता है। वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद में अरबपतियों द्वारा दिए गए टैक्स की राशि 10 प्रतिशत के लगभग है और यह राशि पिछले पूरे दशक से लगभग स्थिर है जबकि अरबपतियों की संपत्ति में हरेक वर्ष औसतन 7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो रही है।
इस रिपोर्ट के अनुसार यदि दुनिया के लगभग 3000 अरबपति अपनी संपत्ति पर महज 2 प्रतिशत टैक्स दें, तब हरेक वर्ष लगभग 250 अरब डॉलर जमा किये जा सकते हैं। लगभग इतनी ही राशि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा ईमानदारी से 15 प्रतिशत टैक्स भरने पर जमा की जा सकती है। इन दिनों लगातार चर्चा की जा रही है कि विकासशील देशों का जलवायु परिवर्तन में योगदान बहुत कम है, पर इसका प्रभाव सबसे अधिक ऐसे ही देश झेल रहे हैं। अब विकासशील देश औद्योगिक देशों से जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान के आर्थिक भरपाई की मांग भी जोरशोर से करने लगे हैं।
वैज्ञानिकों का आकलन है कि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए सम्मिलित तौर पर हरेक वर्ष 500 अरब डॉलर की जरूरत है। स्पष्ट है कि यह पूरी राशि अरबपतियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा सख्ती से टैक्स द्वारा वसूला जा सकता है। दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के नाम पर केवल अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों पर की ध्यान दिया जा रहा है और यह पूरा कारोबार प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर अरबपतियों के नियंत्रण में है। तमाम सरकारें आशय उर्जा स्त्रोतों के विकास के नाम पर भारी-भरकम सब्सिडी दे रही हैं। ए तरफ तो यह सब्सिडी सीधा अरबपतियों के पास पहुँच रही है और दूसरी तरफ उन पर टैक्स भरने का बोझ भी कम होता जा रहा है।
पूंजीपतियों का लालच और तमाम गोरखधंधे ही दुनिया के तमाम समस्याओं का कारण है। जिनके नाम पनामा पेपर्स और पेन्डोरा पेपर्स में आते हैं, वही दुनिया में आर्थिक और सामाजिक असमानता बढ़ा रहे हैं, दुनिया को अस्थिर बना रहे हैं, प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहे हैं और तापमान वृद्धि भी कर रहे हैं। पूंजीपति ही सत्ता में भी काबिज हैं। अब चुनाव केवल पैसों के बल पर लड़ा जाता है और पूंजीपति ही चुनावों के परिणामों को नियंत्रित करते हैं।