Covid-19 : 35 टॉप डॉक्टर्स ने केंद्र को लिखी चिट्ठी, कहा - 2021 की गलतियां 2022 में भी, गैर जरूरी टेस्ट और दवाएं हों बंद
चिकित्सकों ने कोरोना उपचार के दौरान ऐसी दवाओं और टेस्ट को रोकने के लिए कहा है, जो कोरोना के इलाज के लिए जरूरी नहीं है। बिना कारण के हॉस्पिटलाइजेशन पर भी डॉक्टर्स ने चिंता जताई है।
नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों ने कोरोना महामारी ( Coronavirus Pandemic) कहर के बीच देश और दुनिया के 35 टॉप डॉक्टर्स के एक ग्रुप ने केंद्र सरकार ( Central Government ) , राज्यों और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ( IMA ) को चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी के जरिए डॉक्टरों ने कोविड की तीसरी लहर ( Third wave ) में 'एविडेंस बेस्ड रिस्पॉन्स' पर जोर देने की अपील की है। कोरोना उपचार के दौरान ऐसी दवाओं और टेस्ट को रोकने के लिए कहा है, जो कोरोना के इलाज के लिए जरूरी नहीं है। बिना कारण के हॉस्पिटलाइजेशन पर भी डॉक्टर्स ने चिंता जताई है।
टॉप डॉक्सर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहाIMA< है कि केंद्र सरकार ( Central Government ) वही गलती कर रही है, जो दूसरी लहर में की गई थीं। दरअसल, अमेरिका की हार्वर्ड और जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के कुछ भारतीय मूल के डॉक्टरों के भी इस लेटर पर साइन हैं। इसमें कहा गया है कि 2021 की गलतियां 2022 में फिर दोहराई जा रही है। डॉक्टरों के ग्रुप ने प्रमुख तौर से तीन मुदृदे उठाए हैं। इनमें अनुचित दवा देना, अनुचित टेस्ट और अनुचित हॉस्पिटलाइजेशन शामिल हैं।
कोरोना के अधिकांश मामलों में दवा की जरूरत नहीं
चिट्ठी में कहा गया है कि कोविड-19 ( Covid-19 ) मामलों में अब हल्के लक्षण होते हैं। इसके लिए बहुत कम या दवा की जरूरत नहीं होती। पिछले दो हफ्तों में हमने जिन प्रिसक्रिपशन्स को रिव्यू किया है, उनमें से अधिकांश मामलों में कोविड किट और कॉकटेल शामिल हैं। इस बारे में कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. मधुकर पई ने कहा कि विटामिन और एजिथ्रोमाइसिन, डॉक्सीसाइक्लिन, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, फेविपिराविर और आइवरमेक्टिन जैसी दवाएं देने का कोई मतलब नहीं है। इन दवाओं के उपयोग की वजह से डेल्टा की दूसरी लहर में म्यूकोमार्कोसिस देखने को मिला था।
बिना मतलब के सीटी स्कैन और डी-डिमर टेस्ट
35 डॉक्टरों की ओर से जारी लेटर में कहा गया है कि ज्यादातर कोविड-19 मरीजों को केवल रेपिड एंटीजन या RTPCR टेस्ट और उनके ऑक्सीजन लेवल की होम मॉनिटरिंग की जरूरत होगी, लेकिन इसके बाद भी इन्हें सीटी स्कैन और डी-डिमर और आईएल 6 जैसे महंगे ब्लड टेस्ट करने के लिए कहा जा रहा है। इस तरह के टेस्ट और मरीजों को बेवजह अस्पताल में भर्ती करने से परिवारों पर आर्थिक बोझ काफी बढ़ गया है।