योगीराज : स्कूल और अस्पताल की OPD सेवाएं बंद, पर शराब की दुकानें हैं खुली

वरिष्ठ पत्रकार मंगल तिवारी कहते हैं कि निश्चित तौर पर लॉकडाउन लगाया जाना सरकार का सराहनीय कदम हो सकता है, लेकिन इस लॉकडाउन में कई वर्गों को पूरी तरह से नकार दिया गया जो दाने-दाने को मोहताज हुए हैं...

Update: 2021-06-04 10:35 GMT

(राष्ट्रीय लोकदल युवा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रविन्द्र सिंह पटेल कहते हैं कि कोरौना निश्चित तौर पर यह वैश्विक महामारी है, लेकिन सरकार के इंतजाम की व्यवस्थाएं नाकाफी रही हैं)

संतोष देव गिरी की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। साल 2020-2021 का दौर आज की पीढ़ी खासकर आने वाली पीढ़ियों के लिए भी ना भूलने वाला दौर होगा। आपदा विपदा से कहीं ज्यादा यह कोविड-19 संक्रमण का दौर जाना जाएगा। कोरोना संक्रमितों की बढ़ती हुई संख्या, मरने वाले लोगों के आंकड़े, गंगा नदी में बहती हुई लाशें भूले भी नहीं लोग भुला पाएंगे। साल 2020 में कोरोना संक्रमण के बाद लगाए गए लॉकडाउन में फंसे लाखों श्रमिकों की मार्मिक वेदना, दर्द भरी पीड़ा भी शायद ही कोई भूल पाए।  2020 का बीता हुआ दर्द लोगों के जेहन में जस का तस हरा का हरा था ही, कि 2021 के 3 महीने बीतने के बाद फिर से वह जख्म और तरोताजा हो उठा।

दुनिया के अन्य देशों को भले ही कोविड-19 से राहत मिल गई, लेकिन भारत इससे मुक्ति नहीं पा सका था। तेजी से बढ़ते संक्रमण दौर को देखते हुए सरकार को एक बार पुनः किस्तों में लॉकडाउन लगाने के साथ ही इसका सिलसिला अनवरत बढ़ाते रहना पड़ा है। जिसका असर यह रहा है कि शिक्षण कार्य से लेकर चिकित्सा सेवा की ओपीडी सेवाएं भी बंद करनी पड़ी है। सरकार को इसी के साथ ही कई अन्य आवश्यक सेवाएं दुकानें बजारे भी बंद कर दी गई।

हैरानी की बात है कि इस सबके बाद भी सरकार और हुक्मरानों को उत्तर प्रदेश के ग्राम पंचायत चुनाव को संपन्न कराने की जल्दीबाजी थी। जहां न तो कोरोना संक्रमण का खौफ दिखाई दिया और न ही किसी प्रकार की पाबंदियां। बेखटक, बेधड़क पंचायत चुनाव को संपन्न कराया गया। जिस पर सवाल भी खड़े होते रहे हैं, पर सरकार से भला कौन मुखालत कर सकता है। पंचायत चुनाव बाद गंगा नदी में बहती हुई लाशों के ढेर का भी दौर चला जनमानस पूरी तरह से सहम उठा। पर हुक्मरानों की अपनी अलग ही थ्योरी और कहानी रही है।

'जनज्वार' टीम ने इन्हीं सब मुद्दों पर समाज के प्रबुद्ध जनों के विचारों को जानते हुए उनके शब्दों को पिरोने का प्रयास किया है जिस पर वरिष्ठ पत्रकार मंगल तिवारी, गणेश दुबे, राष्ट्रीय लोकदल (युवा) रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रविन्द्र सिंह पटेल ने बड़े ही बेबाकी से अपने पक्षों को रखते हुए व्यवस्था और व्यवस्था से जुड़ी हुई नाकामियों पर परिचर्चा की है।

वरिष्ठ पत्रकार मंगल तिवारी अपने विचारों को रखते हुए कहते हैं कि निश्चित तौर पर लॉकडाउन लगाया जाना सरकार का सराहनीय कदम हो सकता है, लेकिन इस लॉकडाउन में कई वर्गों को पूरी तरह से नकार दिया गया जो दाने-दाने को मोहताज हुए हैं। खासकर के मध्यम वर्गीय परिवार रोजी रोजगार ठप होने से लेकर बच्चों के भविष्य को लेकर खासा चिंतित और परेशान हुआ है। लेकिन सरकार द्वारा इस वर्ग के लिए कोई खास कदम नहीं उठाया गया है।

कुछ इसी प्रकार के विचार गणेश दुबे भी रखते हुए सरकार की कई नीतियों पर सवाल खड़े करते हैं। वह कहते हैं कि सब कुछ बंद करा दिया गया, लेकिन सरकार की शराब की दुकानों पर मेहरबानी बनी रही, यदि बंद भी रही है तो लोगों को शराब आसानी से उपलब्ध होती रही है। पुलिस प्रशासन और सरकार की गाइडलाइन का ऐसे में इसे और सरकार की नीतियों को कहां तक उचित ठहराया जा सकता है? वह सवाल करते हैं।

राष्ट्रीय लोकदल युवा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रविन्द्र सिंह पटेल कहते हैं कि कोरौना निश्चित तौर पर यह वैश्विक महामारी है, लेकिन सरकार के इंतजाम की व्यवस्थाएं नाकाफी रही हैं वह उन पर सवाल खड़े करते हुए सरकार की कई नीतियों को दोषी ठहराते हैं।

गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में कोरोनावायरस की रिकवरी रेट में लगातार हो रही बढ़ोतरी के बीच मेडिकल कालेजों और स्वास्थ्य विभाग के अस्पतालों में जनरल ओपीडी सेवाएं 4 जून शुरू करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि कोरोना कर्फ्यू से छूट का आशय लापरवाही की छूट होना नहीं है।

मास्क लगाना, बाजारों में अनावश्यक भीड़, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अनिवार्य होगा। इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं होगी। सुबह 7 बजे से सायंकाल 7 बजे तक कर्फ्यू हटने तथा रात्रि में कर्फ्यू लागू रहने और अस्पताल की ओपीडी सेवाएं 4 जून से चालू किए जाने की सूचना से लोगों को कुछ राहत मिलने की उम्मीद जगी है, लेकिन अभी बहुत से ऐसे प्रतिष्ठान और सेवाएं हैं जिनके बंद होने से उनसे जुड़े हुए लोगों को दाल रोटी की चिंताएं सताने लगी हैं।

कुछ को तो अपनी नौकरी भी गवां बैठने का भय सताए जा रहा है। इनमें सिनेमा हॉल से लेकर मॉल शॉप इत्यादि में काम करने वाले वर्करों की चिंता जगजाहिर है। बाजारों और दुकानों का आलम यह है कि 6 बजने के बाद उन्हें दुकानें बंद करने की चिंता सताए जा रही है वरना पुलिस के डंडे खाने पर पड़ जा रहे हैं तो कहीं चालान और जुर्माने का भय उन्हें डराए हुए हैं।

वहीं दूसरी ओर कहने मात्र के लिए शराब की दुकानें के खुलने और बंद होने का समय निर्धारित कर दिया गया है लेकिन देखा जाए तो धड़ल्ले से आसपास के घरों और गलियों के बीच से शराब धड़ल्ले से बेची जा रही हैं जहां न तो पुलिस प्रशासन का ध्यान जा रहे हैं और ना ही उनके लिए सरकार की गाइड लाइन का कोई असर दिखलाई दे रहा है। ऐसे में बरबस ही जनमानस के मुख से शब्द फूट पड़ जा रहे हैं कि पिछले डेढ़ वर्षो से जो विद्यालय बंद हैं उन विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने वाले नौनिहालों का भविष्य क्या होगा?

हालांकि सरकार की गाइडलाइन और विद्यालयों के प्रबंधन तंत्र द्वारा ऑनलाइन शिक्षा प्रदान की जा रही है लेकिन क्या यह सभी परिवारों के लिए संभव है कदापि नहीं क्योंकि कई ऐसे परिवार हैं जिनके समक्ष 2 जून की रोटी की व्यवस्था कर पाना ही किसी समस्या से कम नहीं है, तो वह भला अपने बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा के लिए मोबाइल और प्रति महीने नेट का खर्च कहां से भला वहन कर पाएंगे? यह एक बड़ा और अहम सवाल है।

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