भारत में कोविड वैक्सीन के नाम पर केवल हंगामा, क्यों नहीं सार्वजनिक की जाती कोई भी बड़ी जानकारी, उठ रहे सवाल
सरकार के लिए वैक्सीन स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं है, बल्कि एक उपलब्धि का मुद्दा है, जिसे चुनावों में भुनाया जा सकेगा....
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
जनज्वार। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल में ही कोविड 19 के वैक्सीन उत्पादन और परीक्षण केन्द्रों का अहमदाबाद, पुणे और हैदराबाद में दौरा किया था – फिर भी वैक्सीन कब तक आयेगी इसकी स्पष्ट जानकारी किसी को नहीं मिली।
दरअसल हमारे देश में वैक्सीन पर केवल हंगामा किया जाता है, चुनावों का मुद्दा बनाया जाता है और राजनैतिक लाभ लिया जा रहा है – पुख्ता जानकारी कभी नहीं दी जाती। दुनियाभर में लोकतांत्रिक देशों में जहां भी वैक्सीन का परीक्षण किया जा रहा है, उसकी विस्तृत जानकारी जनता को दी जा रही है, पर हमारे देश में कोई भी जानकारी वैक्सीन पर परीक्षण करने वाली कम्पनियां नहीं दे रही हैं।
ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन के इंग्लैंड में परीक्षण में शरीक होने वाले भारतीयों के अनुभव अनेक भारतीय समाचार चैनलों पर दिखाए गए, पर भारत की कम्पनियाँ जो भारत में तथाकथित परीक्षण कर रही हैं, उनके बारे में कभी नहीं बताया जा रहा है।
लगभग एक महीने पहले की बात है। मुंबई में किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल में कोविड 19 की वैक्सीन के परीक्षण में शरीक अनिल हेब्बार ने अपने अनुभवों को मीडिया से साझा किया था। वे दरअसल आम जनता को अपने अनुभवों के साथ यह सन्देश देना चाहते थे कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है और इसमें घबराने की कोई बात नहीं है। इसके अगले दिन ही हॉस्पिटल के डीन हेमंत देशमुख ने एक राष्ट्रीय समाचारपत्र को दिए साक्षात्कार में अनिल हेब्बार को अगले परीक्षण चरण से हटाने की सिफारिश कर डाली।
हालांकि अनिल हेब्बार अगले परीक्षण चरण में मौजूद रहे, पर इस पूरे वाकया से यह तो पता चलता है कि भारतीय वैक्सीन कम्पनियां और परीक्षण में शरीक होने वाले अस्पताल पूरे परीक्षण में कहीं न कहीं लीपापोती कर रहे हैं। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो फिर परीक्षण के अनुभव साझा करने पर इतना बवाल क्यों हो जाता है।
कुछ महीने पहले भी सरकार ने अपने आदेश के द्वारा कुछ चुनिन्दा अस्पतालों में वैक्सीन के ट्रायल को शुरू करने को कहा था, तब भी सवाल उठे थे कि इतनी जल्दी परीक्षण कैसे शुरू किये जा सकते हैं और फिर इनमें से बहुत सारे अस्पतालों के पास ऐसे परीक्षणों के लिए आधारभूत ढांचा भी नहीं उपलध था। पर, इसके बाद इस सम्बन्ध में कोई भी खबर कभी नहीं आयी।
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित वैक्सीन का भारत में उत्पादन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया के जिम्मे है और इसे भारत में कोविडशील्ड के नाम से जाना जाएगा। अनिल हेब्बार पर इसी वैक्सीन का परीक्षण किया जा रहा है।
एक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन से सम्बंधित वेबसाइट पर इसके परीक्षण के तरीके, प्रोटोकॉल और परीक्षण के परिणाम सभी विस्तृत तरीके से मौजूद हैं, पर इसके लाइसेंस के तहत उत्पादन करने वाली भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट के वेबसाइट पर ऐसी कोई भी सूचना नहीं है।
बताया जा रहा है कि इस समय भारत के विभिन्न संस्थानों में कोविड 19 के 5 वैक्सीन का परीक्षण विभिन्न चरणों में है, पर किसी भी परीक्षण की विस्तृत जानकारी सामान्य जनता के लिए उपलब्ध नहीं है। क़ानून के हिसाब से हरेक ऐसे परीक्षण की विस्तृत जानकारी परीक्षण से पहले क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ़ इंडिया को भेजना पड़ता है और इसे स्वीकृत करने के बाद कंपनी और क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ़ इंडिया की वेबसाइट पर इसे प्रदर्शित करना पड़ता है। पर, ऐसा नहीं किया जा रहा है।
परीक्षण के परिणाम सेंट्रल ड्रग स्टैण्डर्ड कण्ट्रोल आर्गेनाईजेशन को भेजा जाता है, जहां एक विशेषज्ञ पैनल इसका अध्ययन करता है, अपने सुझाव देता है और इसे स्वीकृत करता है, मगर कोविड 19 के परीक्षण से सम्बंधित विशेषज्ञ पैनल के विशषज्ञों का नाम भी कहीं उपलब्ध नहीं है। अनेक संगठनों के आवाज उठाने के बाद भी विशेषज्ञों का नाम तो अभी तक उपलब्ध नहीं है, पर हरेक मीटिंग के बाद एक बिलकुल संक्षिप्त मिनट्स ऑफ़ मीटिंग वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाता है, पर इसमें पूरी प्रक्रिया से सम्बंधित जानकारी नहीं रहती। अनेक परीक्षणों में इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च भी सम्मिलित है, पर यह भी कोई जानकारी नहीं देता।
अनेक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार हमारे देश में जिन लोगों पर परीक्षण किया जा रहा है, उनके नाम भी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं हैं और इन लोगों को भी परीक्षण की विस्तार से जानकारी नहीं दी जाती। यदि परीक्षण के दौरान किसी व्यक्ति पर इसके गंभीर साइड-इफेक्ट्स उत्पन्न होते हैं तो उसे धमकाकर चुप करा दिया जाता है। ऐसा संभव भी लगता है, क्योंकि कोविड 19 से हरेक मसला हमारे देश में कभी स्वास्थ्य विशेषज्ञों का रहा ही नहीं।
शुरू से ही कोविड 19 का नियंत्रण सरकार और पुलिसिया तंत्र के अधीन रहा है, और न्यायालय एक मौन दर्शक है। मीडिया वही बताता है जो सरकार चाहती है। सरकार के लिए वैक्सीन स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं है, बल्कि एक उपलब्धि का मुद्दा है, जिसे चुनावों में भुनाया जा सकेगा। ऐसे में जाहिर है, वैक्सीन उत्पादन की कम्पनियां भी सरकार की लाडली हैं और इनके विरुद्ध आवाज उठाने वाले को खामोश कर दिया जाएगा।
चेन्नई में सीरम इंस्टीट्यूट के कोविडशील्ड के परीक्षण के दौरान एक उद्योगपति को गंभीर साइड-इफेक्ट्स झेलने पड़े, और जब उसने आवाज उठाई तो सीरम इंस्टीट्यूट ने 100 करोड़ रुपये के मानहानि का मुक़दमा ठोक दिया। दूसरी तरफ भारत बायोटेक ने अपनी वैक्सीन के परीक्षण के दौरान एक व्यक्ति के साइड-इफेक्ट्स को गंभीरता से लिया, परीक्षण रोककर इन प्रभावों का विस्तृत आकलन किया और आश्वस्त होने के बाद ही परीक्षण फिर से शुरू किया।
हाल में ही एक गैर-सरकारी संस्था, सम रिसोर्स ग्रुप फॉर वीमेन एंड हेल्थ ने कोविड 19 की वैक्सीन से सम्बंधित एक वेबिनार आयोजित किया था, जिसमें स्वास्थ्य विशेषज्ञ, पत्रकार, वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता और इस विषय से जुड़े अनेक संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। इसमें अधिकतर वक्ताओं ने वैक्सिल परीक्षण में कंपनियों द्वारा जनता को कोई जानकारी नहीं दिए जाने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया।
इंडियन जर्नल ऑफ़ मेडिकल एथिक्स के सम्पादक अमर जेसानी ने कहा कि वैक्सीन निर्माताओं को यह क्यों लगता है कि जनता उन पर आँख मूँद कर भरोसा करेगी, इन कंपनियों को जनता में विश्वास पैदा करने के लिए सभी आवश्यक जानकारी जनता से साझा करनी चाहिए। एक स्वतंत्र पालिसी शोधार्थी, अनंत भान के अनुसार इन परीक्षणों की कोई भी पुख्ता जानकारी कहीं उपलबध नहीं है। मीडिया में टुकड़ों में जानकारी आती है पर इसमें संलग्न लोगों के नाम, उनकी भूमिका, परीक्षण की समय सीमा और डिजाईन कहीं भी उपलब्ध नहीं है।
अनेक परीक्षणों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तय मानकों का भी उल्लंघन किया जा रहा है। सीरम इंस्टीट्यूट तीसरे चरण के परीक्षण में समग्र प्रभाओं का आकलन ही नहीं कर रहा है, इसमें केवल सुरक्षा और रोग-प्रतिरोधक क्षमता का आकलन किया जा रहा है। जाहिर है, हमारे देश में वैक्सीन का केवल हंगामा है, इसकी कोई जानकारी नहीं।