सुप्रीम कोर्ट का आदेश : कोरोना काल में अनाथ बच्चों को अवैध रूप से गोद लेने पर लगाएं रोक, सार्वजनिक विज्ञापन गैरजरूरी

कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया जाता है कि किसी भी एनजीओ को प्रभावित बच्चों की पहचान बताकर और उन्हें गोद लेने के लिए इच्छुक व्यक्तियों को आमंत्रित करके उनके नाम पर धन इकट्ठा करने से रोका जाए....

Update: 2021-06-08 10:40 GMT

(जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने स्वत: संज्ञान मामले में यह आदेश दिया। प्रतीाकात्मक तस्वीर)

जनज्वार डेस्क। कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों को अवैध तरीके से गोद लेने पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की है। कोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेशों और राज्य सरकारों को अवैध रूप से गोद लेने में लिप्त गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। 

कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा, "जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 के प्रावधानों के विपरीत प्रभावित बच्चों को गोद लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। अनाथ बच्चों को गोद लेने के लिए व्यक्तियों को आमंत्रित करना कानून के विपरीत है क्योंकि सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) की भागीदारी के बिना किसी बच्चे को गोद लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। राज्य सरकारों / केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा इस अवैध गतिविधि में शामिल एजेंसियों / व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।"

कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया जाता है कि किसी भी एनजीओ को प्रभावित बच्चों की पहचान बताकर और उन्हें गोद लेने के लिए इच्छुक व्यक्तियों को आमंत्रित करके उनके नाम पर धन इकट्ठा करने से रोका जाए।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने स्वत: संज्ञान मामले में यह आदेश दिया, जिसे अदालत ने कोविड-19 से प्रभावित बच्चों की समस्याओं से निपटने के लिए शुरू किया था।

नेशनल काउंसिल फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने अदालत को बताया कि कुछ बेईमान संगठन और व्यक्ति अवैध रूप से गोद लेने में लिप्त हैं और धन की मांग के लिए सार्वजनिक विज्ञापन प्रकाशित कर रहे हैं।

एडवोकेट शोभा गुप्ता ने एक संस्था 'वी द वीमेन ऑफ इंडिया' की ओर से स्वत: संज्ञान लेते हुए एक आवेदन दायर किया, जिसमें लोगों को अनाथ बच्चों को गोद लेने के लिए आमंत्रित करने वाले सार्वजनिक विज्ञापनों और सोशल मीडिया पोस्ट को कोर्ट के संज्ञान में लाया गया।

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