बढ़ती बेटियां : UP के कॉलेजों में नामांकन कराने वाली कुल 62.95 लड़कियां, मगर लड़के मात्र 37 प्रतिशत

UP में शिक्षण संस्थानों में लड़कियों की बढ़ती संख्या का यह रुझान स्कूल स्तर पर भी दिखाई दे रहा है, पिछले तीन दशकों में यूपी बोर्ड की 10वीं कक्षा की परीक्षा के लिए पंजीकरण कराने वाली लड़कियों की संख्या दोगुनी हो गई है...

Update: 2021-08-30 11:56 GMT

यूपी में उच्च शिक्षा की पढ़ाई में बेटों से आगे निकलीं ​बेटियां (file photo)

जनज्वार ब्यूरो। आर्थिक असमानता की बढ़ती दिवारों के बीच महिला शिक्षा को लेकर उत्तर प्रदेश से एक अच्छी खबर है। उच्च शिक्षा निदेशालय की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में महिला छात्राओं की संख्या पुरुषों से अधिक हो गई है। इसके पीछे शिक्षा के प्रति बढ़ी जागरूकता को जानकार जहां बड़ा कारण मानते हैं,वहीं सभी वर्गों के गरीब बच्चों को मिलने वाली छात्रवृति को भी महिलाओं की बढ़ती संख्या के दिशा में सकारात्मक पहल माना जा रहा है।

उच्च शिक्षा निदेशालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं और लड़कियों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पिछले कुछ दशकों में किए गए निरंतर प्रयास आखिरकार परिणाम दिखाने लगे हैं। राज्य के उच्च शिक्षा विभाग के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में राज्य के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में दाखिला लेने वाली लड़कियों और महिलाओं की संख्या पुरुषों और लड़कों से कहीं अधिक है। उन्होंने कहा कि पिछले चार वर्षों में उच्च शिक्षा के लिए नामांकन कराने वाली लड़कियों की संख्या में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

राज्य सरकार को भेजी गई यूपी उच्च शिक्षा निदेशालय की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020-21 सत्र में यूपी के 27 राज्य विश्वविद्यालयों और 7,391 डिग्री कॉलेजों में कुल 50,21,277 छात्र नामांकित हैं, जिनमें से 62.95 प्रतिशत महिलाएं हैं। उन्होंने कहा कि पुरुषों की संख्या 18,60,220 है,जो कुल नामांकन का 37 प्रतिशत है। 4 साल पहले, शैक्षणिक सत्र 2017-18 में, यूपी के उच्च शिक्षण संस्थानों में कुल 55,74,638 पंजीकृत छात्र थे, जिसमें में 27,77,137 महिलाएं शामिल थीं,जो कुल नामांकन का 49. 81 प्रतिशत है, जबकि 27,97,501 पुरूषों की संख्या थी,जो कुल नामांकन का 50.18 प्रतिशत है।

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निदेशक (उच्च शिक्षा) अमित भारद्वाज ने कहा कि सामाजिक धारणा में बदलाव के कारण अंततः लड़कियों को शिक्षा के लिए जाने के लिए प्रोत्साहित किया गया, विभिन्न सरकारी योजनाओं का उपयोग किया जा रहा है जो लड़कियों को स्कूलों से लेकर कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर तक मुफ्त शिक्षा की अनुमति देती हैं।

इससे पहले, कई माता-पिता को लड़कों की शिक्षा में निवेश करने के लिए प्रेरित किया गया था, यह विश्वास करते हुए कि वे घर का समर्थन करेंगे और बुढ़ापे के दौरान ताकत का एक स्तंभ होंगे, लेकिन समय और जागरूकता के साथ, यह अहसास आखिरकार डूब गया है कि शिक्षित लड़कियां न केवल अच्छी पेशेवर हो सकती हैं और घरों का समर्थन करते हैं, लेकिन आत्मसम्मान का एक आत्मविश्वासपूर्ण जीवन जीते हैं।

सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में शिक्षण संस्थानों में लड़कियों की बढ़ती संख्या का यह रुझान स्कूल स्तर पर भी दिखाई दे रहा है। पिछले तीन दशकों में यूपी बोर्ड की 10वीं कक्षा की परीक्षा के लिए पंजीकरण कराने वाली लड़कियों की संख्या दोगुनी हो गई है।

1991 में, यूपी बोर्ड में हाईस्कूल परीक्षा के लिए कुल 17,75,602 पंजीकृत छात्र थे, जिसमें 14,04,519 लड़के थे,जो कुल नामांकन का 79.10 प्रतिशत था। जबकि 3,71,083 थी, जो कुल नामांकन का 20.89 प्रतिशत था। इसके बाद आंकड़ों में देखें तो दस वर्ष में काफी बदलाव हुआ है। 2021 में, कक्षा 10 की परीक्षा के लिए कुल 29,94,312 छात्रों ने पंजीकरण कराया था, जिसमें 16,74,022 लड़के थे। यह संख्या कुल नामांकन का 55.90 प्रतिशत रहा। दूसरी तरफ 13,20,290 लड़कियां शामिल थी, जो कुल नामांकन का 44.09 प्रतिशत रहा।

मनोवैज्ञानिक भी इस स्थिति का श्रेय माता-पिता के दृष्टिकोण में बदलाव को देते हैं। मनोविज्ञान एवं निर्देशन विभाग उत्तर प्रदेश की निदेशक उषा चंद्रा का कहना है, 'माता-पिता की धारणा और दृष्टिकोण में बदलाव का नतीजा अब धीरे धीरे सामने आ रहा है। लडकियों को बेहतर सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना इसका एक और कारण है। इससे पहले, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले माता-पिता विशेष रूप से लड़कियों को शिक्षित करने के मामले में उदासीन थे। हालांकि, मुफ्त शिक्षा, छात्रवृत्ति, व्यवस्थित परामर्श के साथ-साथ रेडियो, टीवी पर अभियान सहित विभिन्न सरकारी पहलों ने इस बदलाव को लाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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गोविंद बल्लभ पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के प्रसिद्व सामाजिक वैज्ञानिक प्रो. बद्री नारायण का कहना है कि यूपी में यह प्रवृत्ति राष्ट्रीय स्तर पर देखे जा रहे बदलाव की तर्ज पर है। उन्होंने कहा कि जून 2021 में जारी अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (एआईएसएचई) 2019-20 से पता चला है कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में बीए और बीएससी पाठयक्रम के अलावा एमफिल, स्नातकोत्तर और सर्टिफिकेट स्तर के पाठ्यक्रमों में अधिक महिलाओं के नामांकित होने के अलावा, वे चिकित्सा विज्ञान में भी अपना दबदबा बनाए हुए हैं।

हालांकि, राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों में महिला छात्रों की हिस्सेदारी सबसे कम है, जहां रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 और 2019-20 के बीच उच्च शिक्षा में महिला नामांकन में कुल मिलाकर 18 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। महिलाओं का सकल नामांकन अनुपात 27.3 प्रतिशत है, जो पुरुषों की तुलना में 26.9 प्रतिशत अधिक है। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण में पिछले पांच वर्षों के दौरान एमए, एमएससी और एमकॉम पाठ्यक्रमों में महिलाओं की भागीदारी में बहुत तेज वृद्धि हुई है।

शिक्षक नेता व प्रोफेसर राजेश मिश्र का कहना है कि ये सभी बदलाव लगातार बढ़ती जागरूकता व सरकारी प्रोत्साहन से संभव हो पाया है। सभी वर्ग की गरीब छात्राओं को छात्रृति ने भी इन संख्याओं को बढ़ाने में मदद की है। इसके अलावा खास बात यह है कि हाल के वर्षों में पुरूष छात्रों ने सामान्य पाठयक्रमों में दाखिला लेने के बजाए प्रोफेसनल कोर्स में नामांकन के प्रति रूझान बढ़ा है। दूसरी तरफ छात्राओं की अभी भी उच्च शिक्षण संस्थानों में भी सामान्य पाठयक्रमों में दाखिला के चलते इनकी संख्या बढ़ गई है। यह सामाजिक व आर्थिक रूप से बेहतर संदेश है।

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