BHU में धरने पर बैठी महिला प्रोफेसर ने कहा दलित होने के कारण नहीं दिया जा रहा प्रमोशन, रचा गया षडयंत्र
शोभना नेरलीकर का आरोप है, 2013 में लिए गए उनके मातृत्व अवकाश की आड़ में विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनकी सर्विस में हेरफेर करके घटा दिया उनकी वरिष्ठता को, वह जब भी प्रोन्नति के लिए दावेदारी करती तो विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें कोई न कोई आपत्ति लगाकर उनकी वरिष्ठता को प्रभावित करता रहता और यह सब दलित होने के कारण किया गया...
जनज्वार, वाराणसी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में जातिगत भेदभाव का एक बड़ा मामला सामने आया है। सोमवार 1 फरवरी से धरने पर बैठी बीएचयू के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में कार्यरत दलित महिला प्रोफेसर ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि दलित होने के कारण विश्वविद्यालय में उनका उत्पीड़न किया जा रहा है।
दलित महिला प्रोफेसर शोभना नेरलीकर सोमवार 1 फरवरी को विश्वविद्यालय के सेंट्रल ऑफिस के सामने धरने पर बैठ गईं। शोभना नार्लीकर का आरोप है कि दलित होने के नाते विश्वविद्यालय में उनका मानसिक शोषण किया जा रहा है। पत्रकारिता जनसंचार विभाग में प्रोफेसर के पद पर तैनात प्रोफेसर शोभना नेरलीकर के मुताबिक 2013 से लगातार विश्वविद्यालय में प्रशासनिक अफसर और विभाग के प्रोफेसर दलित होने के नाते उनका उत्पीड़न कर रहे हैं। रेगुलर काम करने के बावजूद उन्हें कार्यालय में लीव विदाउट पे दिखाकर उनकी सीनियारिटी को प्रभावित किया जा रहा है। विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार से लेकर कई अफसरों को उन्होंने इसकी शिकायत की है, लेकिन कहीं भी उनकी सुनवाई नही हो रही है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय प्रशासन पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग में कार्यरत दलित महिला एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शोभना नेरलीकर का आरोप है कि विभागाध्यक्ष बनने से रोकने के लिए गैरकानूनी ढंग से लगातार उनकी वरिष्ठता को प्रभावित किया जा रहा है। इसी से नाराज डॉ. शोभना नेरलीकर सोमवार 1 मार्च को पहले केंद्रीय कार्यालय में और उसके बाद उसके सामने धरने पर बैठ गईं। हालांकि इसके बावजूद उनकी वरिष्ठता की गैरकानूनी दिक्कतों का समाधान विश्वविद्यालय प्रशासन नहीं कर पाया। 1 मार्च को शोभना रात में वह घर चली गईं, लेकिन मंगलवार 2 फरवरी को पुनः वह केंद्रीय कार्यालय के सामने अपने समर्थकों के साथ धरने पर बैठ गईं।
बकौल डॉ. शोभना नेरलीकर उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में 19 अगस्त 2002 को बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर ज्वाइन किया था और वह उसी समय पीएडी उपाधिधारक थीं। उनके साथ ही दो दिन बाद ब्राह्मण समुदाय के डॉ. अनुराग दवे ने भी विभाग में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर ज्वाइन किया, लेकिन वह पीएचडी उपाधि धारक नहीं थे। उस समय प्रो. बलदेव राज गुप्ता विभागाध्यक्ष थे। तब ब्राह्णण समुदाय के शिशिर बासु ने विभाग में प्रोफेसर पद पर ज्वाइन किया था। 2003 में वह विभागाध्यक्ष बने और जातिगत आधार पर शिशिर बासु ने उनका मानसिक उत्पीड़न करना शुरू कर दिए।
फेसबुक पर आशुतोष कुमार ने लिखा है, डॉ. शोभना का आरोप है कि शिशिर बासु 2003-2009 तक लगातार दो बार विभागाध्यक्ष रहे, लेकिन उन्होंने शोध कराने के लिए उन्हें एक भी शोधार्थी आबंटित नहीं किए। उनके निर्देशन में अनुराग दवे पीएचडी करने लगे। 2009 में वह मातृत्व अवकाश पर चली गईं। वह एसोसिएट प्रोफेसर के योग्य हो गईं, लेकिन उन्हें जातिगत भेदभाव के आधार पर प्रोन्नति नहीं दी गई और ना ही शोधार्थी आबंटित किए गए। विभाग में वह वरिष्ठ फैकल्टी हो गईं थीं, मगर प्रो. बासु का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी उन्हें विभागाध्यक्ष नहीं बनाया गया। 2009 से 2011 तक विभागाध्यक्ष का प्रभार संकायाध्यक्ष के पास रहा। 2011 से 2013 तक फिर प्रो. शिशिर बासु विभागाध्यक्ष रहे, लेकिन उन्होंने उन्हें एक भी शोधार्थी आबंटित नहीं किया, बल्कि उनके साथ जातिगत आधार पर भेदभाव किया और मानसिक प्रताड़ना दी। इस दौरान डॉ. अनुराग दवे को पीएचडी की उपाधि मिल गई। 2013 से 2017 तक फिर विभागाध्यक्ष का प्रभार संकायाध्यक्ष के पास चला गया। इस दौरान डॉ. अनुराग दवे को एसोसिएट प्रोफेसर बना दिया गया, लेकिन उनकी प्रोन्नति एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नहीं की गई।
शोभना नेरलीकर का यह भी आरोप है कि वर्ष 2013 में लिए गए उनके मातृत्व अवकाश की आड़ में विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनकी सर्विस में हेरफेर करके उनकी वरिष्ठता को घटा दिया और वह जब भी प्रोन्नति के लिए दावेदारी करती तो विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें कोई न कोई आपत्ति लगाकर उनकी वरिष्ठता को प्रभावित करता रहता, ताकि वह कभी विभागाध्यक्ष या प्रोफेसर न बन सकें।
शोभना नेरलीकर का कहना है कुलसचिव कार्यालय की ओर से 04-5 सिंतबर 2017 को जारी पत्र संख्या-AB/5-L-721/24811 और 27 अप्रैल 2019 को जारी पत्र संख्या-एबी/5-एल-721(एल)/5009 से साफ समझा जा सकता है जिसमें विश्वविद्यालय प्रशासन ने विभिन्न आपत्तियों पर उनके जवाब पर आपत्तियां खत्म की हैं, लेकिन वे और एक नई आपत्ति लगाकर उनके वरिष्ठता क्रम को प्रभावित किए हुए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन उनके वरिष्ठता क्रम को दरकिनार करते हुए उनके दो दिन जूनियर ब्राह्णण डॉ. अनुराग दवे को 2017 में विभागाध्यक्ष बना दिया और प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति दे दी, लेकिन आज तक विभिन्न आपत्तियां लगाकर उन्हें प्रोफेसर पद प्रोन्नति नहीं दी और न ही विभागाध्यक्ष बनाया।
शोभना नेरलीकर का कहना है कि अनुराग दवे का कार्यकाल खत्म होने के बाद वह विभागाध्यक्ष की दावेदार हैं, लेकिन दलित होने की वजह से उन्हें विभागाध्यक्ष नहीं बनाया गया, बल्कि विभागाध्यक्ष का प्रभार एक बार संकायाध्यक्ष को दे दिया गया है। अवकाश को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुभाग अधिकारी की बार-बार आपत्तियों का जवाब और सुबूत देने के बाद भी उनके अवकाश और सर्विस का विवाद अभी तक नहीं सुलझा है।
शोभना नेरलीकर ने ये भी आरोप लगाया कि विभाग में जब वो क्लासेस लेती हैं तो विभाग के अन्य प्रोफेसर उन्हें ज्यादा क्लासेस लेने से रोकते हैं। उनका कहना है कि वो दलित हैं इसलिए उनके साथ ऐसा भेदभाव किया जा रहा है। विश्वविद्यालय के सेंट्रल ऑफिस के सामने महिला दलित प्रोफेसर के विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ दिये जा रहे धरने के बाद प्रशासनिक अफसरों में जरूर हड़कंप मचा हुआ है।
अब शोभना नेरलीकर ने विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने 7 मांगें रखी हैं।
उनकी पहली मांग है कि उनकेके सर्विस रिकॉर्ड में 31-1-2013 से 12-2-2013 तक के लीव-विदाउट-पे को रेगुलर सर्विस के रूप में जोड़ा जाए, क्योंकि वह इस दौरान विभाग में उपस्थित रही हैं और अपनी सेवा दी हैं।
दूसरी मांग है, पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग में कार्यरत डॉ. अनुराग दवे की गैर-कानूनी प्रोन्नति की जांच उच्च न्यायालय के कार्यरत न्यायमूर्तियों की निगरानी में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराई जाए, क्योंकि इसमें कुल-सचिव डॉ. नीरज त्रिपाठी समेत कई प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक और कर्मचारी शामिल हैं। तीसरी मांग है, अनुराग दवे के प्रोमोशन को तुरंत निरस्त किया जाए।
शोभना की चौथी मांग है इस मामले की जांच होने तक प्रो. शिशिर बासु और डॉ. अनुराग दवे को विभाग के किसी भी प्रशासनिक कमेटी न रखा जाए। पांचवीं मांग है, विश्वविद्यालय प्रशासन की आंतरिक जांच कमेटी में एससी, एसटी, ओबीसी और महिला प्रतिनिधि को शामिल किया जाए।
साथ ही छठी मांग के तौर पर उन्होंने कहा है कि विभाग की वरिष्ठ फैकल्टी होने की वजह से सभी विभागीय कमेटियों में उन्हें शामिल किया जाए और उनकी अंतिम और सातवीं मांग है कि उनके कोटे में रिक्त पदों पर शोधार्थियों को आबंटित किया जाए।