किस कक्षा से बच्चों को दी जानी चाहिए सेक्स एजुकेशन ?

हमारा देश 75 साल की आजादी के बाद भी सही और संतुलित सेक्स ज्ञान की शब्दावली और विमर्श की लोकप्रिय-साधारण भाषा नहीं गढ़ पाया, जिससे आम समाज, मां-बाप, अभिभावक बच्चों और किशोरों को सही जानकारी दे पाएं जिससे वे यौन शोषण, स्नेह और प्यार करने में आसानी से और स्वाभाविकता से फर्क कर पाएं...

Update: 2024-09-23 06:07 GMT

Sex Education in India :  भारत जैसे देश में जहां सेक्स पर बात करना एक तरह का टैबू बना हुआ है, वैसे देश में बच्चों को सही दिशा में सेक्स एजुकेशन (Sex Education) दिया जाना बेहद जरूरी पहलू है। ज्यादा जरूरी इसलिए है कि बच्चों का यौन शोषण करने वाले ज्यादातर लोग उसके आसपास के ही होते हैं, जानकारी न होने की वजह से बच्चे को यह नहीं पता होता है कि उसकी वह शिकायत कब, कैसे और किससे करे।

हमारे समाज और परिवार में सेक्स शिक्षा को लेकर दो तरह का संकट है या कहें दो तरह का सेक्स एजुकेशन को लेकर नजरिया है। पहला है, सेक्स पर खुले में, सबके सामने समाज या परिवार में औपचारिक तरीके से बात नहीं करनी है, सबकुछ छुपा के रखना है। और दूसरा नजरिया है अगर बात करनी है तो उसके वासना के पक्ष को ही प्रधान रखना है और मुख्य बनानकर पेश करना है। पेश भी ऐसे करना है कि पूरी सेक्स चर्चा सेक्स एजुकेशन पर चर्चा की जगह एडल्ट या पोर्न विमर्श में बदल जाए और सुनने वालों को ऐसा लगे कि इससे अच्छा तो सेक्स एजुकेशन से दूर रखना ही है।

सेक्स एजुकेशन या सेक्स मुद्दों पर चर्चा के दौरान वासना के पक्ष को प्रधान बनाने का बड़ा नुकसान होता है, और सबसे बड़ा और पहला नुकसान है मां-बाप और ज्यादातर शिक्षकों को लगता है कि सेक्स एजुकेशन पर बात करना या जानकारी देना एक तरह से वासना के प्रति बच्चों को लालायित यानी प्रोवोक करना है या फिर उन्हें सेक्स करने को लेकर उकसाना है, बच्चों को सेक्स फ्रेंडली (How to Talk to Your Kids About Sex) बनाना है। हालांकि आज सभ्य समाज इस बात को बखूबी समझ चुका है कि सेक्स एजुकेशन के प्रति यह दोनों ही नजरिए असंतुलित, अतिवादी और भटकाने वाले हैं।

असल में हमारा देश 75 साल की आजादी के बाद भी सही और संतुलित सेक्स ज्ञान की शब्दावली और विमर्श की लोकप्रिय-साधारण भाषा नहीं गढ़ पाया, जिससे आम समाज, मां-बाप, अभिभावक बच्चों और किशोरों को सही जानकारी दे पाएं जिससे वे यौन शोषण, स्नेह और प्यार करने में आसानी से और स्वाभाविकता से फर्क कर पाएं। इस फर्क न कर पाने की वजह से देश में हर रोज लाखों बच्चे और किशोर शोषण का यौन हिंसा-शोषण का शिकार बनते हैं या कई बार खुद किशोर भी अपने से छोटे, कमजोर और मासूम बच्चों का शोषण करते हैं। इसका परिणाम होता है देश में हर साल हम लाखों की संख्या में यौन कुंठित नौजवानों की जमात तैयार करते हैं और फिर उससे देश अनंत समय तक कानून-व्यवस्था और डंडे के दम पर सुधार में जुटा रहता है। लेकिन उसकी जड़ों में जाकर इलाज करने की जहमत हमारा सभ्य कहे जाने वाला समाज कभी नहीं उठाना चाहता, नीर-क्षीर विवेकी की तरह समस्या की जड़ में नहीं जाना चाहता।

किस कक्षा से बच्चों को दी जानी चाहिए सेक्स एजुकेशन

विशेषज्ञों और अध्ययनकर्ताओं की राय में बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने की शुरूआत चार साल की उम्र से कर देनी चाहिए। इस उम्र से बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में समझाएं। उन्हें प्राइवेट पार्ट्स की सेफ्टी और उससे जुड़े खतरों के बारे में जानकारी देते हुए माता पिता से हर बात शेयर करने की सलाह दें। इस विषय पर चर्चा के लिए माता पिता से बेहतर कोई शिक्षक नहीं हो सकता, जो उन्हें एक हेल्दी माहौल में जागरूक बना सकते हैं।

उम्र के अनुसार सेक्स एजुकेशन

अक्सर सेक्स एजुकेशन देने वाले विशेषज्ञ और अध्ययनकर्ता इस बार पर जोर देते हैं कि उम्र के अनुसार सेक्स शिक्षा से बच्चों-छात्रों-किशारों को अवगत कराना चाहिए। सवाल है कि क्या उम्र के अनुसार सेक्स को लेकर जागरुकता की बात महत्वपूर्ण है या नहीं? तो इसका जवाब, हां है। सेक्स शिक्षा देने के अनुभव और परिणाम बताते हैं कि उम्र के अनुसार ही सेक्स एजुकेशन दिया जाना चाहिए। वैसे भी कहावत है -समय आव तरवर फलै, केतक सीचों नीर। जाहिर है सबकुछ समय यानी उम्र के अनुसार ही हो तो सबसे अच्छा है। सामान्य समझ भी इस बात की गवाही देती है कि आठवीं का बच्चे को जिसे सेक्स एजुकेशन की जरूरत है उस सेक्स शिक्षा की जरूरत चौथी के बच्चे को नहीं है। हां, दसवीं के बाद करीब-करीब सेक्स एजुकेशन सभी उम्र के लिए एक जैसी हो जाती है। हालांकि कई बार बच्चे सही माहौल और पूर्ण जानकारी न मिलने की वजह से 10वीं के बाद भी सेक्स एजुकेशन के बारे में अनभिज्ञ या अधूरी और खतरनाक जानकारी रखते हैं।

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