रोजगार के लिए देश में संसाधनों की नहीं है कमी, मात्र सुपर रिच पर टैक्स से जुटा सकती है सरकार 18 लाख करोड़

जो नीतियां अभी चल रही हैं उनमें लगातार रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं। हालत इतनी बुरी है कि आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से भी नौजवानों का प्लेसमेंट नहीं हो पा रहा है और सफाईकर्मी व चपरासी जैसे पदों तक पर उच्च शिक्षित नौजवान फार्म भर रहे हैं....

Update: 2024-09-12 06:48 GMT

लखनऊ। देश के हर नागरिक को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा-स्वास्थ्य, रोजगार, ओल्ड पेंशन स्कीम जैसी सामाजिक सुरक्षा, किसानों को एमएसपी का कानूनी अधिकार देने के लिए संसाधनों की कमी नहीं है। देश के सुपर रिच की संपत्ति पर संपत्ति टैक्स और विरासत टैक्स लगाया जाए तो लगभग 18 लाख करोड रुपए जुटाया जा सकता है, जिससे इन सारी नागरिक सुविधाओं को दिया जा सकता है। यह बातें लखनऊ विश्वविद्यालय में चले रोजगार अधिकार अभियान में छात्रों से संवाद के दौरान उभरीं।

समाज शास्त्र के शोधछात्र संदीप ने कहा कि आज देश में सबसे बड़ी जरूरत सुपर रिच पर टैक्स लगाना है, क्योंकि आम जनता तो पहले ही जीएसटी समेत विभिन्न टैक्सों के बोझ तले दबी हुई है। 48 लाख करोड़ के देश के बजट के अतिरिक्त इससे संसाधन जुटाए जा सकते हैं। उन्होंने इस अभियान का समर्थन करते हुए इसमें शामिल होने की इच्छा दिखाई। अभियान में हजारों की संख्या में पर्चे बांटे गए हैं और छात्रों युवाओं से इस अभियान में जुड़ने की अपील की गई। कई छात्रों ने इस अभियान से जुड़ने के लिए अपने नम्बर भी दिए।

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अभियान में एसएफआई के अब्दुल वहाब ने कहा कि देश में एक करोड़ से ज्यादा सरकारी नौकरियों में पद खाली पड़े हुए हैं। खुद प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनाव के पहले यह कहा था कि केंद्र सरकार में रिक्त पड़े 10 लाख पदों को मिशन मोड में भरा जाएगा, लेकिन आज तक यह भी काम नहीं हो सका। इसलिए आज जरूरत है तत्काल सरकारी नौकरियों को भरा जाए। उन्होंने नौकरियों की प्रवेश परीक्षा में हो रही धांधली के बारे में कहा कि एक पारदर्शी परीक्षा प्रणाली होना वक्त की जरूरत है।

कुछ छात्रों ने विश्वविद्यालय में लोकतांत्रिक गतिविधियों को चलाने की भी अनुमति नहीं देने पर अपनी चिंता व्यक्त की। छात्रों ने शिक्षा के लगातार महंगे होते जाने और शोध छात्रों पर बायोमीट्रिक हाजिरी का नियम लागू करने पर अपना आक्रोश व्यक्त किया।

भगत सिंह स्टूडेंट मोर्चा की आकांक्षा आजाद ने कहा कि देश का संविधान हर नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है। संविधान के अनुच्छेद 21 और सुप्रीम कोर्ट के इस पर आए तमाम निर्णयों में रोजगार के अधिकार को देना भी सुनिश्चित किया गया है, लेकिन सरकार इस संवैधानिक अधिकार को देने के लिए तैयार नहीं है। जो नीतियां अभी चल रही हैं उनमें लगातार रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं। हालत इतनी बुरी है कि आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से भी नौजवानों का प्लेसमेंट नहीं हो पा रहा है और सफाईकर्मी व चपरासी जैसे पदों तक पर उच्च शिक्षित नौजवान फार्म भर रहे हैं।

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