बोकारो के चंडीपुर स्कूल में छात्र पानी के अभाव में प्यासे रहने को मजबूर, सालभर से खराब पड़ा है विद्यालय का चापानल

बच्चे अपने अपने घर से सुबह एक बोतल पानी लेकर स्कूल आते हैं। ज्यादा प्यास लगी तो छुट्टी के बाद घर जाकर ही पानी पीते हैं। इसके अलावा एमडीएम खाने के बाद थाली धोने में भी काफी परेशानी होती है। इसके लिए भी दूर स्थित शिवालय या मृत्युंजय महतो के खेत में बने कुआं से पानी लाना पड़ता है...

Update: 2023-06-26 03:36 GMT

विशद कुमार की रिपोर्ट

झारखंड के बोकारो जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर है कसमार प्रखंड और प्रखंड मुख्यालय से मात्र सात किमी की दूरी पर अवस्थित है उत्क्रमित मध्य विद्यालय चंडीपुर। यह क्षेत्र ओबीसी बहुल क्षेत्र है और पहली कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई के लिए इनके करीब 150 बच्चे प्रतिदिन पढ़ने आते हैं।

विद्यालय में आठ शिक्षक हैं, जिसमें स्थायी तौर पर प्रधानाध्यापक को छोड़कर बाकी सात पारा शिक्षक हैं। मध्याह्न भोजन की चार महिला रसोईया हैं जिनमें दो स्थाई हैं दो की हाल ही में प्रतिनियुक्ति हुई है। स्कूल में लगभग सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं, सिवाय पेयजल की सुविधा के।

विद्यालय का चापानल लगभग एक साल से खराब पड़ा है, अतः कुछ बच्चे घर से बोतल में पीने का पानी लेकर आते हैं। जबकि प्रायः बच्चों को स्कूल परिसर से लगभग 3.4 सौ मीटर की दूरी पर अवस्थित विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष मृत्युंजय महतो के कुआं से पानी पीने जाना पड़ता है। वहीं मध्याह्न भोजन बनाने के लिए भी पानी के लिए रसोईयों को दूर स्थित विद्यालय के अध्यक्ष के कुएं पर जाना पड़ता है।

जब इस बाबत विद्यालय के प्रधानाध्यापक राकेश रोशन से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि जब से चापानल खराब हुआ है, तब से लेकर अब तक कई बार इसकी सूचना संबंधित विभाग से लेकर सांसद, विधायक, मुखिया, पंसस व अन्य जन.प्रतिनिधियों को दे चुके हैं। बावजूद आज तक एक अदद चापानल इस विद्यालय में नहीं लगा, जबकि पिछले एक साल से यह चापाकल खराब पड़ा है।

उन्होंने बताया कि वे पीने के पानी की ही परेशानी नहीं, बल्कि विद्यालय में बने हुए हैंडवाश यूनिट, बाथरूम, किचन रूम और किचन गार्डन भी पानी विहीन हैं, जिससे भी रसोई बनाने से लेकर बाथरूम तक के लिए परेशानी हो रही है।

प्रधानाध्यापक के अनुसार विद्यालय में पानी की समस्या पिछले एक साल से है। चापाकल के खराब होने का सबसे बड़ा कारण है उस बोरिंग में लगा हुआ समरसेबल भीतर दब गया है, जिसके कारण हैंड वास यूनिट भी काम नहीं कर रहा है। इसकी वजह से पानी की भीषण समस्या आन पड़ी है। विद्यालय के कुछ बच्चे घर से प्रतिदिन एक बोतल पानी लेकर आते हैं तो कुछ नहीं। लेकिन उससे काम नहीं चलता है तो वह पानी के लिए विद्यालय से बाहर अगल.बगल के कुआं से पानी लाने चले जाते हैं। जिससे हमेशा दुर्घटना होने का खतरा बना रहता है।

एमडीएम मध्याह्न भोजन चलाने हेतु रसोईया बहनों को पानी के लिए विद्यालय के अध्यक्ष मृत्युंजय महतो के कुएं से पानी लाना पड़ता है, जो लगभग 500 मीटर दूरी पर स्थित है। विद्यालय में पानी की बहुत बड़ी समस्या खड़ी हुई है। हैंड वास यूनिट भी बंद पड़ा हुआ है। विद्यालय में रनिंग वाटर की व्यवस्था के तहत बाथरूम और रसोई घर तक पिछले साल ही की गई थी, लेकिन सभी कुछ अब बंद पड़ा हुआ है।

विद्यालय के अन्य शिक्षकों का कहना है की स्थानीय सभी जनप्रतिनिधियों के बीच इस समस्या को रखा गया। स्वच्छता पेयजल विभाग को भी बार.बार इस समस्या से अवगत किया गया। लेकिन अभी तक कोई बात नहीं बनी है। वे कहते हैं कि हमेशा एक भय का वातावरण बना रहता है कि कहीं किसी बच्चे के साथ पानी की कमी के कारण कोई घटना न घट जाए। अब तो समझ में ही नहीं आता है कि किसके पास इसकी गुहार लगाई जाए। ना विभाग सुन रहा है, ना कोई जनप्रतिनिधि ही इस ओर ध्यान दे रहा है। किसी से बात नहीं बन पा रही है। बड़े आहत स्वर में शिक्षक कहते हैं कि एक चापाकल की व्यवस्था भी वे लोग नहीं कर पा रहे हैं जबकि विद्यालय में उन्हीं के क्षेत्र के उनके ही बच्चे अध्ययन करने के लिए आते हैं। अतः इन छोटे.छोटे बच्चों का भी ख्याल किसी के मन में नहीं आता है।

प्रधानाध्यापक राकेश रोशन ने बताया कि चार दिन पहले हुए शिक्षा विभाग की गुरु गोष्ठी में भी यह मुद्दा हमने प्रमुखता से उठाया है। मैंने जिले के उपायुक्त समेत अन्य अधिकारियों, सांसद, विधायक व पंचायत प्रतिनिधियों से इस विकराल समस्या की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा है कि बच्चों की प्यास बुझाने के लिए एक चापानल लगाया जाए।

स्कूल के छात्र-छात्राओं से जब पूछा गया कि आप सबों को स्कूल में कौन कौन सी परेशानी है, तो कक्षा अष्टम की छात्रा रिया कुमारी कहती है कि सब ठीक है। केवल पानी के लिए काफी परेशान होना पड़ रहा है। हमलोग घर से बोतल मे पानी लाते हैं लेकिन इस गर्मी में वह भी जल्दी खतम हो जाता है तो दूर गांव में जाकर कुंआ से पानी लाना पड़ता है।

कक्षा आठ की ही पिंकी कुमारी कहती है, स्कूल का खाना खाने के लिए तो दूर कुंआ से पानी तो लाना ही पड़ता है, लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी बाथरूम जाने के लिए होता है। पानी के अभाव में उसके लिए भी दूर सुरक्षित जगह जाना पड़ता है। प्रियंका कुमारी भी रिया व पिंकी की बातों पर सहमति जताती है।

कक्षा आठ का ही आनंद कुमार बताते हैं, यहां पढ़ाई तो ठीक होती है, टीचर सर हम सबका पूरा ख्याल रखते हैं, लेकिन पानी के लिए हम बच्चे काफी परेशान हैं, वहीं छात्र चंदन कुमार कहते हैं, पानी की परेशानी ऐसी कि कभी कभी हमें काफी देर तक प्यासे रहना पड़ता है। प्यास लगी रहता है और क्लास चलता रहता है, ऐसे पास में पानी रहने हम जाकर पी सकते हैं लेकिन अब तो इसके लिए दूर जाना पड़ता है ऐसे प्यास मार कर पढ़ना पड़ता है।

विद्यालय के बच्चों ने बताया कि सभी बच्चे अपने अपने घर से सुबह एक बोतल पानी लेकर स्कूल आते हैं। ज्यादा प्यास लगी तो छुट्टी के बाद घर जाकर ही पानी पीते हैं। इसके अलावा एमडीएम खाने के बाद थाली धोने में भी काफी परेशानी होती है। इसके लिए भी दूर स्थित शिवालय या मृत्युंजय महतो के खेत में बने कुआं से पानी लाना पड़ता है।

माता समिति की महिला रसोईया गुंजा दिव्या और कल्पना दिव्या बताती हैं कि विद्यालय में चापानल नहीं रहने से एमडीएम पकाने, बर्तन व थाली धोने एवं प्यास बुझाने में काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। अतः इसके लिए विद्यालय से 500 मीटर की दूरी पर स्थित शिवालय एवं विद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष मृत्युंजय महतो के खेत में बने कुएं से पानी ढोकर लाना पड़ता है, तब जाकर एमडीएम पकाई जाती है।

बच्चों का कहना है कि जल्द से जल्द इस समस्या का कोई समाधान निकालना चाहिए, ताकि विद्यालय में बने हुए हैंडवाश यूनिट, बाथरूम, किचन रूम और किचन गार्डन को फिर से पानी मिल सके।

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