Status Of Education : 21% लड़कियों और 36% लड़कों को पढ़ने में दिलचस्पी नहीं, देशभर में लाखों बच्चों ने छोड़ी स्कूल की पढ़ाई

Status Of Education : एकीकृत डाइस का 2020-21 का आंकड़ा बताता है कि प्राथमिक स्तर पर जहां केवल 0.8% ड्रॉप आउट है, वहीं माध्यमिक स्तर पर लगभग 15% बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं।

Update: 2022-06-06 12:45 GMT

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सौमित्र रॉय की रिपोर्ट 

खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे खराब, पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब- इस कहावत में अब नवाब की छवि आला अफसरों की है। जाहिर है बिना शिक्षा के अफसर बनना मुमकिन नहीं। लेकिन देश की 21% लड़कियों और 36% लड़कों को पढ़ने में दिलचस्पी नहीं है। स्कूली शिक्षा की स्थिति (Status Of Education) पिछले दिनों जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) में उजागर हुई है।

एक ओर जहां कोविड महामारी के बाद केंद्र और राज्यों की सरकारें स्कूली बच्चों को ऑनलाइन से ऑफलाइन, यानी क्लासरूम की तरफ लाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहतीं, वहीं सर्वेक्षण के आंकड़े बता रहे हैं कि देश में लाखों बच्चे पढ़ाई में दिलचस्पी कम होने के कारण स्कूल छोड़ चुके हैं।

इसलिए स्कूल छोड़ रहे हैं बच्चे

इन बच्चों की उम्र 6-17 साल के बीच है। यही वह उम्र है, जब बच्चे स्कूली पढ़ाई से अपना भविष्य तैयार करते हैं। सर्वेक्षण में पाया गया कि स्कूली शिक्षा तक पहुंच न होना या शिक्षा का महंगा होना ही स्कूल छोड़ने का कारण नहीं है। असल में बच्चों को पढ़ाई करने में कोई दिलचस्पी रही ही नहीं। सर्वेक्षण में 20 हजार से ज्यादा लड़कों और करीब 22 हजार लड़कियों को शामिल किया गया था। एकीकृत डाइस (UDISE) का 2020-21 का आंकड़ा बताता है कि प्राथमिक स्तर पर जहां केवल 0.8% ड्रॉप आउट है, वहीं माध्यमिक स्तर पर लगभग 15% बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। यह संख्या लाखों में है।ये भी हैं स्कूल छोड़ने के कारण

गरीबी, स्कूल से दूरी और बच्चों की शिक्षा को लेकर माता-पिता की सोच मुख्य रूप से इस फैसले के पीछे निर्धारक होती है कि बच्चा कितने समय तक स्कूली शिक्षा में रहेगा। NFHS-5 के सर्वे में बच्चों ने पढ़ाई में दिलचस्पी न होने के अलावा स्कूली पढ़ाई के खर्च को भी ड्रॉप आउट का कारण बताया है। 16% लड़कों और 20% लड़कियों ने गरीबी को कारण बताया तो 13% लड़कियों और 10% लड़कों का कहना था कि घरेलू काम में उनकी जरूरत के कारण पढ़ाई छूट गई। 7% लड़कियों और 0.3% लड़कों को शादी हो जाने के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा। यानी बाल विवाह अभी भी ड्रॉप आउट का कारण बना हुआ है। करीब 6% लड़कों ने कहा कि उन्हें काम के बदले पैसे मिलते हैं, जबकि 2.3% लड़कियों को खेतों में काम करना पड़ता है और दोनों ही बच्चों के स्कूल छोड़ने की वजह बन गए।

बार-बार फेल हुए तो स्कूल छोड़ दिया

करीब 5% बच्चों ने स्कूल छोड़ने की वजह एडमिशन न मिलने को बताया, जबकि 5% लड़कों और 4% लड़कियों के लिए बार-बार फेल होना कारण बना। 4% बच्चों का मानना था कि शिक्षा की कोई जरूरत नहीं है। भोपाल स्थित एकलव्य संस्था के कार्यकारी मनोज निगम बताते हैं कि सबसे पहली बात तो हमारी शिक्षा में बच्चों के ज्ञान का कोई तारतम्य ही नहीं है। यह रट्टामार शिक्षा है, जिसका बच्चों के सामाजिक जीवन के साथ ताना-बाना होता नहीं। दूसरे कोविड के दौरान ऑनलाइन शिक्षा ने वास्तव में बच्चों की रुचि कम की है। बच्चों को घरेलू कार्यों में झोंका गया या किसी पारिवारिक काम में खपा दिया गया, जिसके बदले में उन्हें पैसा मिलते हैं। जब बिना शिक्षा के बच्चों को पैसा मिल रहा हो तो वे श्रम की ओर जाते हैं। शिक्षा से मिलने वाले ज्ञान के सहारे अपना संवैधानिक हक लेने की उनकी प्रवृत्ति नहीं रह जाती है।

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