वायु प्रदूषण प्रभावित करता है ग्लेशियर से पानी के बहाव को, पिछले 20 वर्षों में दोगुनी हुई वृद्धि
पिछले वर्ष कम वायु प्रदूषण के कारण हिमालय की चोटियों पर जमे ग्लेशियर पर कालिख कम जमा हो पाई थी। वैज्ञानिकों का आकलन है की पिछले 20 वर्ष के दौरान कालिख की औसत मात्रा की तुलना में वर्ष 2020 में कालिख की मात्रा 30 प्रतिशत तक कम थी...
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
पूरे दक्षिण एशिया में भारत समेत सभी देशों में अधिकतर नदियाँ हिन्दुकुश हिमालय की ऊंची चोटियों पर जमे ग्लेशियर से होने वाले पानी के बहाव पर निर्भर करतीं हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेशियर से पानी के बहाव का सम्बन्ध वायु प्रदूषण से भी है। जब वायु प्रदूषण अधिक रहता है तब ग्लेशियर पर कालिख (soot) और धूलकण जमा हो जाते हैं, ये तापमान को अवशोषित करते हैं और इस कारण ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं और इनपर आधारित नदियों में पानी का बहाव बढ़ जाता है। कम वायु प्रदूषण के समय ग्लेशियर पर कालिख नहीं जमती, सूर्य की किरणों का परावर्तन बढ़ जाता है और इससे पानी के बहाव कम हो जाता है। यह सिद्धांत वर्षों से वैज्ञानिकों को मालूम है, पर इसका व्यापक परीक्षण कभी नहीं किया गया था।
वर्ष 2020 के दौरान कोविड 19 वैश्विक महामारी के कारण जब लगभग पूरी दुनिया में लॉकडाउन लगाया गया था, सभी आर्थिक गतिविधियाँ बंद हो गईं थीं, तब जाहिर है वायु प्रदूषण का स्तर न्यूनतम पहुँच गया था। दुनिया ने ऐसा साफ़ आसमान पहली बार देखा था और वैज्ञानिकों के लिए अनेक सिद्धांतों को परखने का यह सुनहरा मौका था। यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के ग्लेशियर विशेषज्ञ नेड बेयर ने वर्ष 2020 में पाकिस्तान और भारत में बहने वाली सिन्धु नदी में पानी के बहाव का अध्ययन किया था।
पिछले वर्ष कम वायु प्रदूषण के कारण हिमालय की चोटियों पर जमे ग्लेशियर पर कालिख कम जमा हो पाई थी। वैज्ञानिकों का आकलन है की पिछले 20 वर्ष के दौरान कालिख की औसत मात्रा की तुलना में वर्ष 2020 में कालिख की मात्रा 30 प्रतिशत तक कम थी।
ग्लेशियर विशेषज्ञ नेड बेयर के आकलन के अनुसार पिछले वर्ष ग्लेशियर के अपेक्षाकृत साफ़-सुथरा रहने के कारण सिन्धु नदी के पानी के बहाव में लगभग 7 घन किलोमीटर पानी की कमी आंकी गयी। ग्लेशियर के कारण नदियों में पाने के बहाव में अंतर का व्यापक असर आबादी पर पड़ता है। सिन्धु नदी के बहाव पर लगभग 30 करोड़ आबादी निर्भर करती है और गर्मी में पानी का एकमात्र स्त्रोत यही है। इस अध्ययन को प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकादमी ऑफ़ साइंसेज में प्रकाशित किया गया है।
नेड बेयर के अनुसार वायु प्रदूषण में कमी आने पर जब ग्लेशियर से पानी का बहाव कम हो जाता है, तब नदियों के पानी का बेहतर उपयोग हो पाता है क्योंकि पानी का बहाव लम्बे समय तक एक जैसा रहता है। नदियों के रास्तों में बनाए गए जलाशय भी धीरे-धीरे भरते हैं और असमय जलाशय को खाली नहीं करना पड़ता।
जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के कारण ग्लेशियर का व्यवहार लगातार बदलता जा रहा है। पिछले 20 वर्षों के दौरान ग्लेशियर से पानी के बहाव में दोगुनी बृद्धि आ चुकी है और अब पहाड़ों पर ग्लेशियर से बनी झील एक गंभीर खतरा बन चुकी हैं। वर्ष 1990 के बाद से ग्लेशियर से बनी झीलों के संख्या 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ चुकी है।
वैज्ञानिकों के अनुसार पूरा हिन्दुकुश हिमालय क्षेत्र एक तरफ तो जलवायु परिवर्तन से तो दूसरी तरफ तथाकथित विकास परियोजनाओं से खतरनाक तरीके से प्रभावित हैI हिन्दूकुश हिमालय लगभग 3500 किलोमीटर के दायरे में फैला है, और इसके अंतर्गत भारत समेत चीन, अफगानिस्तान, भूटान, पाकिस्तान, नेपाल और मयन्मार का क्षेत्र आता हैI इससे गंगा, ब्रह्मपुत्र, मेकोंग, यांग्तज़े और सिन्धु समेत अनेक बड़ी नदियाँ उत्पन्न होती हैं, इसके क्षेत्र में लगभग 25 करोड़ लोग बसते हैं और 1.65 अरब लोग इन नदियों के पानी पर सीधे आश्रित हैंI
अनेक भू-विज्ञानी इस क्षेत्र को दुनिया का तीसरा ध्रुव भी कहते हैं क्यों कि दक्षिणी ध्रुव और उत्तरी ध्रुव के बाद सबसे अधिक बर्फीला क्षेत्र यही हैI पर, तापमान बृद्धि के प्रभावों के आकलन की दृष्टि से यह क्षेत्र उपेक्षित रहा हैI हिन्दूकुश हिमालय क्षेत्र में 5000 से अधिक ग्लेशियर हैं और इनके पिघलने पर दुनियाभर में सागर तल में 2 मीटर की बृद्धि हो सकती हैI
वैज्ञानिकों के अनुसार पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में वर्ष 2100 तक यदि तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस ही बढ़ता है तब भी हिन्दूकुश हिमालय के लगभग 36 प्रतिशत ग्लेशियर और दुनिया के 10 प्रतिशत ग्लेशियर हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेंगेI यदि तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है तब लगभग 50 प्रतिशत ग्लेशियर ख़त्म हो जायेंगे, पर यदि तापमान 5 डिग्री तक बढ़ जाता, जिसकी पूरी संभावना भी है, 67 प्रतिशत ग्लेशियर ख़त्म हो जायेंगेI यहाँ ध्यान रखने वाला तथ्य यह है कि वर्ष 2018 तक तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका हैI
जाहिर है, ग्लेशियर एक बहुत ही संवेदनशील भौगोलिक संरचना है, और इसके बारे में विज्ञान अभी तक बहुत कुछ जान भी नहीं पाया है। ग्लेशियर से पानी के बहाव पर दुनिया की बड़ी आबादी निर्भर करती है, और ऐसे में इसके बहाव को प्रभावित करने वाला हरेक कारक खतरनाक हो सकता है।