पर्यावरण कार्यकर्ताओं का भविष्य अब और ज्यादा खतरनाक, PM मोदी ने सार्वजनिक मंच से करार दिया 'अर्बन नक्सल'
दुनिया में औसतन हरेक दूसरे दिन एक पर्यावरण कार्यकर्ता की हत्या कर दी जाती है, र्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करने वाले इन पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या सरकार, पुलिस, प्रशासन, सुरक्षा बल, शातिर अपराधी या संगठित अपराधी गिरोह के सदस्य भी करते हैं...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
At least 1738 environmental defenders have been killed during the past decade. ग्लोबल विटनेस नामक संस्था द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में औसतन हरेक दूसरे दिन एक पर्यावरण कार्यकर्ता की हत्या कर दी जाती है। पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करने वाले इन पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या सरकार, पुलिस, प्रशासन, सुरक्षा बल, शातिर अपराधी या संगठित अपराधी गिरोह के सदस्य भी करते हैं। अपने जल, जंगल, जमीन या दूसरे प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करते लोगों की निर्मम हत्या जंगलों के बीच या आदिवासियों के क्षेत्र में खनन, जंगलों की कटाई, बांधों या फिर कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना का विरोध करने के कारण की जाती है।
यह एक असमानता का उदाहरण भी है, जहां शांतिपूर्ण ढंग से विरोध करते लोगों की हत्या सशस्त्र पूंजीवादी व्यवस्था करती है। अफ़सोस यह है कि ऐसी हत्याओं वाले देश में हमारा देश हमेशा पहले 10 देशों में शामिल रहता है। हमारे देश में पर्यावरण कार्यकर्ताओं का भविष्य पहले से भी अधिक खतरनाक होने वाला है, क्योंकि हाल में ही स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने सार्वजनिक तौर पर पर्यावरण कार्यकर्ताओं को "अर्बन नक्सल" करार दिया है।
जाहिर है कि दुनिया को पहली बार यह खबर हुई होगी कि चिपको आन्दोलन, साइलेंट वैली बचाओ आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन या राजस्थान में खेजडी के पेड़ों को बचाने के आन्दोलन में शामिल लाखों पर्यावरण संरक्षक आजादी के अमृत महोत्सव काल में प्रधानमंत्री द्वारा "अर्बन नक्सल" करार दिए गए।
ग्लोबल विटनेस की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2012 से 2021 के दशक में दुनिया में कम से कम 1738 पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या की गयी। इस रिपोर्ट की भूमिका हमारे देश की प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता, वंदना शिवा ने लिखा है। उन्होंने लिखा है कि पर्यावरण कार्यकर्ताओं से उनका एक लंबा नाता रहा है और वे उनके खतरे को अच्छी तरह से जानती हैं।
रिपोर्ट में साफ़ तौर पर कहा गया है, वास्तविक मौतें इससे बहुत अधिक हैं, पर इतने पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या की खबरें एडिया में प्रकाशित की गईं थीं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या के सन्दर्भ में सबसे खतरनाक दक्षिण अमेरिकी देश हैं, जहां कुल हत्याओं में से दो-तिहाई से भी अधिक की जाती हैं। एशिया में सबसे खतरनाक देश फिलीपींस और भारत हैं। ऐसी हत्याओं के सन्दर्भ में फिलीपींस सबसे खतरनाक पांच देशों में और भारत सबसे खतरनाक 10 देशों में हरेक वर्ष शामिल रहता है।
ऐसी हत्याओं के सन्दर्भ में सबसे आगे 342 हत्याओं के साथ ब्राज़ील है, दूसरे स्थान पर 322 हत्याओं के साथ कोलंबिया है, तीसरे स्थान पर 270 हत्याओं के साथ फिलीपींस है, चौथे स्थान पर 154 हत्याओं के साथ मेक्सिको और 117 हत्याओं के साथ होंडुरास पांचवें स्थान पर है। दुनियाभर में आदिवासी समुदाय हमेशा से प्राकृतिक संसाधनों के बीच रहा है, इसलिए इसके विनाश पर सबसे पहले और सबसे सशक्त विरोध भी यही समुदाय करता है। दुनिया में आदिवासियों की संख्या कुल आबादी का महज 5 प्रतिशत ही है, पर पर्यावरण संरक्षण की आवाज उठाते लोगों की ह्त्या के सन्दर्भ में इनकी संख्या 35 प्रतिशत से भी अधिक है। यह संख्या इससे बहुत अधिक होने का अनुमान है, क्योंकि घने जंगलों या सुदूर क्षेत्रों में की गयी अधिकतर हत्याओं की कोई जानकारी एकत्रित नहीं की जाती है।
पर्यावरण विनाश का विरोध करते लोगों की हत्याएं वैश्विक दक्षिण के देशों, अल्प-विकसित या विकासशील देशों, में ही ऐसी हत्याएं की जाती हैं। पर ऐसा नहीं है कि विकसित और बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश पर्यावरण का विनाश और विनाश का विरोध करने वालों की हत्याओं में शामिल नहीं हैं। दरअसल अब औद्योगिक देश अपने देश का पर्यावरण सुरक्षित रखकर गरीब देशों के प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहे हैं। इस काम में गरीब देशों की सरकारें भी शामिल रहती हैं, और सेना या पुलिस की मदद से पर्यावरण विनाश का विरोध करते लोगों को किसी ना किसी बहाने ठिकाने लगाती हैं।
दुनिया जितना पर्यावरणीय समस्याओं से घिरती जा रही है, प्राकृतिक संसाधनों की लूट के विरुद्ध आवाज भी उतनी ही बुलंद हो रही है। जाहिर है, चरम पूजीवाद के इस दौर में प्राकृतिक संसाधनों की लूट को रोकने का प्रयास करने वाला हरेक पर्यावरण कार्यकर्ता कभी भी मारा जा सकता है।