बेगूसराय में बलान नदी बचाओ महापंचायत आयोजित, चर्मरोग और सड़ांध झेलने को मजबूर 50 गांवों की जनता

बलान में नहाने से खुजली और चर्मरोग होना बहुत बड़ी समस्या है। बलान नदी जलकुंभी से भरी एक गंदे नाले में परिणत हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप नदी पर आश्रित लाखों मछुआरों की आजीविका चली गई है...

Update: 2024-09-24 08:23 GMT

बेगूसराय। 23 सितंबर को विश्व नदी दिवस के अवसर पर भगवानपुर प्रखंड के सतराजेपुर में बलान नदी बचाओ जन अभियान के तहत "बलान नदी बचाओ महापंचायत" का आयोजन किया गया।

महापंचायत में उपस्थित वक्ताओं ने बलान नदी की व्यापक दुर्दशा का वर्णन करते हुए कहा कि एक तरफ गंगा और अन्य नदियों में बाढ़ आई हुई है, वहीं दूसरी तरह बलान नदी प्यासी और बीमार है। नदी में पानी नहीं है और जो है उसमें सड़ांध है। बलान में नहाने से खुजली और चर्मरोग होना बहुत बड़ी समस्या है। बलान नदी जलकुंभी से भरी एक गंदे नाले में परिणत हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप नदी पर आश्रित लाखों मछुआरों की आजीविका चली गई है।

बलान नदी कछार के लाखों मछुआरे रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। नदी के किनारे का जलस्तर गिरता जा रहा है। सदियों से बहने वाली नदी में छठ पूजा का अर्घ्य संभव नहीं है।नदी पर आश्रित नदी तटीय 50 गाँवों का जीवन त्रस्त है। वक्ताओं ने कहा कि आज भी दलसिंह सराय जैसे बाजारों का कचड़ा और गंदा पानी बलान में गिराया जाता है। कुछ गांवों के लोग तो अपने शौचालय को इसी नदी में प्रवाहित कर रहे हैं। नदी के जमीन की मापी के लिए पहले भी आदेश आया था, फि रभी आज तक मापी नहीं हुई है। नौला भीट में स्लुइस गेट के कुप्रबंधन के कारण बलान में जल का आवागमन नहीं होता है। वहीं वैशाली जिला में भुरहा स्लुइस गेट से पानी नहीं आने से नदी में पानी नहीं रहता है। जलकुंभी की सफाई और नदी की उड़ाही नदी प्रबंधन की प्राथमिक शर्त है।

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बलान नदी को बचाने के लिए चिंतित बुद्धिजीवियों ने यह भी कहा कि बलान में नदी की अविरल धारा के प्रवाह के लिए जरूरी है कि मछुआरे मछली पकड़ने के लिए प्रवाह मार्ग में घेराबेड़ा नहीं डालें। स्थानीय प्रयासों का जिक्र करते हुए वक्ताओं ने कहा कि नदी का स्लुइस गेट खुलवाने के लिए विभागीय अधिकारियों से लेकर इसी क्षेत्र के निवासी और केंद्र सरकार के जल शक्ति राज्य मंत्री से भी बातचीत हुई, तब कुछ समय के लिए रिस-रिस क़र अति अल्प जल का प्रवाह हुआ था।

विश्व नदी दिवस के अवसर पर वक्ताओं ने दलीय और जातीय सीमाओं से ऊपर उठकर संगठित होते हुए इसके लिए शांतिपूर्ण संघर्ष को जरूरी बताया। उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बलान नदी को अविरल और निर्मल बनाने के लिए संगठित होने का संकल्प लिया।

नदी पंचायत में नदी दिवस के महत्व, नदियों की दुर्दशा और पर्यावरण पर होने वाले असर को समझते हुए बलान नदी को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया गया। नदी घाटी मंच द्वारा प्रस्तावित कानून के मसौदे को महत्व देते हुए 28-29 सितंबर को पटना के ठाकुर प्रसाद कम्युनिटी हॉल में प्रस्तावित "बिहार नदी संवाद" में बलान नदी बचाओ अभियान के प्रतिनिधि शामिल होंगे। देश की प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर और बरगी विस्थापितों के नेता राजकुमार सिन्हा द्वारा महापंचायत के समर्थन में भेजे गए संदेश को पढ़कर सुनाया गया।

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कार्यक्रम में बबलू सहनी, सुरेंद्र सहनी, खुशलाल, दिलीप कुमार, बिशुनदेव सहनी, रामबिलास सहनी, जितेंद्र, रामबालक सहनी, रामानंद सहनी, बनारसी सहनी, राम सागर सहनी, बटोरन सहनी, राम प्रीत सहनी इत्यादि नदी के किनारे के लोग, मत्स्यजीवी सहयोग समिति के नेता, बिहार जल श्रमिक संघ के नेताओं ने बात रखी। बॉम्बे आईआईटी से कोशी की त्रासदी पर पीएचडी करने वाले राहुल यादुका, अनुपम मिश्र पर्यावरण पत्रकारिता सम्मान प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार अमर नाथ झा, कोशी नव निर्माण मंच के संस्थापक और नदी घाटी मंच के राष्ट्रीय संयोजक मंडल के सदस्य महेन्द्र यादव, लेखक पुष्पराज ने बलान नदी के मुद्दे की सैद्धांतिक व्याख्या की। विषय प्रवेश मनोरंजन ने किया, वहीं अध्यक्षता रामानंद सहनी, संचालन प्रभात कुमार और धन्यवाद ज्ञापन प्रेमी सहनी ने किया। आयोजन में भगवानपुर, बछवाड़ा प्रखंड के अनेक गांव के सैकड़ों लोग सहभागी हुए।

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