पक्षियों के संरक्षण के लिए देश का चौथा रिंगिग स्टेशन भागलपुर में, अब विलुप्त मान ली गई प्रजातियां भी आने लगी हैं नजर

बिहार में पहला सुंदरवन में तीन दिवसीय बर्ड फेस्टिवल का आयोजन किया गया है, जिसमें पक्षियों के संरक्षण को लेकन कई अहम जानकारियां दी जा रही हैं...

Update: 2020-12-12 17:17 GMT

पक्षियों के संरक्षण के बारे में आयोजित कार्यशाला का एक दृश्य।

जनज्वार। पक्षियों की कोई सीमा नहीं होती। सैकड़ों मील की दूरी तय कर प्रवासी पक्षी एक देश से दूसरे देश जाते हैं। अपना प्रवास बनाते हैं। ये बातें डीएफओ एस सुधाकर ने कही। सुधाकर शुक्रवार को सुंदरवन स्थित अरण्य वन में तीन दिवसीय भागलपुर बर्ड फेस्टिवल को संबोधित कर रहे थे। बिहार में पहली बार तीन दिवसीय बर्ड फेस्टिबल का आयोजन भागलपुर में किया जा रहा है, जो 11 से 13 दिसंबर चक चलेगा।

उन्होंने कहा कि प्रवासी पक्षियों को बचाना सबकी जिम्मेदारी है। इस मौके पर मंदार नेचर क्लब के संस्थापक अरविंद मिश्रा ने कहा कि प्रवासी पक्षियों को बचाने के लिए सामुदायिक पहल करनी होगी। लोगों को जागरूक करना होगा। मंदार नेचर क्लब सामुदायिक जागरूकता की पहल करता है। क्लब का मानना है कि प्रवासी पक्षियों को तब ही बचाया जा सकता है, जब स्थानीय लोगों में जागरूकता हो। लोग पक्षियों को जानें, समझें। पक्षी पयार्वरण के मित्र हैं। उन्होंने बताया कि इको टूरिज्म का विकास होना चाहिए। कदवा क्षेत्र में स्थानीय लोगों का समूह बनाया गया है, जो पक्षियों के संरक्षण का काम करते हैं। उन्हें समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता है। आज कदवा क्षेत्र गुरूढ के पहचान के लिए जाना जाता है। देश में ही नहीं विदेशों में भी कदवा की पहचान है। इस मौके पर बीएनएचएस के वैज्ञानिक डॉ सुब्रतो देवब्रत पक्षियों की पहचान व उनके व्यवहार का अध्ययन करने की तकनीक के बारे में बताया। लोगों ने उनसे कई सवाल भी पूछे।

गंगा में पक्षी विहार केंद्र वैज्ञानिकों ने किया अवलोकन

दूसरे दिन यानी शनिवार को बर्ड रेस प्रतियोगिता आयोजित की गई, इसमें शामिल छह टीम गंगा किनारे स्थित अलग.अलग पक्षी विहार केंद्रों पर गई। इस दौरान अधिकतम पक्षियों का ऑब्जर्वेशन करने वाली टीम को विजेता घोषित करने का कार्यक्रम रखा गया था। तीसरे दिन रविवार को बर्ड फेस्टिवल का समापन होगा। इस मौके पर ई.बर्ड एप के जरिये चिड़ियों की रिपोर्टिंग करने की जानकारी, समूह प्रस्तुतीकरण, अनुभव का आदान-प्रदान व भागलपुर का पक्षियों के संरक्षण में योगदान पर आधारित परिचर्चा होगी और अंत में पुरस्कार वितरण किया जायेगा।

रिंगिग स्टेशन भागलपुर में

देश में चौथा और बिहार में पहला रिंगिग स्टेशन भागलपुर में बनाया गया है। देश में तमिलनाडु, राजस्थान, ओडिशा के बाद बिहार के भागलपुर में बनाया गया है। रिंगिंग स्टेशन सेंटर सुंदरवन से संचालित किया जा रहा है। यह बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के तहत संचालित होता है। रिंगिंग के जरिये वैज्ञानिक अब पक्षियों की पल-पल की जानकारी रख पायेंगे। इससे पक्षियों के स्वभाव, प्रवास सहित कई जानकारी वैज्ञानिकों को मिलेगी। पक्षियों को प्रवास सुरक्षित हो सके इसके लिए लोगों को जानकारी मिल सकेगी। रिंगिंग का तात्पर्य पक्षियों में लोहे के रिंग लगाकर ट्रांसमीटर लगाना है। इससे पक्षी जहां भी जायेंगे, रिंगिंग स्टेशन को जानकारी मिलते रहेगी।

कई विलुप्त पक्षी भी आ रहे हैं नजर

सुंदरवन में कार्यशाला में वैज्ञानिकों ने बताया कि कई विलुप्त पक्षी भी नजर आ रहे हैं। अमूमन जिन पक्षियों को वैज्ञानिक विलुप्त मान चुके हैं, वह विलुप्त नहीं, बल्कि उनके बारे में जानकारी नहीं मिल पाना है। दुनिया मेें विलुप्त मान कार बुलेक्रेमेन क्रेन ;क्रेन यानी सारस की एक प्रजाति, वर्ष 2018 में लद्दाख में देखा गया।

जमुई में मिल रहे हैं विलुप्त माइग्रेटेड बर्ड

वर्ष 2018 में इसी तरह की एक विलुप्त मान कर चले पक्षी को जमुई के चकाई में एक छोटे तालाब में देखा गया। वैज्ञानिकों को आशा है कि कई पक्षी हमारे आसपास वाले दियारा में भी हैं।

बिहार में 425 से ज्यादा प्रजाति के हैं पक्षी

बिहार में 425 से ज्यादा प्रजाति के पक्षी निवास करते हैं। इसमे सबसे ज्यादा पक्षी विक्रमशिला क्षेत्र, सुलतानगंज, नवगछिया के दियारा क्षेत्रों में आते हैं। यानी बिहार में 33 प्रतिशत पक्षियों का निवास स्थल है।

रांची के धुर्वा डैम में देखे गये हैं विलुप्त फाल्केटेड डक

विलुप्त मान चुके फाल्केटेड डक को भारत में देखा गया है। यह डक रांची के धुर्वा डैम में जलक्रीड़ा करते हुए देखा गया। यह छह दिसंबर 2020 को रांची के धुर्वा डैम में देखा गया है।

बिहार में 21 नदी होती हैं प्रवाहित जो हैं पक्षियों की शरणस्थली

बिहार जैव विविधता के मामले में धनी प्रदेश है। यहां 21 से ज्यादा नदियां प्रवाहित होती हैं। इस कारण हजारों पक्षियों का यह क्षेत्र शरणस्थली है। भागलपुर, पूर्णिया, सुपौल, किसनगंज, फारबिसगंज सहित कई जिलों में नदी वृहद रूप लेती है। जब इन नदियों में पानी कम होता है तो दियारा क्षेत्र में पक्षियों की शरणस्थली बन जाती है।

मंगोलिया व साइबेरिया से आते हैं दियारा में प्रवासी पक्षी

विक्रमशिला गांगेटिक डॉल्फीन अभ्यारण्य, कदवा पक्षी शरणस्थली केंद्र व जगतपुर पक्षी शरणस्थली केंद्र के रूप में जाने जाना लगा है। यहां मंगोलिया व साइबेरिया से पक्षी निवास करने आते हैं। जब ये पक्षी आकाश में उड़ते हैं तो इनकी उंचाई 33000 फुट से भी ज्यादा में उंचाई पर उड़ान भरते हैं, जबकि एक हवाई जहाज मात्र 30000 की फुट पर उंचाई पर उड़ान भरते हैं।

11000 मील का सफर तय करके आते हैं पक्षी

आट्रेकेन नामक पक्षी 11000 मील की दूरी का सफर तय कर भारत आते हैं। इस तरह के कई पक्षी हैं जो मीलों सफर तय करने में माहिर हैं।

तैरने के क्रम में साेते हैं डॉल्फीन

गंगा में डॉल्फीन अपने तैरने के क्रम में अपनी नींद पूरा कर लेते हैं। यह खोज वैज्ञानिकों ने की है। बिहार में डॉल्फीन सुलतानगंज से कहलगांव तक अक्सर देखे जाते हैं। वैज्ञानिक इस पर कई शोध कर रहे हैं।

विश्व में दस हजार से ज्यादा प्रजाति के हैं पक्षी रू दुनिया में 10 हजार से ज्यादा प्रजाति के पक्षी हैं लेकिन अवैध शिकार होने के कारण ये प्रवासी पक्षियों का आना कम हो गया है। 1800 से ज्यादा प्रवासी प्रजाति हैं जो एक देश से दूसरे देश में आते हैं और अपना घोंसला बनाते हैं। यह भारतवासियों के लिए गर्व की बात है कि 2300 से ज्यादा प्रजाति भारत में निवास करते हैं। पूरी पक्षी प्रजाति का यह 2.3 प्रतिशत है।

(भागलपुर से जयंत की रिपोर्ट)

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