सदी के अंत तक धरती का तापमान बढ़ जायेगा 3.7 डिग्री सेल्सियस, एक-तिहाई क्षेत्रों में खेती करना असंभव

दुनिया में जितने क्षेत्र में खेती की जा रही है, उसमें से 98 प्रतिशत खेती ऐसे जगहों पर की जा रही है, जहां की जलवायु कृषि उत्पादन के अनुरूप है, पर ग्रीनहाउस गैसों के निर्बाध उत्सर्जन के कारण तापमान बढ़ता जा रहा है और वर्षा भी असामान्य होती जा रही है....

Update: 2021-05-18 05:12 GMT

अभी के बदलते पर्यावरण के कारण खेती मुश्किल होती जा रही है, वैसे तापमान का बढ़ना मानवता पर संकट बनेगा

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। इस समय विश्व की आबादी लगभग 8 अरब है और वर्ष 2100 तक इसके 11 अरब से अधिक होने का अनुमान है। जाहिर है, अधिक आबादी का पेट भरने के लिए अधिक खाद्यान्न की जरूरत पड़ेगी। दुनिया में पिछले कुछ वर्षों से शाकाहारी बनाने का चलन भी बढ़ा है, तो जाहिर है आगे कृषि की पैदावार पर निर्भरता अधिक होगी।

पिछले कुछ वर्षों से अनेक अध्ययन भविष्य में कृषि का एक निराशाजनक स्वरुप बताते रहे हैं। इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि है। हालांकी अब तक यह भी स्पष्ट हो चुका है कि बहुत सारे लाभदायक कीट-पतंगे जो खेती की पैदावार बढ़ने में सहायक थे, अब उनकी संख्या कम होने लगी है।

फ़िनलैंड स्थित आल्टो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए अध्ययन से यह पता चला है कि यदि वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का मिलना वैसे ही जारी रहा जैसे आज हो रहा है, तब वर्ष 2100 तक कृषि उत्पादकता में एक-तिहाई की कमी हो जायेगी। अध्ययन के मुख्य लेखक मत्ती कुम्मु के अनुसार आज के दौर में दुनिया में जितने क्षेत्र में खेती की जा रही है, उसमें से 98 प्रतिशत खेती ऐसे जगहों पर की जा रही है, जहां की जलवायु कृषि उत्पादन के अनुरूप है। पर ग्रीनहाउस गैसों के निर्बाध उत्सर्जन के कारण तापमान बढ़ता जा रहा है और वर्षा भी असामान्य होती जा रही है। ऐसे में इस शताब्दी के अंत तक एक-तिहाई कृषि क्षेत्रों में खेती करना कठिन हो जाएगा। अभी वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का जितना उत्सर्जन किया जा रहा है, उसके कारण इस शताब्दी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 3.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा, और एक-तिहाई क्षेत्रों में खेती करना असंभव हो जाएगा।

यह शोधपत्र वन अर्थ नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। मुख्य लेखक मत्ती कुम्मु के अनुसार यदि दुनिया जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित पेरिस समझौते के तहत वर्ष 2100 तक पृथ्वी के तापमान की बढ़ोत्तरी 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक रोकने में सफल हो जाती है, तब महज 5 से 8 प्रतिशत कृषि क्षेत्र की उत्पादकता पर असर पड़ेगा, पर इसकी संभावना कहीं नजर नहीं आ रही है। सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और सहारा रेगिस्तान के इलाके के अफ्रीकी देश हैं।

इस अध्ययन के अनुसार कृषि उत्पादकता का असर मवेशियों पर भी पड़ेगा, क्योंकि उनके भी चारे और भोजन में कमी हो जायेगी। इस अध्ययन में दुनिया की 27 मुख्य फसलों और 7 मुख्य मवेशियों पर तापमान बृद्धि का विश्लेषण किया गया है। खेती पर जलवायु परिवर्तन का असर अनेक तरीके से पड़ने वाला है। तापमान बृद्धि के कारण मरूभूमि का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। अनुमान है कि इस शताब्दी के अंत तक दुनिया में मरूभूमि का क्षेत्र वर्तमान की तुलना में 40 लाख वर्ग किलोमीटर बढ़ चुका होगा, यानद इस क्षेत्र में खेती की सारी संभावनाएं ख़त्म हो जायेंगी।

दूसरी तरह मानव श्रम और संसाधनों के उपयोग की तुलना में दुनियाभर में कृषि उत्पादकता गिर रही है। इन सब समस्याओं के बीच जल की उपलब्धता दुनियाभर में कम होती जा रही है, जिससे खेती प्रभावित हो रही है। मुख्य लेखक मत्ती कुम्मु के अनुसार ऐसा नहीं है कि दुनियाभर में खेती की उत्पादकता में कमी होगी, तापमान वृद्धि के साथ पृथ्वी के ध्रुवों के पास बसे देशों में जहां बहुत ठंडक के कारण खेती नहीं की जा सकती, वहां खेती होने लगेगी। पर खेती की यह बृद्धि एशिया और अफ्रीका में होने वाली कमी की तुलना में मामूली होगी और समग्र तौर पर दुनिया में कृषि उत्पादकता में कमी ही होगी।

सितम्बर 2018 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक पश्चिमी अफ्रीका के देशों में अनाज की उत्पादकता में 2.9 प्रतिशत और भारत में 2.6 प्रतिशत तक की कमी होगी, जबकि कनाडा और रूस में इनमें क्रमशः 2.5 और 0.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी।

इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक दुनिया की आबादी 11 अरब तक पहुँच जायेगी और दुनिया में फसलों की पैदावार कम होने से भूखे लोगों की आबादी भी बढ़ेगी। वर्ष 2000 से 2010 के आंकड़ों के अनुसार दुनिया के सन्दर्भ में प्रति व्यक्ति प्रत्येक दिन 7322 किलोजूल ऊर्जा प्राप्त करता है और इसमें से 66 प्रतिशत से अधिक गेहूं, चावल, मोटे अनाज और आयल पाम से प्राप्त होता है। तापमान वृद्धि के कारण वर्ष 2030 तक चावल, गेंहू, मक्का और ज्वार की उत्पादकता में 6 से 10 प्रतिशत तक की कमी होगी।

दुनियाभर में 10 फसलें ऐसी हैं, जिनसे मानवजाति 83 प्रतिशत कैलोरी प्राप्त करती है। ये फसलें हैं – जौ, कसावा, मक्का, आयल पाम, रेपसीड, चावल, जई, सोयाबीन, गन्ना और गेहूं। प्लोस वन नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार इन सभी फसलों का उत्पादन जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि से प्रभावित हो रहा है, पर यह प्रभाव दुनिया के हरेक क्षेत्र में एक समान नहीं है। बहुत ठंडे प्रदेश में उत्पादन कुछ हद तक बढ़ रहा है, जबकि गर्म इलाकों में यह घट रहा है। यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेसोटा, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड और यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोपेनहेगेन के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने किया है।

Tags:    

Similar News