हरियाली से दूर होते बच्चे घिर रहे मानसिक तनाव से और इसका असर पड़ रहा उनकी बौद्धिक क्षमता पर

हरे-भरे माहौल में रहने वाले बच्चे ज्यादा ध्यान केन्द्रित करने में सक्षम होते हैं और जल्दी सीखते हैं, ऐसे बच्चे अध्ययन में, विशेष तौर पर गणित में, उन बच्चों से तेज होते हैं जो हरे-भरे वातावरण में नहीं रहते, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लन्दन की ईरिनी फ्लोरी की अगुवाई में किये गए इस अध्ययन में 11 वर्ष की उम्र के 4768 बच्चों को शामिल किया गया था.....

Update: 2023-07-08 14:26 GMT

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

The drawings done by children reveal that they have only partial knowledge of ecosystem. बच्चों के बनाए चित्रों से समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक समय-समय पर बहुत सारी जानकारियाँ निकालते रहे हैं। हाल में ही एक अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि बच्चों से जब स्थानीय जंतुओं के चित्र बनाने को कहा जाता है तब अधिकतर चित्रों में स्तनपाई जंतुओं और पक्षियों की भरमार रहती है, पर अन्य जंतु लगभग नदारद रहते हैं। इसके दो निष्कर्ष हैं – पहला तो यह कि बच्चों को पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में पूरी जानकारी नहीं दी जाती है, और दूसरा यह कि शहरों के परिवेश में अन्य जंतु इतने नगण्य रह गए हैं कि बच्चे इन्हें देख ही नहीं पाते।

यह अध्ययन यूनाइटेड किंगडम में 7 से 11 वर्ष के बीच के 401 स्कूली छात्रों पर किया गया है, जिन्हें स्थानीय वन्यजीव, यानि पार्कों, लॉन और किचेन गार्डन में दिखने वाले वन्यजीवों, पर चित्र बनाने को कहा गया था। इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैंब्रिज की समाजशास्त्री केट होलेट और एडगर टर्नर ने किया है, और इसे प्लोस वन नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन में हिस्सा ले रहे, 80 प्रतिशत से अधिक बच्चों ने गिलहरी, चूहे, बिल्ली, कुत्ते और खरगोश जैसे स्तनपाई जंतुओं का चित्र बनाकर उनका नाम भी लिखा।

कुल चित्रों में से 69 प्रतिशत चित्रों में स्थानीय पक्षियों के चित्र थे, इसके बाद सख्या में कीटों और दूसरे रीढधारी जंतुओं के चित्र थे। सबसे कम संख्या में, महज 16 प्रतिशत चित्रों में, उभयचर और सरीसृप जंतु थे। हालां कि बच्चों को चित्रों में पेड़ों और झाड़ियों का चित्र बनाने को नहीं कहा गया था, पर 91 प्रतिशत से अधिक चित्रों में पेड़-पौधे बनाए गए थे।

केट होलेट और एडगर टर्नर के अनुसार इस अध्ययन से एक निष्कर्ष तो स्पष्ट है कि स्कूली शिक्षा में पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का समन्वित अध्ययन शामिल नहीं है। दूसरा निष्कर्ष यह है कि शहरों में वन्यजीवन समाप्त हो रहा है, इसलिए बच्चे वन्यजीवन की बहुत ही सीमित जानकारी रखते हैं। अनेक दूसरे अध्ययन पूरी दुनिया के शहरों या बस्तियों से विलुप्त होते कीट-पतंगों और अन्य जीवों की ओर इशारा करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार जो बच्चे आज तमाम जंतुओं को नहीं देख रहे हैं, उनसे अनजान हैं – जाहिर है भविष्य में ऐसे जीवों को बचाने की सार्थक पहल नहीं कर पायेंगे।

इससे पहले यूरोप के अनेक देशों, कनाडा और अमेरिका में किये गए एक विस्तृत अध्ययन के अनुसार शहरों का हरा-भरा क्षेत्र तेजी से कम हो रहा है, पार्कों की संख्या कम हो रही है – जाहिर है बच्चों के लिए हरियाली की उपलब्धतता कम हो रही है और बच्चे हरियाली से अपने आप को नहीं जोड़ पा रहे हैं। हरियाली से दूर होते बच्चों बौद्धिक क्षमता प्रभावित हो रही है।

ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ एजुकेशनल साइकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार हरे-भरे माहौल में रहने वाले बच्चे ज्यादा ध्यान केन्द्रित करने में सक्षम होते हैं और जल्दी सीखते हैं। ऐसे बच्चे अध्ययन में, विशेष तौर पर गणित में, उन बच्चों से तेज होते हैं जो हरे-भरे वातावरण में नहीं रहते। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लन्दन की ईरिनी फ्लोरी की अगुवाई में किये गए इस अध्ययन में 11 वर्ष की उम्र के 4768 बच्चों को शामिल किया गया था जो ब्रिटेन के शहरी क्षेत्रों से थे।

शहरों की हरियाली और इसमें पनपने वाले वन्यजीवों के सन्दर्भ में विकासशील देशों के शहरों की स्थिति विकसित देशों की तुलना में बहुत खराब है। शहरों में प्रकृति से नजदीकी का एहसास केवल हरियाली वाले क्षेत्रों से होता है, पर अब यह क्षेत्र सिकुड़ते जा रहे हैं और बेतरतीब विकास की बलि चढ़ रहे हैं। शहरी हरे क्षेत्र बड़ी आबादी को साफ़ हवा और भूजल संरक्षण जैसी सुविधाएं देते हैं और उन्हें स्वस्थ्य रखने में सहयोग देते हैं, फिर भी शहरी क्षेत्रों की हरियाली का आधार स्थानीय अर्थव्यवस्था है।

नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों के शहरों में एक-तिहाई आबादी को ही हरे-भरे क्षेत्रों की सुविधा मिली है, और विकासशील देशों के शहरों में हरियाली का क्षेत्र आधे से भी कम है।

चाइल्ड इंडीकेटर्स रिसर्च नाम जर्नल में वर्ष 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार हरे-भरे परिवेश से दूर रहने वाले बच्चों को हरियाली वाले स्थानों पर उन्मुक्तता का अहसास होता है और ऐसे परिवेश में बच्चे तनाव से दूर और खुश रहते हैं। इस अध्ययन को एंग्लिया रस्किन यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्रियों ने किया था। जाहिर है, बच्चे पूरी दुनिया में हरियाली से दूर होते जा रहे हैं और मानसिक तनाव से घिरते जा रहे हैं। इसका असर उनकी बौद्धिक क्षमता पर भी पड़ रहा है।

Tags:    

Similar News