विज्ञान और अनुसंधान में चीन का बढ़ता दबदबा -भारत में सरकारें गिना रहीं गौमूत्र के फायदे और काढ़े से रोगमुक्ति
प्रभावी शोधपत्रों की सूची में भारतीय वैज्ञानिक कहीं नहीं हैं, हमारे देश में कोई वैज्ञानिक माहौल ही नहीं है, वैज्ञानिक संस्थानों से विज्ञान गायब हो चुका है और इसके बदले सरकार भक्ति और धार्मिक माहौल बन गया है....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
China has overtaken US in respect of citation of research papers. वैज्ञानिक अनुसंधान के सन्दर्भ में वैज्ञानिक शिक्षा और अनुसंधान पर किया जाने वाला सरकारी खर्च, वैज्ञानिक जागरूकता वाले छात्र, केवल विज्ञान पर केन्द्रित वैज्ञानिक संस्थान, विज्ञान में बेहतर गुणवत्ता वाली शिक्षा, वैज्ञानिक शोध पत्रों की संख्या और गुणवत्ता का बहुत महत्व है। अब तक इनमें से लगभग सभी पैमाने पर दुनिया के देशों में अमेरिका सबसे आगे था, पर शोधपत्रों की संख्या और गुणवत्ता के सन्दर्भ में चीन ने अमेरिका को पछाड़ दिया है।
शोधपत्रों की गुणवत्ता का पैमाना इन्हें सन्दर्भ में शामिल किया जाना और इनका व्यापक उल्लेख किया जाना होता है, जिसे अंग्रेजी में साइटेशन कहा जाता है। हाल में ही जापान के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी पालिसी (Japan's National Institute of Science & Technology Policy) द्वारा किये गए एक एक अध्ययन के अनुसार सन्दर्भ के मामले में सबसे आगे चीन के वैज्ञानिकों द्वारा लिखे गए शोधपत्र हैं, और अमेरिका दूसरे स्थान पर पहुँच गया है। शोधपत्रों की कुल संख्या के सन्दर्भ में वर्ष 2016 में ही चीन अमेरिका से आगे निकल गया था।
जापान के संस्थान ने वर्ष 2018 से 2020 के बीच सबसे अधिक उद्धृत किये जाने वाले शोधपत्रों के सबसे ऊपर के 1 प्रतिशत शोधपत्रों का विस्तृत अध्ययन किया। इस सूचि में ही नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिकों के साथ ही दुनिया में सबसे प्रभावी शोधपत्र लिखने वाले वैज्ञानिक शामिल रहते हैं। इस सूचि में कोई भारतीय वैज्ञानिक शामिल नहीं है। इन शोधपत्रों के लेखकों के नामों की सूचि उनके देश के साथ बनाई गयी। सबसे प्रभावशाली शोधपत्रों में एक समस्या यह रहती है कि ये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, यानि कई देशों के वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त तौर पर लिखे जाते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए एक नया तरीका खोजा गया – यदि किसी शोधपत्र को फ्रांस के एक और स्वीडन के तीन वैज्ञानिकों ने लिखा है तब फ्रांस को एक अंक और स्वीडन को तीन अंक दिए गए।
इस तरीके को फ्रैक्शनल काउंटिंग कहा जाता है। इस तरीके से वर्ष 2018 से 2020 तक के सभी शोधपत्रों के वैज्ञानिक समुदाय द्वारा उल्लेख करने या उद्धरण लेने के सन्दर्भ में सबसे आगे चीन के वैज्ञानिकों के शोधपत्र रहे। जापान के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी पालिसी के आकलन के अनुसार सभी उद्धृत शोधपत्रों में से 27.2 प्रतिशत चीन के वैज्ञानिकों के थे, अमेरिका के वैज्ञानिकों के 24.9 प्रतिशत और तीसरे स्थान पर यूनाइटेड किंगडम के वैज्ञानिक 5.5 प्रतिशत के साथ रहे। इस क्रम में जापान का स्थान दसवां है। इन आंकड़ों से इतना तो स्पष्ट है कि दुनिया में शोधपत्रों के सन्दर्भ में चीन और अमेरिका दूसरे सभी देशों से बहुत आगे हैं।
दो दशक पहले इस सन्दर्भ में चीन का स्थान दुनिया में 13वां था, पर इसके बाद चीन ने निश्चित तौर पर विज्ञान के क्षेत्र में बहुत विकास कर लिया है। पहले वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक समुदाय चीन के वैज्ञानिकों को कमतर आंकता था, और धारणा यह थी कि चीन के वैज्ञानिक शोधपत्र तो भारी संख्या में प्रकाशित करते हैं, पर उनमें गुणवत्ता की कमी होती है। कहा जाता था कि चीन में वैज्ञानिकों की पदोन्नति केवल शोधपत्रों की संख्या के आधार पर की जाती है, इनकी गुणवत्ता नहीं परखी जाती, पर चीन के वैज्ञानिकों ने यह धारणा भी बदल दी।
यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जब जापान के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी पालिसी ने दूसरे अध्ययन में एक ही शोधपत्र को लिखने वाले वैज्ञानिकों के देश को ही आधार बनाया, उनकी संख्या को नहीं, तब पहले स्थान पर अमेरिका और दूसरे स्थान पर चीन रहा। अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन ने जनवरी 2022 में द स्टेट ऑफ़ यूएस साइंस एंड इंजीनियरिंग नामक रिपोर्ट में बताया है कि शोधपत्रों के उद्धरण के सन्दर्भ में अमेरिका चीन की तुलना में कुछ आगे है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पूर्वानुमानों की तुलना में अमेरिका के वैज्ञानिक ऐसे दुगुने शोधपत्र प्रकाशित करते हैं, जबकि चीन के वैज्ञानिक पूर्वानुमान से 20 प्रतिशत अधिक अत्यधिक उद्धृत करने वाले शोधपत्र लिखते हैं। वर्ष 2019 में वाग्नेर ने साइन्टोमेट्रिक्स (scientometrics) नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया था कि उद्धरण के सन्दर्भ में चीन और अमेरिका लगभग बराबर हैं। वर्ष 2020 में वाग्नेर ने ही एक दूसरे अध्ययन में बताया कि चीन के वैज्ञानिकों के शोधपत्र बेहतर, प्रभावी और अनुसंधानपरक होते हैं।
प्रभावी शोधपत्रों की सूचि में भारतीय वैज्ञानिक कहीं नहीं हैं। दरअसल हमारे देश में कोई वैज्ञानिक माहौल ही नहीं है। वैज्ञानिक संस्थानों से विज्ञान गायब हो चुका है और इसके बदले सरकार भक्ति और धार्मिक माहौल बन गया है। यहाँ विज्ञान अनुसंधान के नाम पर सरकारें गौ-मूत्र से फायदे, गायों में ईश्वर का वास, काढ़े से रोगमुक्ति, वेदों में विज्ञान और मन्त्रों से चिकित्सा जैसे विषयों पर खजाने लुटा रही है। हमारे प्रधानमंत्री ही स्वयं को सबसे बड़ा वैज्ञानिक मानते हैं, और वैज्ञानिक विज्ञान छोड़कर सरकार-भक्ति के नए तरीके इजाद कर रहे हैं।