स्मार्ट शहरों के नारों के बीच पर्यावरण की दृष्टि से सबसे खतरनाक हो गए शहर

भारत में पहले पर्यावरण सुधारने के जो कदम उठाये गए हैं, उनका कहीं असर नहीं दिखता और भारत में जनता भी पर्यावरण के सन्दर्भ में उदासीन है...

Update: 2021-05-16 16:06 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

अपने देश में प्रधानमंत्री मोदी के प्रधानमंत्री बनाने के बाद से स्मार्ट शहरों के खूब सब्जबाग दिखाए गए, खूब नारे लगे और पैसे भी खर्च किये गए। पर, बीजेपी सरकार की परंपरा के अनुरूप स्मार्ट शहर नारे और विज्ञापनों में ही सिमट गए, अब तो कोई इसकी चर्चा भी नहीं करता है। अलबत्ता हमारे देश के शहर पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, प्राकृतिक आपदाओं और पानी की किल्लत के सन्दर्भ में दुनिया के अन्य शहरों की अपेक्षा अधिक खतरनाक हो गए। जाहिर है, न्यू इंडिया के तथाकथित स्मार्ट शहर दरअसल पर्यावरण के सन्दर्भ में सबसे अधिक संकटग्रस्त होते चले गए। पर्यावरण के लिहाज से दुनिया के सबसे अधिक 100 खतरनाक देशों में 99 एशिया में हैं, और इनमें सबसे अधिक यानि 43 शहर अकेले भारत में हैं। दुनिया के सबसे अधिक खतरनाक 20 देशों में से 13 भारत में हैं।

पर्यावरण के सन्दर्भ में सबसे खतरनाक शहर इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता है। यहाँ वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, अत्यधिक गर्मी, बाढ़ की समस्या है और यह शहर तापमान वृद्धि के प्रभावों के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है। जकार्ता में भूजल का दोहन इस हद तक किया गया है कि इसे दुनिया का सबसे तेजी से डूबने वाला शहर बताया जाता है। दूसरे स्थान पर दिल्ली है, तीसरे स्थान पर चेन्नई है, छठे स्थान पर आगरा, दसवें स्थान पर कानपुर, 22वें स्थान पर जयपुर, 24वें स्थान पर लखनऊ और 27वें स्थान पर मुंबई है।

इस सूची में पहले 100 शहरों में केवल पेरू की राजधानी लिमा ऐसा शहर है, जो एशिया में नहीं है। पर्यावरण की दृष्टि से सबसे खतरनाक 100 शहरों में 43 भारत में हैं और भारत के बाद सबसे अधिक 37 शहर चीन में हैं। इस रिपोर्ट को बिज़नस रिस्क का विश्लेषण करने वाली कंपनी वेरिस्क मेपलक्रॉफ्ट ने तैयार किया है। इसके मुख्य लेखक विल निकोलस के अनुसार भारत और चीन में एक बड़ा अंतर है। भारत में भविष्य की योजनाओं में पर्यावरण सुधारने के मुद्दे शामिल नहीं हैं तो जाहिर है इस और सरकारों का ध्यान नहीं है, प्राथमिकता भी नहीं है।

भारत में पहले पर्यावरण सुधारने के जो कदम उठाये गए हैं, उनका कहीं असर नहीं दिखता और भारत में जनता भी पर्यावरण के सन्दर्भ में उदासीन है। दूसरी तरफ चीन ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान अपने शहरों में पर्यावरण पर लगातार ध्यान दे रहा है और इसके नतीजे भी जमीनी स्तर पर दिख रहे हैं। चीन में तेजी से बढ़ता माध्यम वर्ग अब जोर शोर से साफ़ हवा और पानी की मांग करने लगा है, और यह मांग सरकार की हरेक योजना और हरेक पहल में स्पष्ट होता है। चीन में सरकारें किसी बहुत प्रदूषणकारी उद्योब को बंद करने से नहीं हिचकतीं, जबकि भारत में ऐसे उद्योग लगातार चलते रहते हैं।

बिज़नेस रिस्क का विश्लेषण करने वाली कंपनी वेरिस्क मेपलक्रॉफ्ट के अनुसार यह विश्लेषण दुनियाभर की सरकारों को पर्यावरण के बारे में आगाह करता है और अपना कारोबार बढाने और निवेश के सन्दर्भ में बहुत अधिक पर्यावरण संबंधी समस्याओं वाले शहर में कारोबार करने के लिए आगाह करता है। दुनियाभर के शहरों में लगभग 50 प्रतिशत आबादी रहती है और शहर देशों के अर्थव्यवस्था का आधार हैं। अब कारोबार करने या इसे बढाने के पहले अधिकतर कम्पनियां स्थानीय पर्यावरण पर ध्यान देती हैं और यह भी परखती हैं कि जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों के लिए शहर कितने तैयार हैं।

इस विश्लेषण में दुनिया के 576 शहरों का विश्लेषण किया गया और 414 शहर ऐसे हैं जहां पर्यावरण की समस्या गंभीर है। इन 414 शहरों की सम्मिलित आबादी लगभग 1.4 अरब है। इस विश्लेषण के लिए जानलेवा प्रदूषण, घटते जल संसाधन, तापमान बृद्धि, प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की क्षमता और जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता का विश्लेषण किया गया।

पर्यावरण की दृष्टि से सबसे खतरनाक क्रम से एशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका है। वायु प्रदूषण से प्रभावित सबसे अधिक शहर भारत में हैं, पर जल संकट से जूझते शहरों में सबसे अधिक शहर चीन से हैं। जल प्रदूषण के सन्दर्भ में सबसे प्रदूषित 50 शहरों में से 35 चीन के हैं और जल संकट के सन्दर्भ में 15 सर्वाधिक प्रभावित शहरों में से 13 चीन में हैं। जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के सन्दर्भ में समसे प्रभावित शहर अफ्रीका में सहारा रेगिस्तान के इर्द-गिर्द बसे हैं। ऐसे 45 सर्वाधिक प्रभावित 45 शहरों में से 40 इस क्षेत्र में हैं। यूरोप के अधिकतर देश पर्यावरण के सन्दर्भ में सबसे सुरक्षित हैं।

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