Climate Change: वर्ष 2021 पृथ्वी पर पांचवां सबसे गर्म और महासागरों का सबसे गर्म वर्ष
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महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
Climate Change: यूरोपियन क्लाइमेट एजेंसी, कॉपरनिकस, (European Climate Agency Copernicus) के अनुसार पृथ्वी के तापमान की वैज्ञानिक माप के बाद से वर्ष 2021 पांचवां सर्वाधिक गर्म वर्ष रहा है, और पिछले सात वर्ष सबसे गर्म सात वर्ष रहे हैं| यह हालत तब दर्ज की गयी, जबकि पिछले वर्ष पृथ्वी को ठंढा रखने वाला लानीना (La Nina) अत्यधिक प्रभावकारी था| वर्ष 2000 से 2021 तक के वर्ष तापमान के आकलन के बाद से 22 सबसे गर्म वर्षों में शुमार रहे हैं| जाहिर है, तमाम अंतरराष्ट्रीय समझौतों के बाद भी तापमान बढ़ने की दर लगातार जारी है| वर्ष 2021 तक पृथ्वी के औसत तापमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हो चुकी है, जबकि पेरिस समझौते के तहत इस शताब्दी के अंत तक तापमान बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है|
इस स्थिति में पेरिस समझौते के तहत रखा गया 1.5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बृद्धि का लक्ष्य बेतुका लगता है क्योंकि वर्ष 2021 में कोविड 19 के असर के बाद भी वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन (emission of greenhouse gases) में कोई कमी नहीं आंकी गयी, और बृद्धि दर वर्ष 2021 के बाद से लगातार एक जैसी ही रही है| पिछले वर्ष वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) की औसत सांद्रता 414 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन, Parts per Million) के रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच गयी, जबकि पूर्व-औद्योगिक काल (Pre-industrial era) में इसकी सांद्रता 280 पीपीएम थी| दूसरी प्रमुख ग्रीनहाउस गैस, मीथेन (Methane), की वायुमंडल में उत्सर्जन दर एक दशक के भीतर ही तीन गुना बढ़ चुकी है| इन सभी आंकड़ों से इतना तो स्पष्ट है कि वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के कोई भी प्रभावी कदम नहीं उठाये जा रहे हैं|
एडवांसेज इन एटमोस्फियरिक साइंसेज (Advances in Atmospheric Sciences) नामक जर्नल के नए अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार सभी महासागरों के ऊपरी 2000 मीटर के हिस्से (Top 2000 meter layer of oceans) का तापमान पिछले वर्ष जितना दर्ज किया गया, उतना इससे पहले कभी नहीं मापा गया| इस अध्ययन को अमेरिका के कोलोराडो स्थित नेशनल सेंटर फॉर एटमोस्फियरिक रिसर्च (National Centre for Atmospheric Research at Colorado) के वैज्ञानिकों ने किया है| महासागरों के तापमान का यह रिकॉर्ड पिछले 6 वर्षों से लगातार ध्वस्त होता जा तरह है, यानि महासागर लगातार गर्म होते जा रहे हैं| इसका एकमात्र कारण मानव द्वारा ग्रीनहाउस गैसों का निर्बाध उत्सर्जन है, जिससे पृथ्वी और वायुमंडल गर्म हो रहा है. पिछले 50 वर्षों के दौरान इस तरह उत्पन्न अतिरिक्त गर्मी में से 90 प्रतिशत का अवशोषण महासागरों द्वारा किया जाता है, और वे गर्म होते रहते हैं|
महासागरों के तापमान का वैज्ञानिक परिमापन वर्ष 1955 से शुरू किया गया था| वर्ष 2021 में महासागरों के सबसे ऊपर के 2000 मीटर के हिस्से का उष्मामान 235 जेत्ताजूल्स (जेत्ता – 1021) था, जो वर्ष 2020 की तुलना में 14 जेत्ताजूल्स (Zetta joules) अधिक था| पढ़ने में 14 जेत्ताजूल, भले ही छोटी संख्या लगती हो, पर ऊष्मा की यह मात्रा दुनियाभर में पैदा की जाने वाली कुल बिजली द्वारा उत्पन्न ऊष्मा से 145 गुना अधिक है|
दुनियाभर में जितना कार्बन डाइऑक्साइड का वायुमंडल में उत्सर्जन होता है, उसमें से एक-तिहाई से अधिक महासागरों में अवशोषित होती है| इस कारण महासागरों का पानी अम्लीय होता जा रहा है| पानी के अम्लीय होने पर सबसे अधिक प्रभाव कोरल रीफ (Coral Reef) पर पड़ता है, जिसमें महासागरों में मिलने वाली कुल प्रजातियों में से एक-चौथाई से अधिक का आवास है, और दुनिया की 50 करोड़ से अधिक आबादी अपने भोजन के लिए इन्हीं प्रजातियों पर निर्भर करती है| महासागरों में मिलने वाली दूसरी प्रजातियाँ भी पानी की अम्लीयता से प्रभावित होती हैं|
महासागरों के गर्म होने के कारण भयंकर तूफ़ान, शक्तिशाली चक्रवातों और अत्यधिक बारिश की घटनाएं बढ़ जाती हैं, और पिछले कुछ वर्षों से ऐसा हो भी रहा है| वैज्ञानिकों के अनुसार तापमान बृद्धि का सबसे सीधा उदाहरण चरम प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती संख्या है, पर दुनियाभर की सरकारें इससे कोई सबक नहीं ले रही हैं| महासागरों का तापमान बढ़ने पर पानी का घनत्व कम होने लगता है, और इसका दायरा बढ़ता है| दायरा बढ़ने के कारण यह ग्रीनलैंड और दक्षिणी ध्रुव पर अपेक्षाकृत अधिक क्षेत्रों में फ़ैल रहा है, जिससे इन क्षेत्रों के बर्फ से ढके आवरण तेजी से पिघल रही है और अनुमान है कि इससे प्रतिवर्ष लगभग 1 खरब टन बर्फ पिघल कर महासागरों में मिल जाती है, और महासागरों का तल पहले से अधिक ऊँचा हो रहा है| महासागरों का तल उंचा होने के कारण सागर तटीय क्षेत्र धीरे-धीरे पानी में डूब रहे हैं|
वर्ल्ड इकनोमिक फोरम (World Economic Forum) ने जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि को मानव जाति के लिए 5 सबसे बड़े खतरों में शामिल किया है, और इसका अनुमान है कि यदि दुनिया ने इसके नियंत्रण के लिए शीघ्र और प्रभावी कदम नहीं उठाये तो जल्दी ही वैश्विक सकल घरेलु उत्पाद का छठा हिस्सा इससे होने वाले नुक्सान की भरपाई में ही खर्च हो जाएगा| वर्ल्ड एकोनिव फोरम ने यह चिंता भी व्यक्त की है कि कोविड 19 के प्रभाव से ग्रस्त दुनिया में अमीर और गरीब देशों के बीच का अंतर पहले से अधिक विकराल हो गया है, ऐसे में सबसे अधिक प्रभाव जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों पर ही पडेगा|