पेरिस की अदालत ने सरकार को ठहराया जलवायु परिवर्तन का जिम्मेदार, क्या भारत और अन्य देशों की कोर्ट कर पायेगी ये हिम्मत

वर्ष 1994 से 2017 के बीच तापमान बृद्धि के कारण दुनिया के कुल बर्फ के आवरण में 28 ट्रिलियन टन की कमी आंकी गई हैI प्रिथी के दोनों ध्रुवों और ऊंचे पहाड़ की चोटियों पर बर्फ का आवरण है जो तापमान बृद्धि के कारण लगातार नष्ट होता जा रहा है...

Update: 2021-02-06 18:12 GMT

कोरोना के साथ जलवायु संकट को दोहरी मार झेलता विश्व (file photo)

वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि की चर्चा फ्रांस की राजधानी पेरिस के बिना पूरी नहीं होतीI वर्तमान में जलवायु परिवर्तन को काबू में करने का जो अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, वह पेरिस समझौते के नाम से ही जाना जाता हैI इसी पेरिस की एक अदालत ने फ्रांस सरकार को जलवायु परिवर्तन नियंत्रित करने में नाकामयाब करार दिया है और कहा है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने की सभी सरकारी घोषणाएं अधूरी हैंI इस याचिका को फ्रांस के चार गैर-सरकारी संगठनों ने दायर किया था, और इस फैसले को ऐतिहासिक बताया जा रहा हैI

ग्रीनपीस फ्रांस के निदेशक जीन फ़्रन्कोइस जुलियार्ड के अनुसार यह फैसला वैज्ञानिकों के जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के आकलन की पुष्टि करता है, और साथ ही जनता की आशाओं की प्रतिध्वनि हैI यह फैसला केवल फ्रांस के लिए ही ऐतिहासिक नहीं है, बल्कि इसे आधार बनाकर दुनियाभर की जनता अपनी सरकारों को जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में जिम्मेदार बना सकतीं हैंI

फ्रांस के नोट्रे अफ्फैरे अ तोउस नामक संस्था की प्रमुख सेसिलिया रिनौदो के अनुसार यह फैसला जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित दुनियाभर में आवाज बुलंद करने वाले कार्यकर्ताओं और प्रदर्शनकारियों की जीत हैI इस फैसले में पर्यावरण के विनाश के आर्थिक पहलू का जिक्र भी किया गया है, इसके अनुसार हरेक ऐसे विनाश से समाज को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता हैI यदि इस तरह का नुकसान निजी क्षेत्र की कम्पनियां करती हैं तो उन्हें आर्थिक हर्जाना चुकाना पड़ता हैI

इसी तर्ज पर स्वाभाविक है कि यदि पर्यावरण को नुकसान सरकार की लापरवाही के कारण पहुंचता है तो सरकार को भी समाज को आर्थिक हर्जाना अदा करना पड़ेगाI फ्रांस की अदालत ने मुक़दमा दायर करने वाले गैर-सरकारी संगठनों को कहा है कि वे जलवायु परिवर्तन को रोकने में सरकार द्वारा लापरवाही से होने वाले नुकसान का विस्तृत आकलन कर न्यायालय में प्रस्तुत करेंI इस फैसले को इस शताब्दी का फैसला करार दिया गया हैI

इन गैर-सरकारी संगठनों ने दिसम्बर 2018 में इस सन्दर्भ में एक अपील फ्रांस के प्रधानमंत्री को भेजी थी, जिसपर लगभग 23 लाख लोगों ने हस्ताक्षर किया थाI पर, जब प्रधानमंत्री ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की, तब मार्च 2019 में इसी अपील को याचिका के तौर पर अदालत में दाखिल कर दिया गयाI फ्रांस सरकार ने वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों में 40 प्रतिशत कटौती की प्रतिबद्धता जाहिर की थी और वर्ष 2050 तक शून्य कार्बन उतर्जन की घोषणा की थी, पर वर्त्तमान सरकारी रवैय्ये से यह लक्ष्य असंभव दिख रहा हैI फ्रांस को लक्ष्य हासिल करने के लिए हरेक वर्ष कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 1.5 प्रतिशत की कटौती करनी है, पर पिछले वर्ष कोविड 19 के लॉकडाउन के बाद भी उत्सर्जन में महज 0.7 प्रतिशत की कमी आईI

द क्रायोस्फेयर नामक जर्नल के नवीन्तन अंक में यूनिवर्सिटी ऑफ़ लीड्स के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार वर्ष 1994 से 2017 के बीच तापमान बृद्धि के कारण दुनिया के कुल बर्फ के आवरण में 28 ट्रिलियन टन की कमी आंकी गई हैI प्रिथी के दोनों ध्रुवों और ऊंचे पहाड़ की चोटियों पर बर्फ का आवरण है जो तापमान बृद्धि के कारण लगातार नष्ट होता जा रहा हैI इस 28 ट्रिलियन टन बर्फ के पिघलने में दो-तिहाई योगदान वायुमंडल के गर्म होने के कारण है, जबकि शेष एक-तिहाई योगदान महासागरों का बढ़ता तापमान हैI

इस शोधपत्र के अनुसार पृथ्वी के बर्फ के आवरण के पिघलने की दर में 1994 से 2017 के बीच 57 प्रतिशत की बृद्धि हो गई हैI वर्ष 1994 में यह दर 0.8 ट्रिलियन टन प्रतिवर्ष थी, जो वर्ष 2017 में 1.2 ट्रिलियन टन तक पहुँच गईI

वर्ष 1994 से 2017 के बीच बर्फ पिघलने से महासागरों के सतह में 35 मिलीमीटर की बृद्धि हो चुकी हैI पृथ्वी की बर्फ में से तापमान बृद्धि के कारण सबसे अधिक नुक्सान दोनों ध्रुवों के पास महासागरों में तैरते हिम-शैलों को हुआ हैI इसके बाद पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर जमे ग्लेशियर का हैI अनुमान है कि इस वाधि के दौरान दुनिया से लगभग 6 ट्रिलियन टन ग्लेशियर समाप्त हो चुके हैं, जो दुनिया के कुल बर्फ के आवरण के नुकसान का लगभग एक-चौथाई हैI

जाहिर है, दुनिया के वैज्ञानिक लगातार अपने अध्ययनों से सरकारों को जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि से होने वाले नुकसानों से आगाह कर रहे हैं, पर सरकारें इसे नियंत्रित करने को लेकर कहीं से भी तत्पर नहीं नजर आ रही हैंI फ्रांस की अदालत ने तो इसके लिए सीधा सरकार को दोषी ठहरा दिया, पर क्या भारत समेत दूसरे देशों में ऐसा हो पायेगा?

Tags:    

Similar News