घेपांग ग्लेशियर झील हिमाचल के लिए बड़ा खतरा, वैज्ञानिकों की चेतावनी को किया नजरंदाज तो झेलनी पड़ेगी सिक्किम जैसी त्रासदी
गगनदीप सिंह की रिपोर्ट
शिमला। लगातार वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि दुनिया ग्लोबल वार्मिंग से ग्लोबल बॉयलिंग तक पहुंच गयी है। पूरी दुनिया में कहीं हिटवेव, कहीं अत्याधिक ठंड तो कहीं अत्याधिक बारिश देखी जा रही है। हाल ही में मानसून की भंयाकर बारिश से हिमाचल दिल दहला देने वाले मंजर देख चुका है और सिक्किम की स्थिति पूरे देश के सामने है। विशेषज्ञों का दावा स्पष्ट हो चुका है कि ये तबाही दक्षिण लोनाक झील फटने (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ़्लड (जीएलओएफ़) से हुई है।
ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट बाढ़ एक प्रकार की विनाशकारी बाढ़ है, जो तब आती है जब ग्लेशियल झील वाला बांध किसी कारण से टूट जाता है जिससे बड़ी मात्रा में पानी निकलता है। अभी तक सिक्किम के लगभग 25000 लोग इस से प्रभावित बताए जा रहे हैं। तीस्ता नदी के संगम पर चुंगथांग में साल 2005 में 1200 मेगावाट तीस्ता III हाइड्रो पावर परियोजना का निर्माण शुरू हुआ था और 2017 में यहाँ बिजली उत्पादन का काम शुरू हो गया।
यह बांध भी इस बाढ़ में टूट चुका है। ताजा खबरों के मुताबिक बाढ़ से मरने वालों की संख्या बढ़कर 65 हो गई। अब भी 81 लोग लापता हैं, जिनकी तलाश के लिए अभियान जारी है। एसएसडीएमए ने शनिवार 7 अक्टूबर को जारी ताजा बुलेटिन में कहा कि बाढ़ से चार जिलों के 86 इलाकों में रह रहे 41,870 लोग प्रभावित हुए हैं। 1,507 घरों को नुकसान पहुंचा है। अब तक 2,563 लोगो को सुरक्षित निकाला गया है। इस समय राज्य में कुल 30 राहत शिविरों में 7,025 लोग रह रहे हैं। बाढ़ में 13 पुल ढह गए हैं।
हिमाचल भी बन सकता है सिक्किम
हिमाचल प्रदेश में पांच महीने पहले राज्य के विज्ञान, पर्यावरण एवं प्रौद्योगिकी परिषद (हिमकॉस्ट) के क्लाइमेंट चेंज सेंटर शिमला के ताजा सर्वेक्षण में चौकाने वाले तथ्य सामने आए थे। हिमाचल में ग्लेशियर पिघल कर बनी ऐसी झिलों की संख्या 995 तक पहुंच गयी है। हिमकॉस्ट ने यह सर्वे अप्पर सतलुज, लोअर सतलुज बेसिन और स्पीति बेसिन पर किया है। तीनों ही बेसिन पर झीलों की संख्या बढ़ी है। वहीं 2022 के अध्ययन में पाया गया था कि हिमालयी क्षेत्र में चारों नदियों के बेसिन में 1475 छोटी-बड़ी झीलों का निर्माण हो चुका है। सतलुज बेसिन में 771, चिनाव में 508, ब्यास में 130 और रावी में 66 छोटी-बड़ी झीलें बन गई है। इसमें चिनाव घाटी के गीपागंगथ ग्लेशियर पिघलकर 98 हेक्टेयर के क्षेत्रफल में झील फैली है। इससे हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियल लेक ऑउटब्रस्ट बाढ़ का खतरा पैदा हो सकता है।
हाल ही में हिमचाल के लाहौल स्पिति जिले की झील घेपण गाथ (घेपांग) को सबसे बड़े खतरे के तौर पर चिन्हित किया जा रहा है। इंडियन इंस्टिटूट ऑफ साईंस के डाईवेचा सेंटर ने फरवरी 2023 में अमेरिकन जीयोफिजिकल यूनियन जरनल में एक पेपर प्रकाशित किया है जिसके अनुसार गेपांग घेपण गाथ (घेपांग)झील तेजी से बढ़ रही है। पेपर चेतावनी देता है कि आने वाले समय में इसका क्षेत्रफल दोगुना हो सकता है। इस झील के पानी को कृत्रिम तरीके से कम किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं आने वाले समय में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट से हिमालय के कई समुदायों को गंभीर खतरा हो सकता है।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार उपरोक्त पेपर के सह लेखक और डाईवेचा सेंटर के वैज्ञानिक अनिल कुलकर्णी ने बताया है कि घेपण गाथ (घेपांग) झील की स्थिति सिक्किम की लोनाक झील की तरह है। जलवायु परिवर्तन के चलते पश्चिमी हिमालय के हिमाचल और उतराखंड, पूर्वी हिमालय के सिक्किम की ग्लेशियर झीलें ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट के लिहाज हाईरिस्क पर हैं। इसलिए सावधानिपूर्वक इनकी निगरानी की जानी चाहिए और जरूरी कदम उठने चाहिएं। पेपर के अनुसार अगर इस झील के ऊपर टिकी बर्फ से बर्फीला तूफान (एवलांच) आता है तो यह झील टूट जाएगी, जो नीचे के इलाके में भारी तबाही मचाएगी।
2021 में जलवायु परिवर्तन केंद्र हिमाचल और अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (इसरो) अहमदाबाद की रिपोर्ट में यह चिंताजनक खुलासा हो चुका है कि हिमाचल प्रदेश में लगातार हिम आच्छादित क्षेत्र (बर्फ से ढका इलाका) कम होता जा रहा है। ग्लेशियर पिघल कर झीलों का रूप ले रहे हैं या फिर नदियों में जल स्तर बढ़ा रहे हैं। कुल मिलाकर पूरे हिमाचल में हिमाच्छादित क्षेत्र 23542 वर्ग किलोमीटर से घट कर 19183 वर्ग किलोमीटर इलाका हिम आच्छादित रह गया था।
इसी तरह का अध्ययन 2021 में आइआइटी मुंबई ने भी किया था, जिसमें खुलासा हुआ था कि जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति का घेपण गाथ (घेपांग) ग्लेशियर 300 मीटर सिकुड़ गया है। इसका पिघलना इसी तरह जारी रहा तो 4100 से 4700 मीटर की ऊंचाई पर सात नई झीलें बनेंगी। प्रत्येक झील का आकार 1.46 वर्ग किलोमीटर तक होगा। ग्लेशियर के टूटने की स्थिति में ये झीलें सिस्सू गांव के लिए खतरा बन सकती हैं।
पूंजीवादी ‘विकास’ परियोजनाएं जिम्मेदार
जम्मू कश्मीर से लेकर सिक्किम तक पूरे हिमालय में विकास के नाम पर सरकारों द्वारा हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट्स, रोड़, सुरंगे, बांधों को बेतहाशा अवैज्ञानिक रूप से निर्माण किया जा रहा है। बार-बार नागरिक अधिकार संगठन, पर्यावरणवादी, वैज्ञानिक सरकारों को चैतावनी भी दे रहे हैं कि ये हिमालय को बर्बाद करने के लिए किये जा रहे निर्माण कार्य हैं। ग्लोबल वार्मिंग कोई प्राकृतिक परिघटना नहीं है, बल्कि मुनाफे के लिए बड़े-बड़े वित्तीय संस्थानों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किये जा रहे निर्माण कार्य इसके लिए जिम्मेदार हैं।
पर्यावरण समूह हिमधारा की संस्थापक और हिमाचल प्रदेश में हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट्स के दुष्प्रभावों व वन अधिकारों पर पर लगभग डेढ़ दशक से कार्य कर रही मानशी आशेर का कहना है कि पूंजीवादी ‘विकास’ ने पूरे हिमालय को अनवरत आपदाओं के चक्कर में फंसा के रख दिया है। बाढ़, भूस्खलन, बादल फटना हिमालय में आम परिघटना बन चुकी है। अवैज्ञानिक रूप से बने बांधों ने इन परिघटनाओं को और अधिक तेजी दी है। हिमालयी क्षेत्रों में बांधों और हाईड्रो प्रोजेक्ट्स पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। कोई नया बांध नहीं बनाना चाहिए। भविष्य को देखते हुए बाढ़ नियंत्रण प्रबंधन को मजबूत करने की जरूरत है। बांधों के सुरक्षा प्रबंधन की स्वतंत्र रूप से जांच होनी चाहिए।
वहीं हिमालय नीति अभियान हिमाचल के संयोजक और लंबे समय से पर्यावरण पर कार्य कर रहे गुमान सिंह का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग एक कड़वी सच्चाई है, इसको स्वीकार करना होगा और इसके अनुरूप जन-जीवन को ढालना होगा और नीतियां बनानी होगी। मैंने खुद लाहौल स्पिति को देखा है, वहां पर बड़ा खतरा हो सकता है। समय रहते वैज्ञानिक रूप से इस झील के पानी की निकासी का प्रबंध करना चाहिए। हिमाचल के जनजीवन को सबसे बड़ा खतरा हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट्स और बांधों से हैं। कम से कम 7000 फिट की ऊंचाई से ऊपर कोई बांध और पावर प्रोजेक्ट नहीं लगाना चाहिए। इनके चलते प्रदेश में गर्मी और नमी बढ़ रही है जिस से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और झीलों का निर्माण हो रहा है। उन्होंने लाहौल स्पिति के पागल नाले का उदाहरण देते हुए कहा कि मानसून में वहां बहुत बाढ़ आई। पहले लाहौल स्पिति में बारिश नहीं होती थी, पिछले सालों से बारिश बढ़ रही है, जिस कारण न केवल ग्लेशियर पिघल रहे हैं बल्कि नालों में बाढ़ का कारण भी बन रहे हैं।