पर्यावरण पर लगातार अपनी ही पीठ थपथपाने वाली सरकार संकटग्रस्त पक्षियों से बेपरवाह, नीलकंठ समेत 178 प्रजातियों पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत
पक्षियों के लिए सबसे बड़ा खतरा उनके परम्परागत आवासीय क्षेत्रों का मनुष्यों की गतिविधियों द्वारा विनाश है। इसमें भू-उपयोग परिवर्तन, शहरीकरण, पारिस्थितिकीतंत्र का विनाश, वानिकी के नाम पर एक ही प्रजाति के बृक्षों को रोपना, इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं, प्रदूषण और तापमान बृद्धि सभी शामिल हैं...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
A new report on birds informs that as many as 178 species of birds are threatened in our country. इन्टरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट के अनुसार दुनिया में पक्षियों की कुल ज्ञात प्रजातियों में से 49 प्रतिशत प्रजातियों के सदस्यों की संख्या कम होती जा रही है, जबकि केवल 6 प्रतिशत प्रजातियाँ ऐसी हैं जिनके सदस्यों की संख्या बढ़ती जा रही है। उत्तरी अमेरिका में 1970 के बाद से पक्षियों की संख्या लगभग दो-तिहाई रह गयी है। यूरोप में वर्ष 1980 से 2016 के बीच पक्षियों की कुल संख्या में एक-चौथाई की कमी आंकी गयी है।
हमारे देश में पक्षियों की लगभग 1350 प्रजातियाँ हैं। हाल में ही लगभग 30000 पक्षी विशेषज्ञ और शौकिया पक्षियों पर अध्ययन करने वाले लोगों और संस्थानों के सम्मिलित अध्ययन को स्टेट ऑफ़ इंडियाज बर्ड्स नामक रिपोर्ट में प्रकाशित किया गया है। इसमें पक्षियों की 942 प्रजातियों के बारे में बताया गया है, जिसमें से 178 प्रजातियाँ संकट में हैं और उनपर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। इन संकटग्रस्त प्रजातियों में नीलकंठ या इंडियन रोलर जैसी कुछ प्रजातियाँ ऐसी भी हैं जिन्हें कुछ समय पहले तक देश में बहुतायत में देखा जाता था, और आईयूसीएन भी उन्हें वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त नहीं मानता। नीलकंठ जैसी कुल 14 प्रजातियाँ हैं जिनके बारे में आईयूसीएन से तत्काल वैश्विक स्तर पर विस्तृत अध्ययन का उनके संरक्षण के स्तर में बदलाव करने का अनुरोध किया गया है।
पक्षियों की कुल 348 प्रजातियों का अध्ययन पिछले 25 वर्षों से लगातार किया जा रहा है, इनमें से 60 प्रतिशत प्रजातियों के सदस्यों की संख्या कम होती जा रही है। वर्ष 2015 से पक्षियों की जिन 359 प्रजातियों का लगातार अध्ययन किया जा रहा है, उसमें से 40 प्रतिशत से अधिक प्रजातियों पर संकट है। गिद्ध, चील और बत्तखों की प्रजातियों पर यह संकट सबसे अधिक है। इन संकटग्रस्त प्रजातियों में ग्रेट ग्रे श्रीके जैसी कुछ समय पहले तक बहुतायद में मिलाने वाली सामान्य प्रजातियाँ भी सम्मिलित हैं।
पक्षियों की प्रवासी प्रजातियाँ अन्य प्रजातियों की तुलना में अधिक संकटग्रस्त हैं। फल खाने वाली पक्षियों की अधिकतर प्रजातियाँ अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित हैं जबकि कीटों, अनाज के दानों पर पलनेवाली और मांसाहारी प्रजातियों की संख्या कम होते जा रही है। घासों और झाड़ियों में रहने वाली प्रजातियों की संख्या खुली जगह रहने वाले पक्षियों की तुलना में तेजी से कम हो रही है।
पक्षियों के लिए सबसे बड़ा खतरा उनके परम्परागत आवासीय क्षेत्रों का मनुष्यों की गतिविधियों द्वारा विनाश है। इसमें भू-उपयोग परिवर्तन, शहरीकरण, पारिस्थितिकीतंत्र का विनाश, वानिकी के नाम पर एक ही प्रजाति के बृक्षों को रोपना, इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं, प्रदूषण और तापमान बृद्धि सभी शामिल हैं। इस रिपोर्ट में हरेक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में सबसे अधिक संकटग्रस्त चार प्रजातियों की सूचि भी है – उदाहरण के तौर पर देश की राजधानी दिल्ली में पक्षियों की सर्वाधिक संकटग्रस्त प्रजातियाँ हैं – ब्लैक बेलीड टर्न, इंडियन स्किम्मर, ग्रेट वाइट पेलिकन और इसबेल्लिन श्रीके।
स्टेट ऑफ़ इंडियाज बर्ड्स 2023 के अनुसार पक्षियों की 217 प्रजातियाँ या तो स्थिर हैं या फिर उनके सदस्यों की संक्ख्या बढ़ रही है – इसमें कबूतर, मैना, एशियाई कोयल और मोर सम्मिलित हैं। तमाम चर्चा के बाद भी हमारे देश में गौरैया को फिलहाल कोई खतरा नहीं है। बया और पाइड बुशचैट जैसी प्रजातियाँ भी खतरे से बाहर हैं।
इस रिपोर्ट का पहला संस्करण वर्ष 2020 में प्रकाशित किया गया था, जिसमें कुल 867 प्रजातियों का विश्लेषण था, जबकि इस नए संस्करण में 942 प्रजातियों का विश्लेषण है। जाहिर है, नया संस्करण पहले से अधिक विस्तृत है। ऐसी रिपोर्ट सरकार को पक्षियों की स्थिति और उनपर मंडराते खतरे से आगाह करने के लिए तौयार की जाती है, पर सबसे बड़ा सवाल यही है कि पर्यावरण पर लगातार अपनी ही पीठ थपथपाने वाली सत्ता क्या कभी इस रिपोर्ट से सबक लेगी?