वायु प्रदूषण ऐसे ही बढ़ता रहा तो आने वाली पी​ढ़ी के फेफड़े और मस्तिष्क भी नहीं रहेंगे सामान्य

वायु प्रदूषण का घातक असर गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी पड़ता है, इससे समय से पूर्व प्रसव या फिर कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं, और ये दोनों की शिशुओं में मृत्यु के प्रमुख कारण हैं...

Update: 2020-10-23 12:00 GMT

वायु प्रदूषण से हर साल होती है लाखों नवजात शिशुओं की मौत, महेंद्र पाण्डेय का विशेष लेख

जनज्वार। हाल में ही प्रकाशित स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर 2020 नामक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में वायु प्रदूषण के कारण 5 लाख से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है, और अत्यधिक प्रदूषण में पलने वाले बच्चे यदि बच भी जाते हैं तब भी उनका बचपन अनेक रोगों से घिरा रहता है।

वायु प्रदूषण का घातक असर गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी पड़ता है, इससे समय से पूर्व प्रसव या फिर कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं, और ये दोनों की शिशुओं में मृत्यु के प्रमुख कारण हैं। ऐसी अधिकतर मौतें विकासशील देशों में होती है। रिपोर्ट के अनुसार बुजुर्गों पर वायु प्रदूषण के असर का विस्तार से अध्ययन किया गया है, पर शिशुओं पर इसके प्रभाव के बारे में अपेक्षाकृत कम पता है। इस रिपोर्ट को हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट नामक संस्था ने प्रकाशित किया है।

वायु प्रदूषण से नवजातों की कुल मृत्यु में से दो-तिहाई का कारण घरों के अन्दर का प्रदूषण है। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भारत समेत तमाम विकासशील देशों में घरों के अन्दर के प्रदूषण स्तर का कोई अध्ययन नहीं किया जाता, और ना ही इसके बारे में कोई दिशानिर्देश हैं। घरों के अन्दर वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बंद घरों के अन्दर की रसोई है, जिस पर लकड़ी, उपले इत्यादि जैव-इंधनों से खाना पकाया जाता है।

पिछले वर्ष अमेरिका के वाशिंगटन में अमेरिकन एसोसिएशन फॉर एडवांसमेंट इन साइंसेज की वार्षिक बैठक में घरों के अन्दर के प्रदूषण पर चर्चा की गयी और इसे एक गंभीर समस्या माना गया। यह समस्या तो गंभीर है, पर इसकी हमेशा से उपेक्षा की जाती रही है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलोराडो बोल्डर के वैज्ञानिकों के अनुसार सामान्य घर के कामकाज जैसे खाना पकाना, साफ़-सफाई और दूसरे कामों से घरों के अन्दर पार्टिकुलेट मैटर और वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड्स (वीओसी) उत्पन्न होते हैं। पार्टिकुलेट मैटर के बारे में तो हम लगातार सुनते रहते हैं पर वीओसी ऐसे रसायनों का समूह है जो केवल घातक ही नहीं है बल्कि कैंसर-जनक भी है।

वीओसी का स्त्रोत घरों के अन्दर शैम्पू, परफ्यूम, रसोई और सफाई वाले घोल हैं, जबकि पार्टिकुलेट मैटर खाना बनाने और सफाई के दौरान उत्पन्न होते हैं। विश्व स्तर पर वाहनों से गैसों और पार्टिकुलेट मैटर के उत्सर्जन पर बहुत चर्चा की जाती है, पर घरों के अन्दर के इनके स्त्रोतों पर हम चुप्पी साध लेते हैं।

इस अध्ययन की अगुवाई मारिया वन्स ने की थी और इस दल ने वर्ष 2018 में कुछ घरों के भीतर प्रदूषण के स्तर का वास्तविक अध्ययन किया था। घरों के अन्दर प्रदूषण का स्तर इन लोगों के अनुमान से अधिक था और प्रदूषण का स्तर पता करने वाले सेंसर्स को कुछ दिनों में ही फिर से कैलिबरेट करना पड़ता था।

मारिया वन्स के अनुसार संभव है कि वीओसी का दुनिया में सबसे बड़ा स्त्रोत घरों के अन्दर की गतिविधियाँ और घरों के अन्दर इस्तेमाल किये जाने वाले रसायन हों। घरों के अन्दर रसायनों का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है और इस कारण घरों के अन्दर फॉर्मलडीहाइड, बेंजीन, अल्कोहल और कीटोन जैसे रसायनों की सांद्रता बढ़ती जा रही है। ये सभी रसायन ज्ञात कैंसरजनक हैं।

इससे वार्षिक बैठक में डयूक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत शोधपत्र में बताया गया कि घरों के अन्दर का प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। सोफा सेट, विनाइल फ्लोरिंग और फ्लेम रीटारडेट से खतरनाक रसायनों का उत्सर्जन होता रहता है। यह घर के अन्दर के वातावरण, जिसे वैज्ञानिक एसोस्फेयर कहते हैं, को प्रभावित और प्रदूषित करता है।

इन रसायनों के प्रदूषण के कारण श्वसन, चर्म और प्रजनन से सम्बंधित विकार उत्पन्न होते हैं। विनाइल फ्लोरिंग वाले घरों में रहने वाले बच्चों के मूत्र में बेंजाइल ब्यूटाइल थैलेट की सांद्रता सामान्य घरों के बच्चों की तुलना में 15 गुना अधिक पाया गया।

घरों के अन्दर इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, फ्लोरिंग और निर्माण सामग्री से लगातार सेमी-वोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स का उत्सर्जन होता रहता है और यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अध्ययन दल की प्रमुख हीथर स्तैप्लेटन के अनुसार इन सभी के अत्यधिक उपयोग करने वाले घरों के बच्चों के रक्त और मूत्र के नमूनों में सेमी-वोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स की सांद्रता कई गुना अधिक होती है।

फोम में पोलीब्रोमिनेटेड डाईफिनाइल ईथर का उपयोग किया जाता है इस कारण इनका अधिक उपयोग करने वाले घरों के बच्चों के रक्त में इसकी सांद्रता 6-गुना अधिक हो जाती है। इसके प्रभाव से मोटापा, मस्तिष्क के विकास और एंडोक्राइन तथा थाइरोइड कैंसर हो सकता है।

स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर 2020 के अनुसार वर्ष 2019 में दुनिया में कुल 67 लाख व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई है, और वायु प्रदूषण दुनिया में मौत के बड़े कारणों में चौथे स्थान पर है। वायु प्रदूषण के कारण नवजात शिशुओं की सबसे अधिक मौतें अफ्रीका में और एशिया में होती हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया की वैज्ञानिक बेट रिट्ज के अनुसार घरों के अन्दर वायु प्रदूषण की सबसे अधिक समस्या भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में है। इस रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण से बच्चों के मस्तिष्क और दूसरे अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है।

यूनिसेफ द्वारा जून 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में लगभग सभी जगहों पर वायु प्रदूषण निर्धारित सीमा से अधिक है, जिससे बच्चे सांस के रोगों, फेफड़ों के रोगों, दमा और अल्प विकसित मस्तिष्क के शिकार हो रहे हैं।

पांच वर्ष के कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में से से दस प्रतिशत से अधिक का कारण साँसों की बीमारियाँ है जो वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। यूनिसेफ के अनुसार विश्व में 2 अरब बच्चे खतरनाक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहते है, जिनमे से 62 करोड़ बच्चे दक्षिण एशियाई देशों में हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रायोजित एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली के एक-तिहाई बच्चों के फेफड़े सामान्य काम नहीं करते। यूनिसेफ द्वारा दिसम्बर 2017 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अधिकतर बच्चों के मस्तिष्क की कार्य-प्रणाली वायु प्रदूषण के कारण प्रभावित हो रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 में "एयर पोल्यूशन एंड चाइल्ड हेल्थ" नामक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें बताया गया है कि पूरी दुनिया में वर्ष 2016 के दौरान पांच वर्ष से कम उम्र के 6 लाख बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई, इसमें से एक लाख से अधिक बच्चे अकेले भारत के थे। रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में कुल 101788 बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई, इसमें 54893 लड़कियां थीं, जबकि 46895 लड़के थे। ये आंकड़े वायु प्रदूषण के घातक प्रभाव के साथ ही लडके और लड़कियों की परवरिश के भेदभाव को भी उजागर करते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के स्वास्थ्य से सम्बंधित लगभग हरेक अनुसंधान वायु प्रदूषण के घातक प्रभाव बता रहे हैं। बच्चे मंदबुद्धि हो रहे हैं, जन्म के समय कम वजन के बच्चे पैदा हो रहे हैं, गर्भ में भी बच्चे वायु प्रदूषण के प्रभाव से अछूते नहीं हैं, इनका तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो रहा है, दमा के मामले बढ़ रहे हैं, ह्रदय रोग के मामले बढ़ रहे हैं, सांस के रोग हो रहे हैं और बच्चे मर रहे हैं।

दुनियाभर में लगभग 90 प्रतिशत बच्चे, जिनकी कुल संख्या 1.8 अरब है, ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है। भारत जैसे विकासशील देशों में तो हालत और भी खराब है और लगभग 98 प्रतिशत बच्चे अत्यधिक प्रदूषित माहौल में रहते हैं।

हम हमेशा बात करते हैं कि आनेवाली पीढी के लिए कैसी दुनिया छोड़कर जायेंगे, पर यदि वायु प्रदूषण का यही हाल रहा तो सत्य तो यही है कि हम आनेवाली पीढियां ही नहीं छोडकर जायेंगे। जो जिन्दा रहेंगे उनके भी फेफड़े और मस्तिष्क सामान्य काम नहीं कर रहे होंगे।

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