​विकास और निवेश का जहर न घोला गया होता तो नर्मदा नदी नहीं होती बर्बाद

प्रदेश में नर्मदा नदी पर प्रस्तावित 29 बड़े बांध परियोजना में से 15 परियोजनाओं का निर्माण हो चुका है या निर्माणाधीन है, जिससे लगभग 11.464 लाख हेक्टेयर सिंचाई होना प्रस्तावित है....

Update: 2020-08-16 08:22 GMT

राज कुमार सिन्हा का विश्लेषण

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित मुख्य समारोह में घोषणा किया कि नर्मदा नदी प्रदेश की जीवन रेखा है। इसके विकास के लिए नर्मदा एक्सप्रेस वे विकसित करेंगे। इसके साथ ही औधोगिक कल्सटर भी बनाए जाएंगे,जहां पर निवेश आएगा।

प्राप्त जानकारी के अनुसार नर्मदा के उदगम स्थल अमरकंटक से मध्यप्रदेश- गुजरात की सीमा तक लगभग 1300 किलोमीटर की सड़क (एक्सप्रेस वे) एमपीआरडीसी बनायेगा। यह एक्सप्रेस वे अमरकंटक से होकर डिंडोरी, जबलपुर, नरसिंहपुर, पिपरिया, होशंगाबाद, हरदा, खंडवा, बरवाह, बडवानी, अलिराजपुर से गुजरात सीमा तक जाएगी।

अमरकंटक से जबलपुर तक 222 किलोमीटर के हिस्से में टुलेन सड़क बनी हुई है जिसकी खासियत यह है कि यह बनने के बाद आज दिनांक तक खराब नहीं हुआ है। अब चार लेन वाले एक्सप्रेस वे से नर्मदा परिक्रमावासियों के साथ ही औधोगिक क्षेत्रों का विकास किया जाएगा।

नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण के अनुसार नर्मदा नदी में उपलब्ध 28 एम.ए.एफ पानी में से 18.25 एमएएफ पानी मध्यप्रदेश के हिस्से में आया है जिसमें से मध्यप्रदेश ने 29 बङे बांधों के लिए 11.36 एमएएफ, 135 मध्यम बांधों के लिए 2.88 एमएएफ, 3000 छोटे बांधों के लिए 2.51एमएएफ, औद्योगिक उपयोग हेतु 0.743 एमएएफ और घरेलू एवं नगरपालिका उपयोग हेतू 0.757 एमएएफ का बंटवारा किया गया है।

प्रदेश में नर्मदा नदी पर प्रस्तावित 29 बड़े बांध परियोजना में से 15 परियोजनाओं  का निर्माण हो चुका है या निर्माणाधीन है, जिससे लगभग 11.464 लाख हेक्टेयर सिंचाई होना प्रस्तावित है। मालवा क्षेत्रों की महत्वाकांक्षी नर्मदा- मालवा लिंक परियोजना जिसमें नर्मदा- क्षिप्रा, नर्मदा- पार्वती, नर्मदा- कालीसिंध, नर्मदा- गंभीर, नर्मदा- चंबल, नर्मदा- माही और नर्मदा- मांडू शामिल है जिससे लगभग 6.32 लाख हैक्टेयर में सिंचाई होगी।

उपरोक्त नदियों को पुनर्जीवित करने की जगह नर्मदा का पानी इन नदियों में डालने की योजना है। इसमें से पांच लिंक परियोजनाओं पर 20 हजार 233 करोड़ रूपये खर्च होना अनुमानित है। इस वर्ष विगत मई माह में  मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश को आबंटित जल का पूर्ण उपयोग सुनिश्चित करने के लिए नर्मदा बेसिन प्रोजेक्टस कम्पनी लिमिटेड और पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन के बीच 20 हजार करोड़ का अनुबंध हस्ताक्षर हुआ है।

उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश राज्य को आबंटित नर्मदा जल वर्ष 2024 तक पूर्ण उपयोग किया जाना है। यह अनुबंधित राशि नर्मदा घाटी में प्रगतिरत परियोजनाओं को गति प्रदान करने एवं 9 नवीन स्वीकृत योजनाओं के लिए राज्य सरकार खर्च करेगी। जिससे डिंडोरी, मंडला, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, सीहोर, देवास, खंडवा एवं हरदा जिलों में 5 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा निर्मित होने के साथ 225 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन होने का लक्ष्य रखा गया है। 1990 के दशक में नर्मदा नदी पर बना पहला बरगी बांध से 4.44 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई उपलब्ध कराने का दावा किया गया था। परन्तु वर्तमान में बांयी तट नहर से अभी तक लगभग 70 हजार हेक्टेयर सिंचाई हेतु नहर विकसित किया गया है।

दायीं तट नहर से सतना और रीवा के 855 गांवों में सिंचाई हेतु पानी पहुंचाना था। परन्तु बांध बनने के 30 साल बाद भी इन गांव में एक बुंद पानी नहीं पहुंचा है। नर्मदा नदी किनारे बसे 30 बड़े शहरों एवं कस्बों और हजारों गांव को पेयजल वयवस्था की जिम्मेदारी नर्मदा की ही है जबकि नर्मदा से दूर इंदौर को 110 एमएलडी पानी दिया जा रहा है।भविष्य में भोपाल को 185 एमएलडी और देवास को 23 एमएलडी पानी नर्मदा से पहुंचाने  की योजना है।

नर्मदा नदी से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर प्रस्तावित 18 थर्मल पावर प्लांट एवं 1 परमाणु बिजली परियोजनाओं की स्थापित विधुत उत्पादन क्षमता 25 हजार 260 मेगावाट है। 2800 मेगावाट में से प्रथम चरण की 1400 मेगावाट चुटका परमाणु परियोजना में बरगी बांध से 7 करोड़ 80 लाख 40 हजार घनमीटर पानी प्रतिवर्ष लगेगा। शेष 22 हजार 460 मेगावाट थर्मल पावर प्लांट में से 6 हजार 900 मेगावाट क्षमता वाली थर्मल पावर प्लांट शुरू हो चुका है। 1 मेगावाट बिजली उत्पादन हेतु प्रति घंटा लगभग 3 हजार 238 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 25 हजार 260 मेगावाट थर्मल पावर प्लांटों  को प्रति वर्ष चलाने के लिए नर्मदा से कितने पानी का दोहन किया जाएगा। प्रदेश में निवेश बढ़ाने के लिए नर्मदा किनारे जो औधोगिक कल्सटर विकसित किया जाएगा तो उसे भी नर्मदा से पानी देना होग। शहरों और उद्योगों की प्यास बुझाने बुझाने का जिम्मा नर्मदा पर ही है। दोहन का यह दबाव नर्मदा की हर बूंद निगल लेना चाहता है।

नर्मदा नदी में बहने वाली पानी की उपलब्धता 28 एमएएफ मापा गया था जो 1975 के गणना के अनुसार था। परन्तु नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने वर्ष 1980 से नर्मदा में प्रति वर्ष नर्मदा में जल उपलब्धता की गणना की है। 2009- 10 तक के गणना के अनुसार नर्मदा कछार में 21.72 एमएएफ जल उपलब्ध था। निश्चित प्रतिशत बंटवारे के अनुसार 2009 - 2010 में मध्यप्रदेश को उपयोग हेतु 14.16 एमएएफ जल का हिस्सा उपलब्ध था। अमरकंटक में कुंड से निकली नर्मदा आगे चलकर विभिन्न सहायक नदियों के मिलने के बाद नदी का आकार लेती है।

नर्मदा की छोटी बङी कुल 41 सहायक नदियां है, जिसमें से 19 नदियां ऐसी है जिसकी लम्बाई 54 किलोमीटर से भी अधिक है। ये सहायक नदियां ही सतपुड़ा, विंध्य और मैकल पर्वतों से बूंद- बूंद पानी लाकर नर्मदा को सदा नीरा बनाती है लेकिन इनमें से कई नदियां सूखने के कगार पर है या फिर शहरों के आसपास नालों में तब्दील हो रही है। नर्मदा किनारे अतिक्रमण, जलग्रहण क्षेत्र में पेङ कटने और अवैध रेत खनन इस नदी की आत्मा को छलनी कर दिया है। एक्सप्रेस वे माध्यम से पर्यटन और औधोगिक कल्सटर बनाने की योजना लगाना नर्मदा के लिए अंतिम कील साबित न हो जाए?

(राज कुमार सिन्हा पिछले 40 वर्षों से नदी-वनों की रक्षा से जुड़े आंदोलनों में सक्रिय हैं। वे बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ से जुड़े हैं।)

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